ब्लॉग: आलोचना के साथ-साथ विकल्प भी सुझाया जाए...राहुल गांधी से भी यही उम्मीद

By विश्वनाथ सचदेव | Published: March 15, 2023 01:52 PM2023-03-15T13:52:15+5:302023-03-15T13:54:46+5:30

भारतीय जनता पार्टी की सरकार और पार्टी, दोनों को आपत्ति यह है कि राहुल गांधी ने विदेश में जाकर जिस तरह से आलोचना की, वह देश के साथ गद्दारी है. कांग्रेस ने हालांकि पलटवार करते हुए कहा है कि सरकार की आलोचना देश के साथ गद्दारी नहीं है.

Along with criticism, alternatives should also be suggested by opposition parties and Rahul Gandhi | ब्लॉग: आलोचना के साथ-साथ विकल्प भी सुझाया जाए...राहुल गांधी से भी यही उम्मीद

ब्लॉग: आलोचना के साथ-साथ विकल्प भी सुझाया जाए...राहुल गांधी से भी यही उम्मीद

महाभारत में एक प्रसंग आता है. पांडव वनवास भोग रहे थे और तभी गंधर्वों ने धृतराष्ट्र-पुत्र दुर्योधन को बंदी बना लिया. तब युधिष्ठिर ने अपने छोटे भाई अर्जुन से कहा था कि वह दुर्योधन की सहायता के लिए जाए. अर्जुन को कुछ अटपटा लगा था आखिर कौरवों की मदद क्यों की जाए! तब युधिष्ठिर कहते हैं, ‘‘आज भले ही हम आपस में झगड़ रहे हैं और पांच और सौ हैं, पर बाहर वालों के लिए हम एक सौ पांच हैं.’’

आज इस प्रसंग की याद दिला कर कहा जा रहा है कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को देश के बाहर भारत सरकार की आलोचना करके देश के साथ गद्दारी नहीं करनी चाहिए. असल में पिछले दिनों राहुल गांधी को इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में आमंत्रित किया गया था जहां उन्होंने भारत की वर्तमान स्थिति के बारे में भाषण दिया था. फिर ब्रिटिश संसद में भी उन्हें बुलाया गया और वहां भी उन्होंने कुल मिलाकर वही सब दुहराया जो कैंब्रिज विश्वविद्यालय में कहा था. 

‘वही सब’ अर्थात भारत में जनतंत्र के लिए उत्पन्न ‘खतरों’ की गाथा. देखा जाए तो इस गाथा में ऐसा कुछ नया नहीं था जो राहुल गांधी ने देश की संसद में, और देश की सड़कों पर नहीं कहा है. अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान भी राहुल कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक इस बात को दुहराते रहे हैं कि देश की सरकार जनतांत्रिक मूल्यों और आदर्शों को अंगूठा दिखा रही है, विपक्ष को अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया जा रहा, देश की स्वायत्त संस्थाओं का दुरुपयोग किया जा रहा है आदि.  

भारतीय जनता पार्टी की सरकार और पार्टी, दोनों को आपत्ति यह है कि विदेश में जाकर इस तरह की आलोचना देश के साथ गद्दारी है. इसके जवाब में कांग्रेस पार्टी की ओर से दो बातें कही गई हैं- एक तो यह कि सरकार देश नहीं होती, सरकार की आलोचना देश के साथ गद्दारी नहीं होती और दूसरी यह कि भाजपा के नेता भी देश के बाहर जाकर पिछली सरकारों (पढ़िए कांग्रेस की सरकारों) और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को खरी-खोटी सुनाते रहे हैं.  

बहरहाल, इतना तो कहा जा सकता है कि इस मौके पर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी कुछ बेहतर कर सकते थे.  उदाहरण के लिए यह मौका था जब वे देश की वर्तमान सरकार की रीति-नीति की खामियों को सामने लाने के साथ-साथ अपनी पार्टी कांग्रेस की ओर से एक वैकल्पिक व्यवस्था सामने रखते. बताते कि उनकी पार्टी यदि फिर से सत्ता में आती है तो देश की बेहतरी के लिए किन नीतियों के अनुसार काम करेंगे. 

राजनीतिक दलों का दायित्व बनता है कि वह विरोधी की रीति-नीति की आलोचना करें, उसकी कमियां उजागर करें. पर जनतांत्रिक मूल्यों का तकाजा है कि आलोचना के साथ-साथ विकल्प भी सुझाए जाए.

Web Title: Along with criticism, alternatives should also be suggested by opposition parties and Rahul Gandhi

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