यह शोध बुढ़ापे में एक और अंधेरा परिव्याप्त होने की विडंबना को दर्शा रहा है। वस्तुतः वृद्धावस्था तो वैसे भी अनेक शारीरिक व्याधियों, मानसिक तनावों और अन्यान्य व्यथाओं भरा जीवन होता है और अगर उस पर उनमें स्मृतिलोप जैसी बीमारियां हावी होने लगेंगी तो वृद्
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साल 2047 तक भारत अपना ऊर्जा आत्मनिर्भरता का सपना सच कर सकता है. दरअसल अमेरिकी ऊर्जा विभाग के लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी (बर्कले लैब) द्वारा जारी पाथवेज टु आत्मनिर्भर भारत नाम के एक नए अध्ययन के अनुसार भारत में सस्ती होती क्लीन एनर्जी टेक्नोलॉजी और
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अपने अस्तित्व के बाद से ही रह-रह कर आंतरिक उथल-पुथल, अस्थिरता के दौर से गुजर रहा पाकिस्तान एक बार फिर घोर आंतरिक उथल-पुथल के दौर में है लेकिन इस बार इस संकट को उसके इतिहास का सबसे गंभीर संकट माना जा रहा है. एक तो पाकिस्तान बेहद आर्थिक बदहाली के दौर म
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प्रकृति ने अपना विकराल रूप दिखाना शुरू कर दिया है, हमें भी पर्यावरण को सहेजने की दिशा में अपने प्रयास तेज करने होंगे, अक्षय ऊर्जा को तेजी से अपनाना होगा।
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विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस सबसे पहले 15 मार्च 1983 को मनाया गया था, जिसके बाद से यह प्रतिवर्ष उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से निरंतर मनाया जा रहा है.
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आपको बता दें कि हार्वर्ड टी.एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की ताजा रिपोर्ट बताती है कि जलवायु परिवर्तन या तापमान बढ़ने से हमारे भोजन में पोषक तत्वों की भी कमी हो रही है। रिपोर्ट चेतावनी देती है कि धरती के तापमान में बढ़ोत्तरी खाद्य सुरक्षा के लिए दोहर
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अगर विपक्ष को राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ एकजुट होना है तो उसे एक एंकर पार्टी चाहिए होगी जो धुरी की तरह काम कर सके और सभी दल जमा इसके इर्दगिर्द जमा हो सकें. कांग्रेस ये भूमिका निभा सकती है लेकिन इससे पहले उसे एक बड़ा काम करना होगा।
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भारतीय जनता पार्टी की सरकार और पार्टी, दोनों को आपत्ति यह है कि राहुल गांधी ने विदेश में जाकर जिस तरह से आलोचना की, वह देश के साथ गद्दारी है. कांग्रेस ने हालांकि पलटवार करते हुए कहा है कि सरकार की आलोचना देश के साथ गद्दारी नहीं है.
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जाहिर है कि इसके पीछे कोई सैद्धांतिक कारण नहीं, बल्कि निजी स्वार्थ होते हैं। इनके चलते लोकतंत्र को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। जिन मतदाताओं के कंधों पर जनतंत्र का बोझ होता है, वे ठगे से रह जाते हैं। मान सकते हैं कि भारतीय मतदाता यूरोप अथवा पश्चिमी दे
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राष्ट्रीय राजनीति हो या विदेश नीति, न्याय व्यवस्था हो या सुरक्षा व्यवस्था, मिलावटखोरों के खिलाफ कार्रवाई का मुद्दा हो या भ्रष्टाचारियों के खिलाफ- हर मुद्दे पर वे बेबाकी के साथ अपने विचार रखते थे। कई बार तो उनके शब्द इतने तीखे हो जाते थे कि उन्हें सौम
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