सर्वोच्च न्यायालय के सोमवार को आए ऐतिहासिक फैसले के साथ ही अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को लेकर चल रहे विवाद, आरोप-प्रत्यारोप तथा राजनीति खत्म हो जानी चाहिए। जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में अनुच्छेद 370 का प्रावधान संविधान में अस्थायी तौर पर किया गया था। यह प्रावधान जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के बाद उत्पन्न संवेदनशील एवं जटिल हालात को देखकर किया गया था।
5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था। भाजपा जब जनसंघ के रूप में अस्तित्व में थी, तब भी वह अनुच्छेद 370 का विरोध करती थी। जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अनुच्छेद 370 का जमकर विरोध किया था। 1980 में जब जनसंघ के नए रूप में भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई, तब भी अनुच्छेद 370 पर उसने अपने रुख के साथ कोई समझौता नहीं किया।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने 1963 में लोकसभा में स्पष्ट रूप से कहा था कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी व्यवस्था है तथा समय के साथ वह खत्म हो जाएगा।
पं. नेहरू के इस कथन की आज सर्वोच्च न्यायालय ने भी पुष्टि की। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के मोदी सरकार के फैसले तथा उसके लिए अपनाई गई प्रक्रिया को पूरी तरह वैध करार दिया और कहा कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था।
फैसला सुनानेवाली पांच सदस्यीय पीठ में प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के अलावा न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति भूषण गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत का समावेश था। अनुच्छेद 370 निरस्त करने के फैसले पर पांच न्यायाधीशों के बीच सर्वसम्मति थी। पीठ ने फैसला सुनाते हुए यह भी कहा, ‘‘हमें नहीं लगता कि राष्ट्रपति की शक्ति का इस्तेमाल दुर्भावनापूर्ण था। हम राष्ट्रपति की शक्ति के प्रयोग को वैध मानते हैं।’’
कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को 20 से ज्यादा याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई थी। पांच न्यायाधीशों की पीठ ने दो हफ्तों से ज्यादा समय तक सुनवाई करने के बाद ऐतिहासिक फैसला सुनाया। मोदी सरकार के फैसले को चुनौती देने वालों का तर्क था कि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ही इस अनुच्छेद को निरस्त कर सकती थी।
चूंकि अब जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का अस्तित्व ही नहीं रहा, अत: अब इस अनुच्छेद को खत्म करने का अधिकार केंद्र सरकार को नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने भारतीय लोकतंत्र की खूबी को भी उजागर किया है। यह एक बेहद संवेदनशील मुद्दा था और उस पर फैसला करना किसी जोखिम से कम नहीं था।
सरकार ने दृढ़तापूर्वक फैसला लिया। उससे जो असहमत थे, उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया। देश की सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील मसला करार देकर किसी को अदालत में चुनौती देने से रोका नहीं गया। फैसला लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक प्रक्रियाओं का ईमानदारी से पालन करते हुए किया गया।
हम अपने पड़ोसी देशों चीन, पाकिस्तान, म्यांमार जैसे देशों को देखें तो वहां इस तरह के महत्वपूर्ण फैसले सरकार एकतरफा लेती है। ऐसे फैसलों को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती लेकिन हमारे देश में लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का अक्षरश: सम्मान एवं पालन किया जाता है। कश्मीर की जनता ने देश की मुख्य धारा से जुड़ने का समर्थन ही किया है। देश में कहीं अशांति नहीं फैली और न ही कोई उग्र आंदोलन हुआ।
देश के दूसरे हिस्सों के नागरिकों के साथ समरस होने का मौका पाकर कश्मीर की जनता ने एकता के धागों को और मजबूत किया। अनुच्छेद 370 निरस्त करते वक्त राज्य की जनता से जो वादे किए गए थे, उन्हें पूरा किया गया।
अदालत ने राज्य में 30 सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव करवाने के लिए कदम उठाने का निर्देश भी केंद्र सरकार को दिया है। विधानसभा चुनाव अनुच्छेद 370 निरस्त करने के कदम पर जनता की मुहर लगाने का एक और ठोस लोकतांत्रिक अवसर होगा।