जिनेवा: अलोकतांत्रिक और हिंसक तरीकों से सत्ता हासिल करने के बाद अंतरराष्ट्रीय मान्यता पाने के उम्मीद में लगे अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिनिधित्व देने से इनकार कर दिया है।
अफगानिस्तान की तालिबान के साथ ही म्यांमार में तख्तापलट कर नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू की और उनकी पार्टी के सदस्यों को जेल भेजकर अपना शासन स्थापित करने वाली सेना जुंटा को संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिनिधित्व नहीं दिया।
संयुक्त राष्ट्र की एक समिति ने बुधवार को इस पर फैसला टाल दिया कि संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान और म्यांमार का प्रतिनिधित्व कौन करेगा यानी अफगान तालिबान और म्यांमार के लोगों को अभी के लिए विश्व निकाय में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के वर्तमान सत्र के लिए सभी 193 सदस्यों की साख पर विचार करने के लिए संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में नौ सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र क्रेडेंशियल समिति की बैठक हुई जिसमें रूस, चीन और अमेरिका शामिल हैं।
बाद में समिति की अध्यक्ष और स्वीडन की राजदूत अन्ना करिन एनेस्ट्रोम ने संवाददाताओं से कहा कि समिति इन दो मामलों में साख के अपने निर्णय को टालती है।
हालांकि, उन्होंने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि क्या अफगानिस्तान और म्यांमार के मौजूदा राजदूत अभी भी अपने देशों का प्रतिनिधित्व करेंगे।
अमरुल्लाह सालेह ने जताई खुशी, कहा- तालिबान ने पाकिस्तान की मदद से किया कब्जा
संयुक्त राष्ट्र के फैसले पर खुशी जताते हुए अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में अफगान सीट इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान के वैध और संवैधानिक रूप से अनिवार्य प्रतिनिधियों के पास रहती है। हम संयुक्त राष्ट्र की साख समिति के इस निर्णय की सराहना करते हैं और स्वागत करते हैं और इसे अफगान पर भारी घावों को भरने के लिए एक कदम के रूप में देखते हैं।
उन्होंने पाकिस्तान पर हमला बोलते हुए कहा कि एक हिंसक, चरमपंथी और छद्म समूह तालिबान द्वारा देश पर जबरन कब्जा कर लिया गया है। तालिबानियों ने पाक से सैन्य सहायता, धोखे और शांति वार्ता में झूठ पर भरोसा किया और एक सैन्य अधिग्रहण को व्यवस्थित करने के लिए शांति की अखिल अफगान इच्छा का फायदा उठाया।
उन्होंने आगे कहा कि हालांकि इसने उन्हें कोई आंतरिक स्वीकृति या वैधता नहीं दी है। पूरे देश में विभिन्न रूपों और तरीकों से प्रतिरोध जारी है जिसमें अफगान महिलाएं सबसे मुखर और सबसे आगे रही हैं। तालिब न केवल बदले बल्कि व्यापक अफगान समाज के साथ व्यवहार करने में अधिक अहंकारी और क्रूर हो गए हैं।