Pahalgam Terror Attack: पूरे देश को हिला कर रख देने वाला, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा पर्यटकों पर किया गया हमला चर्चा में है. इतनी कड़ी सुरक्षा चौकसी वाले प्रांत में आखिर घटनास्थल के आसपास कोई सुरक्षा चौकी क्यों नहीं थी और दूसरी कौन सी कमियां थीं जिस कारण इतनी बड़ी घटना घटी, इसकी छानबीन जारी है. पर इसका एक अहम कोण यह भी है कि घटना के लिए जिम्मेदार तीन से चार आतंकवादी थे, जिन्होंने सेना और पुलिस की वर्दी पहन रखी थी. बेहद खूबसूरत बैसरन इलाके में तीन बजे दिन में आकर उन्होंने हमला किया.
स्वाभाविक है कि ऐसे हमलों में आतंकवादी पहले ही अपना लक्ष्य तय करते समय इस बात का आकलन कर लेते हैं कि वहां पर सुरक्षा बलों की तैनाती की स्थिति कैसी है. पर यह चिंताजनक बात है कि वे सेना और पुलिस की वर्दी में आए. ऐसा नहीं है कि वर्दी में वारदात कोई पहली बार हुई है.
पठानकोट के चर्चित हमले के बाद सेना और पुलिस की वर्दियों के दुरुपयोग पर खासी चर्चा के बाद सेना ने नागरिकों से सेना या उससे मिलती-जुलती वर्दी नहीं पहनने की अपील की थी. साथ ही दुकानदारों से कहा है कि वे सिविलियनों को ऐसे कपड़े नहीं बेचें. पूर्व सैनिकों के रिश्तेदारों से भी अपील की है कि वे सेना की वर्दी उपयोग में न लाएं.
बात केवल जम्मू-कश्मीर की ही नहीं है, दिल्ली तक में लाल किले पर आतंकवादी वारदात सेना की वर्दी में आए आतंकवादियों ने की थी. 2001 में झरौदा कला में सीआरपीएफ कैंप पर हमला वर्दी पहने आतंकवादियों ने किया था. बाद में पकड़े गए चार आतंकवादियों ने माना कि गोपीनाथ बाजार से उन्होंने वर्दियों को खरीदा था.
जाहिर है कि वर्दी बिक्री के केंद्रों पर प्रतिबंध लगाने के साथ उनकी टोपी, बेल्ट, बूट, दस्ताने और स्टार बनाने वालों के बीच अभियान चलाना चाहिए. अतीत में देखें तो पुलिस की वर्दी का इस्तेमाल काफी गिरोह करते रहे हैं. आजादी के बाद चंबल घाटी, बुंदेलखंड और दूसरे क्षेत्रों के डाकू गिरोहों ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश औऱ राजस्थान पुलिस की वर्दियों का उपयोग आरंभ किया था.
उन्होंने वर्दियों के हिसाब से डाकुओं के ग्रेड तक बना रखे थे. दिलचस्प बात यह है कि तमाम डाकुओं ने आत्मसमर्पण भी पुलिस की वर्दी में बाकायदा स्टार पहने हुए किया था. इस बाबत कानूनी व्यवस्था है कि पुलिस, सेना या अर्द्धसैन्य बलों से मिलती-जुलती वर्दी पहनते वालों पर मुकदमा चलाया जा सकता है. भारतीय दंड संहिता और शासकीय गुप्त बात अधिनियम में इसके लिए प्रावधान रहे हैं.
पर इसके तहत कभी-कभार ही कार्रवाई होती है. जब आतंकवादी मामलों में पड़ताल होती है तो पुलिस और प्रशासन का ध्यान उनके गिरोहों, हथियारों आदि पर खास तौर होता है. पर यह भी जरूरी है कि खुलेआम वर्दियों की उपलब्धता रोकी जाए. 1994 में रक्षा मंत्रालय ने गृह मंत्रालय के संज्ञान में यह बात रखी कि अनेक सिविलियन सेना के पैटर्न पर वर्दी, सामान और वाहन का उपयोग कर रहे हैं.
गृह मंत्रालय ने 14 अक्तूबर 1994 को और 18 नवंबर 1999 को सभी राज्यों को अनुदेश जारी किया कि अप्राधिकृत लोगों को इसकी बिक्री न हो. पर अनुदेश कागजी ही बना रहा. आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर और पंजाब तथा नक्सलवाद प्रभावित कई राज्यों में दर्जनों घटनाएं सेना और पुलिस की वर्दी में की हैं. ऐसी वर्दी गलत हाथों में पहुंचेगी तो साधारण नागरिक ही नहीं खुद जवान भी धोखा खा जाएंगे. इस नाते इस दिशा में ठोस पहल की दरकार है.