ब्लॉग: बुढ़ापे में स्मृतिलोप का बढ़ना चिंताजनक
By ललित गर्ग | Published: March 17, 2023 12:48 PM2023-03-17T12:48:04+5:302023-03-17T12:53:00+5:30
यह शोध बुढ़ापे में एक और अंधेरा परिव्याप्त होने की विडंबना को दर्शा रहा है। वस्तुतः वृद्धावस्था तो वैसे भी अनेक शारीरिक व्याधियों, मानसिक तनावों और अन्यान्य व्यथाओं भरा जीवन होता है और अगर उस पर उनमें स्मृतिलोप जैसी बीमारियां हावी होने लगेंगी तो वृद्धावस्था अधिक कष्टदायक हो जाएगी।

फाइल फोटो
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान सहित दुनिया भर के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों की ओर से किए गए शोध में यह बताया गया है कि आने वाले वक्त में भारत में साठ साल या उससे ज्यादा उम्र के एक करोड़ से भी अधिक लोगों के डिमेंशिया यानी स्मृतिलोप की चपेट में आने की आशंका है। घोर उपेक्षा एवं व्यवस्थित देखभाल के अभाव में बुजुर्गों में यह बीमारी तेजी से पनप रही है।
जर्मन नेचर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी कलेक्शन में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक सन 2050 तक भारत की कुल आबादी में साठ साल से ज्यादा उम्र वालों की तादाद करीब उन्नीस फीसदी होगी। अगर एक करोड़ से ज्यादा बुजुर्ग स्मृतिलोप जैसी समस्या के शिकार हो जाएं तो व्यापक पैमाने पर उनका सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन किस तरह की त्रासदी का शिकार होगा, इसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
यह शोध बुढ़ापे में एक और अंधेरा परिव्याप्त होने की विडंबना को दर्शा रहा है। वस्तुतः वृद्धावस्था तो वैसे भी अनेक शारीरिक व्याधियों, मानसिक तनावों और अन्यान्य व्यथाओं भरा जीवन होता है और अगर उस पर उनमें स्मृतिलोप जैसी बीमारियां हावी होने लगेंगी तो वृद्धावस्था अधिक कष्टदायक हो जाएगी।
स्मृतिलोप जैसी समस्या के स्रोतों की पहचान, बेहतर खानपान के साथ-साथ शरीर और मन-मस्तिष्क की सक्रियता या व्यायाम आदि के सहारे वृद्धों को स्वस्थ जीवन देने का प्रयास होना चाहिए।
अगर ऐसी स्थितियां निर्मित की जाएं जिसमें बुजुर्गों की रोजमर्रा की जिंदगी को खुश और सेहतमंद बनाए रखने के इंतजाम हों, तो उन्हें न केवल स्मृतिलोप जैसी कठिनाइयों से बचाया जा सकेगा, बल्कि उनके लंबे जीवन-अनुभवों का लाभ भी समाज और देश को मिल सकेगा।