हेमधर शर्मा का ब्लॉगः जमीनी हकीकत से जुड़ा था वैदिकजी का लेखन
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 15, 2023 08:22 AM2023-03-15T08:22:24+5:302023-03-15T08:25:10+5:30
राष्ट्रीय राजनीति हो या विदेश नीति, न्याय व्यवस्था हो या सुरक्षा व्यवस्था, मिलावटखोरों के खिलाफ कार्रवाई का मुद्दा हो या भ्रष्टाचारियों के खिलाफ- हर मुद्दे पर वे बेबाकी के साथ अपने विचार रखते थे। कई बार तो उनके शब्द इतने तीखे हो जाते थे कि उन्हें सौम्य करना पड़ता था ताकि किसी की भावनाएं न आहत हों।
पिछले कई वर्षों से लोकमत समाचार के इस स्तंभ के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त पत्रकार वेदप्रताप वैदिकजी लिखते आ रहे थे। नियति की यह विडंबना ही है कि आज इसी काॅलम में उनका स्मृति-शेष लिखना पड़ रहा है। कल सोमवार तक उन्होंने अपना लेख भेजा था और आज सुबह खबर आई कि वे नहीं रहे।
हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के मुखर पैरोकार वैदिकजी बिना किसी लाग-लपेट के, सीधे शब्दों में अपनी बात कहते थे। कॉलम के सिलसिले में अक्सर उनसे बातें होती थीं और शब्दसीमा व लेख भेजने के समय की पाबंदी के अनुरोध को उन्होंने हमेशा ध्यान में रखा। 78 वर्ष की उम्र में भी उनके लिखे शब्दों में युवाओं जैसा उत्साह झलकता था। हिंदी भाषा को लेकर तो उनका प्रेम जगजाहिर था और अपने लेखों में भी वे समय-समय पर इसकी वकालत करते थे, लेकिन इसके अलावा भी शायद ही ऐसा कोई विषय रहा होगा जिस पर उन्होंने अपनी कलम न चलाई हो।
राष्ट्रीय राजनीति हो या विदेश नीति, न्याय व्यवस्था हो या सुरक्षा व्यवस्था, मिलावटखोरों के खिलाफ कार्रवाई का मुद्दा हो या भ्रष्टाचारियों के खिलाफ- हर मुद्दे पर वे बेबाकी के साथ अपने विचार रखते थे। कई बार तो उनके शब्द इतने तीखे हो जाते थे कि उन्हें सौम्य करना पड़ता था ताकि किसी की भावनाएं न आहत हों। उनके लेखन और अनुभव का दायरा बहुत व्यापक था और सीमित शब्दों में लिखे गए लेख में भी इसकी छाप नजर आती थी। कर्मयोगी ऐसे कि करीब चार साल पहले जब पत्नी प्रो. वेदवतीजी का निधन हुआ तब भी अपने लेखन में उन्होंने कोई रुकावट नहीं आने दी। जिज्ञासु इतने कि खुद ही फोन कर पूछते कि उनके लेखों पर पाठकों की कैसी प्रतिक्रियाएं आती हैं। सिर्फ लिखकर अपने लेखन की इतिश्री मान लेने वालों में वे नहीं थे।
ऐसे जमीन से जुड़े लेखक, हिंदी प्रेमी और ख्यातिलब्ध वरिष्ठ पत्रकार को लोकमत परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।