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अभिलाष खांडेकर का ब्लॉगः शहरी नियोजन आखिर क्यों है गड़बड़ ?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 15, 2023 9:08 AM

संविधान में शहरी मामले और नियोजन राज्य के विषय हैं। शीर्ष स्तर के शहरी बुनियादी ढांचे को विकसित करने की जिम्मेदारी राज्यों की है।

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भारत में शहरी नियोजन का हड़प्पा युग से एक लंबा और स्पृहणीय इतिहास रहा है, लेकिन अगर हम ‘आधुनिक और स्मार्ट’ भारतीय शहरों को देखें जो आज उपलब्ध सभी नवीनतम तकनीकी उपकरणों के साथ तैयार किए गए हैं, तो खुश होने जैसी कोई बात नहीं दिखती। अपने चारों ओर देखें तो आपको शहरों की दयनीय स्थिति ही दिखाई देगी, सभी शहर भारी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

जनसंख्या का दबाव वास्तविक है, लेकिन शहरीकरण की तीव्र गति (विश्व बैंक के अनुसार 34%) के साथ, भारतीय शहर प्रबंधकों और योजनाकारों से और अधिक अपेक्षा की जाती है कि वे अपने मौजूदा शहरों की तुलना में अधिक रहने योग्य शहर सुनिश्चित करें; सभी मौसमों के लिए भी बेहतर योजना बनाएं।

संविधान में शहरी मामले और नियोजन राज्य के विषय हैं। शीर्ष स्तर के शहरी बुनियादी ढांचे को विकसित करने की जिम्मेदारी राज्यों की है। स्पष्ट रूप से, वे शहरों को बेहतर बनाने और कर-भुगतान करने वाले नागरिकों को वह प्रदान करने के अपने प्रयासों में असफल हो रहे हैं जिसकी उनसे अपेक्षा की जाती है। दीर्घकालिक शहरी नियोजन, वायु प्रदूषण, कचरा संग्रहण, पर्यावरणीय मुद्दे, अपराध या नागरिक सुविधाएं- भारतीय शहर इन सभी समस्याओं से ग्रस्त हैं और नागरिकों को तनाव में डाल रहे हैं।

भारत में शहरी नियोजन और उसके क्रियान्वयन में क्या बाधा है? क्या यह क्षमता निर्माण का मुद्दा है? क्या यह वित्तीय समस्या है? क्या यह कोई राजनीतिक मुद्दा है? क्या शहरों की योजना वास्तव में इस क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा बनाई जाती है या आईएएस अधिकारियों की इस प्रक्रिया में नाहक ही बड़ी भूमिका है? या यह सिर्फ अव्यवस्थित बढ़ती शहरी आबादी के बारे में है।

मैं विशेष रूप से सभी राज्यों में समय-समय पर लाए जाने वाले ‘मास्टर प्लान’ की महत्ता को लेकर परेशान हूं। सबसे पहले राष्ट्रीय राजधानी के बारे में बात करें।  दिल्ली विकास अधिनियम 1957 में पारित किया गया जिसने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) का निर्माण किया। दिल्ली के लिए पहला व्यापक मास्टर प्लान (एमपीडी) 1 सितंबर 1962 को डीडीए द्वारा 20 वर्षों के परिप्रेक्ष्य के साथ लागू किया गया था। दूसरी एमपीडी (परिप्रेक्ष्य 2001) 1982 से पहले होनी थी लेकिन यह 1990 में आई और फिर 2021 की एमपीडी जिसे 2001 में लाया जाना चाहिए था, 2007 में प्रकाशित हुई। अब एक नई योजना (एमपीडी 2041) बनाई जा रही है, लगभग चार साल से। इस अंतरराष्ट्रीय शहर में हवा की गुणवत्ता और भारी यातायात की समस्या सबसे खराब है। फिर, सड़क पर जगह-जगह पानी इकट्ठा होना शर्मनाक है। लोगों की शिकायत यह है कि बढ़ते शहर, जिन्हें विकास का इंजन कहा जाता है, उन्हें आसान, आरामदायक जीवन के समाधान प्रदान करने में असमर्थ हैं। दूसरे शब्दों में, योजनाकार (और राजनेता) शहरों का आंकलन करते समय लोगों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे हैं। सैद्धांतिक रूप में कहें तो आज हम जो शहरी नियोजन प्रक्रिया देखते हैं, वह हजारों साल पहले अनुपस्थित थी। फिर भी, हमारे पास महान शहर थे जो अपनी योजना, आवास संरचनाओं और सुविधाओं के लिए जाने जाते थे। उज्जैन, काशी (वाराणसी), धोलावीरा, मदुरै, पटना आदि इसके जीवंत उदाहरण हैं।

दुख की बात है कि जब हम बेंगलुरु, भोपाल या पुणे को देखते हैं तो हमें ऐसी विकट शहरी समस्याएं दिखती हैं जिनके चलते या तो अचानक बाढ़ आती है या भीषण वायु प्रदूषण होता है या भूमि और आवास की कीमतें ऊंची होती हैं, पीने के पानी की कमी होती है, झुग्गियां बढ़ती रहती हैं और तालाब, पोखर व नदियों को सुरक्षित करने में लगभग पूरी तरह से शहर असफल होते हैं। एक स्थानीय उद्योगपति ने हाल ही में यातायात अव्यवस्था और बरसाती पानी की नालियों के जाम होने की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा, ‘बेंगलुरु शहर का आकर्षण ही इसका अभिशाप बन गया है।’ बेंगलुरु में लगभग 40 वर्षों में झीलों की संख्या 1000 से घटकर 200 हो गई है। पुणे में, मुला-मुठा  नदियां अविश्वसनीय अनुपात में सिकुड़ गई हैं। 

भोपाल का मामला गड़बड़ियों का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। आखिरी मास्टर प्लान यहां 2005 में प्रकाशित हुआ था, जबकि शहर अगले 18-19 वर्षों में बढ़ता रहा, हजारों अवैध इमारतें बनाई गईं और अनियोजित विकास जारी रहा। बीआरटीएस (बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम) का एक प्रयोग भोपाल एवं इंदौर में तत्कालीन जिला कलेक्टरों द्वारा किया गया था। दोनों शहर बीआरटीएस डिजाइन को कोस रहे हैं और नागरिकों की परेशानी बढ़ी है। दोनों मेट्रो की शुरुआत अब कर रहे हैं और दोनों को ‘स्मार्ट सिटी’ के अंतर्गत शामिल किया गया था, जो और कुछ भी हो लेकिन स्मार्ट नहीं बनी हैं।  

शहरी समस्याओं को और बढ़ाते हुए, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, जो चुनाव जीतने पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, ने घोषणा की है कि सभी अवैध रूप से निर्मित घरों और निर्माणों को वैध कर दिया जाएगा। इससे कई समझदार लोगों को बुरा लगा है क्योंकि इससे हर चुनाव से पहले नियमितीकरण को बढ़ावा मिलेगा। इस तरह के वोट लुभाने वाले राजनीतिक फैसले देश भर के आधुनिक शहरों के लिए मौत की घंटी बजा रहे हैं। दुर्भाग्य से, भोपाल अब ‘झुग्गी-राजधानी’ के रूप में बदनाम है, जहां कई छोटी और बड़ी ‘धारावी’ कीमती सरकारी जमीनों पर उग आई हैं। ‘झुग्गी-मुक्त शहर’ योजना बहुत पहले भुला दी गई है। यदि भारतीय शहरों को बेहतर ढंग से नियोजित करना है तो शहरी पेशेवर अनुभवी योजनाकारों को स्वतंत्रता देनी चाहिए, उनकी क्षमताओं में वृद्धि की जानी चाहिए और शहरी प्रशासन के लिए सख्त कानून लागू किए जाने चाहिए।

आवास और शहरी मामलों के केंद्रीय मंत्रालय ने हाल ही में शहरी नियोजन पर जोर देते हुए शहरी सुधारों के लिए एक समिति का गठन किया है। आशा है कि इससे कुछ अच्छा निकलेगा, और उम्मीद भी है की वह ‘स्मार्ट सिटी’ जैसा सिर्फ एक ‘जुमला’ न हो।

टॅग्स :बाढ़स्मार्ट सिटी योजना
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