ब्लॉग: बाढ़ और सूखे की विभीषिका से बचने के करने होंगे उपाय

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: March 16, 2023 03:39 PM2023-03-16T15:39:03+5:302023-03-16T15:40:59+5:30

प्रकृति ने अपना विकराल रूप दिखाना शुरू कर दिया है, हमें भी पर्यावरण को सहेजने की दिशा में अपने प्रयास तेज करने होंगे, अक्षय ऊर्जा को तेजी से अपनाना होगा।

Measures will have to be taken to avoid the havoc of flood and drought | ब्लॉग: बाढ़ और सूखे की विभीषिका से बचने के करने होंगे उपाय

फाइल फोटो

Highlightsग्लोबल वार्मिंग से सूखे और बाढ़ की विभीषिका बढ़ने के कारण स्थित बेहद चिंताजनक हैहालात ऐसे ही रहे तो धरती पर बार-बार आपदाएं आएंगीग्लोबल वार्मिंग से निपटने की कोशिशें भी शुरू की गई हैं।

ग्लोबल वार्मिंग से सूखे और बाढ़ की विभीषिका बढ़ने के निष्कर्ष वाली हालिया रिपोर्ट निश्चित रूप से बेहद चिंतित करने वाली है। नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) की अगुवाई वाली इस अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारी धरती के गर्म होने के साथ ही सूखा और बाढ़ जैसी आपदाएं बार-बार आएंगी और इसकी विभीषिका प्रचंड होती जाएगी।

जहां तक धरती के गर्म होने की बात है, कृषि मंत्रालय के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का एक शोध बताता है कि सन् 2030 तक हमारी धरती के तापमान में 0.5 से 1.2 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि अवश्यंभावी है। नासा की अगुवाई वाले अध्ययन में लेखकों ने कहा है कि गर्म हवा होने की वजह से पृथ्वी की सतह से गर्मी के दिनों में अधिक वाष्पीकरण होता है क्योंकि गर्म हवा अधिक नमी सोख सकती है जिससे भीषण बारिश और बर्फबारी की आशंका बढ़ती है।

अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2015 से 2021 के बीच के सात साल आधुनिक रिकॉर्ड रखने के दौरान दर्ज नौ सबसे गर्म सालों में हैं। इसी प्रकार अत्यधिक बारिश और सूखे के बार-बार आने का औसत भी बढ़कर प्रतिवर्ष चार हो गया है जबकि 13 साल पहले यह संख्या प्रतिवर्ष तीन थी।

हालत अब ऐसी हो गई है कि एक ही साल में देश के किसी हिस्से में बाढ़ आती है तो कहीं सूखा पड़ता है। फसल कभी अतिवृष्टि से तबाह होती है तो कभी बारिश नहीं होने से सूख जाती है। प्राकृतिक आपदा से होने वाली आर्थिक क्षति तो दुनिया में लगभग एक समान होती है लेकिन जनहानि सबसे अधिक गरीब और विकासशील देशों में ही होती है।

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में बाढ़ से होने वाली मौतों में से 20 फीसदी अकेले भारत में होती है। विकसित देश अपनी आर्थिक संपन्नता के बल पर किसी हद तक प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली क्षति की भरपाई कर लेते हैं, किंतु गरीब और विकासशील देशों में कई बार ऐसी आपदाएं जानलेवा बन जाती हैं।

ऐसा नहीं है कि प्रकृति में यह बदलाव अचानक हो रहा है। इसकी आशंका बहुत पहले से जताई जाती रही है और ग्लोबल वार्मिंग से निपटने की कोशिशें भी शुरू की गई हैं। मगर इस बदलाव की तीव्रता इतनी जल्दी और इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी, ऐसा शायद सोचा नहीं गया था।

अब जबकि प्रकृति ने अपना विकराल रूप दिखाना शुरू कर दिया है, हमें भी पर्यावरण को सहेजने की दिशा में अपने प्रयास तेज करने होंगे, अक्षय ऊर्जा को तेजी से अपनाना होगा, प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचना होगा और जंगलों में नई जान फूंकनी होगी। तबाही की रफ्तार को धीमा करने का यही एक उपाय है।

Web Title: Measures will have to be taken to avoid the havoc of flood and drought

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