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ब्लॉग: वक्त फिसलता जा रहा है विपक्ष के हाथ से

By अभय कुमार दुबे | Updated: December 19, 2023 09:47 IST

ओबीसी जातियों में भी वह काफी आगे है। साठ के दशक से द्विज-ओबीसी एकता का जो फार्मूला आजमाया जा रहा है, वह संघ परिवार के अनथक प्रयासों से धरती पर उतरता दिख रहा है।

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अगर पंद्रह जनवरी तक राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन ने अपनी हुलिया दुरुस्त नहीं की तो 2024 के लिए होने वाली मोर्चाबंदी के संदर्भ में विपक्ष बहुत पिछड़ जाएगा। समय विपक्ष के हाथ से फिसलता जा रहा है। यह समय फिर से लौट कर नहीं आएगा।

अगर विपक्ष मोदी के रास्ते में बाधाएं नहीं खड़ा कर पाया, तो 2029 के चुनाव के पहले उसकी शक्ल-सूरत केवल औपचारिक रह जाएगी।अपनी हुलिया दुरुस्त करने के लिए राहुल गांधी और विपक्ष अगर करना चाहे तो थोड़े-बहुत हेरफेर के साथ तीन काम कर सकता है।

राहुल गांधी 28 की रैली में मंच से कह सकते हैं कि वे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं हैं और उनकी दिलचस्पी केवल विपक्षी एकता के लिए काम करने की है। यह कहना इसलिए जरूरी है कि जब लोकनीति-सीएसडीएस के शोधकर्ताओं ने मध्य प्रदेश और राजस्थान के वोटरों से पूछा कि उन्होंने किसके नाम पर वोट दिए तो जवाब मिला कि कोई 20 फीसदी लोगों ने तो मोदी के नाम पर भाजपा को वोट दिए हैं, पर राहुल के नाम पर केवल दो फीसदी लोगों ने ही कांग्रेस को वोट दिए हैं।

जाहिर है कि प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में राहुल गांधी मोदी से बहुत पीछे हैं। दूसरा काम यह किया जा सकता है कि बिना देर किए एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम (सीएमपी) बना कर सार्वजनिक रूप से घोषित कर देना चाहिए। इस काम में किसी भी तरह के मतभेद की संभावना बहुत कम है।

सोनिया गांधी नौ केंद्रीय मुद्दे बहुत पहले जारी कर चुकी हैं। बस, क्षेत्रीय शक्तियों से पूछना बाकी है कि वे अपने-अपने कौन से मुद्दे जुड़वाना चाहती है। जैसे ही यह सीएमपी बने, वैसे ही इंडिया गठबंधन के सभी सदस्यों को मंच से घोषित करना होगा कि यही उनका भी घोषणापत्र होगा। वे अलग से अपना घोषणापत्र जारी नहीं करेंगे। ध्यान रहे कि जब नब्बे के दशक में अटल-आडवाणी ने एनडीए बनाया था तो भाजपा ने अपना घोषणापत्र अलग से जारी करने से इंकार कर दिया था।

जैसे ही गठबंधन के नेतागण ऐसा करेंगे, वैसे ही विपक्ष की राष्ट्रीय एकता का नजारा स्पष्ट हो कर देश की जनता के सामने आ जाएगा।तीसरा काम इस गठबंधन को यह करना चाहिए कि केवल बड़े-बड़े दलों तक ही सीमित न रह कर छोटे-छोटे दलों को अपने आगोश में लेने की योजना पर काम किया जाए।

दरअसल, उन्हें राजस्थान में विधानसभा चुनाव से सबक हासिल करना होगा। राजस्थान में अगर कांग्रेस ने बसपा, बेनीवाल की पार्टी, आदिवासियों की पार्टी और अन्य छोटी-छोटी पार्टियों को अपने साथ ले लिया होता तो इस समय भजनलाल शर्मा नहीं बल्कि अशोक गहलोत मुख्यमंत्री के आवास में बैठे होते।

दरअसल, राजस्थान की पराजय एक रणनीतिक पराजय भी है। 43 सीटें ऐसी हैं जिन पर विजेता भाजपा और पराजित कांग्रेस के बीच वोटों का अंतर किसी छोटी पार्टी के वोटों से कम है। कहना न होगा कि लोकसभा चुनाव में इन पार्टियों को कम वोट मिलने की संभावना रहती है, फिर भी इन्हें साथ रखने से विपक्ष का जमावड़ा बड़ा बनता है और गैर-भाजपा मतों का ध्रुवीकरण ठीक से हो जाता है।

इसी के साथ कांग्रेस को आदिवासी मतदाताओं वाले प्रदेशों के लिए महत्वपूर्ण आदिवासी नेताओं या किसी एक बड़े नेता की खोज शुरू कर देना चाहिए। भाजपा ने एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति और एक आदिवासी को छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बना कर अपना दीर्घकालीन दांव खेल दिया है। अभी तक कांग्रेस के पास इसकी कोई काट नहीं दिख रही है।

फिलहाल आंकड़े बता रहे हैं कि इस समय छत्तीसगढ़ को छोड़ कर कांग्रेस आदिवासी वोटों में भाजपा से आगे है। राजस्थान में उसके पास आदिवासियों के वोटों के संदर्भ में पांच प्रतिशत अंकों की बढ़त है, और मध्य प्रदेश में तो यह बढ़त बारह की है। भाजपा यहां जीती इसलिए है कि उसने अपने आदिवासी वोटों में ऊंची जाति के और ओबीसी वोटों को काफी जोड़ा है।

कहा जा रहा है कि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा का दूसरा हिस्सा शुरू करना चाहते हैं। मुझे लगता है कि अब इसका समय नहीं रह गया है। यह समय उनकी छवि सुधारने का नहीं है। यह विपक्षी एकता की छवि सुधारने का है। न ही यह समय मुसलमान वोटरों पर बहुत ज्यादा फोकस में समय गंवाने का है। मुसलमान तो पहले से ही कांग्रेस के साथ कटिबद्धता के साथ हैं।

मसलन, राजस्थान में 90 फीसदी और मध्य प्रदेश में 85 फीसदी मुसलमानों ने कांग्रेस को वोट दिया है। लेकिन, वे चुनाव के नतीजे को प्रभावित करने में सफल नहीं रहे। इसलिए कि भाजपा ने ज्यादा बड़ी हिंदू एकता कर दिखाई। कांग्रेस की चुनौती इस हिंदू एकता में सेंध लगाने की है, न कि मुसलमान वोट प्राप्त करने की।

ऊंची जातियों में भाजपा कांग्रेस से बहुत आगे है। ओबीसी जातियों में भी वह काफी आगे है। साठ के दशक से द्विज-ओबीसी एकता का जो फार्मूला आजमाया जा रहा है, वह संघ परिवार के अनथक प्रयासों से धरती पर उतरता दिख रहा है। जब तक यह समीकरण नहीं टूटेगा, मोदी और भाजपा को हराना मुमकिन नहीं होगा।

टॅग्स :नेता विपक्षइंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस (इंडिया)
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