ये कहानी उस समय की है जब स्वामी विवेकानंद अपने ज्ञान और विचारों के कारण पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो चुके थे। उनकी बातों को खूब सुना जा रहा था और इसे लेकर देश-विदेश में चर्चा हो रही थी। एक बार स्वामी विवेकानंद का अमेरिका जाना हुआ। अमेरिका की एक महिला तब उनसे और उनकी बातों से काफी प्रभावित थी। महिला को पता चला कि विवेकानंद आ रहे हैं तो उसने हर हालत में मन ही मन उनसे मुलाकात करने की ठान ली। उसके मन में ये बात थी कि जब वह विवेकानंद से मिलेगी तो उनके सामने शादी का प्रस्ताव रखेगी। यही हुआ। वह निश्चित समय पर उस जगह जा पहुंची जहां को विवेकानंद को एक सम्मेलन में हिस्सा लेना था। महिला को स्वामी विवेकानंद से मुलाकात का भी मौका मिल गया। वह विवेकानंद के पास गई और कहा, 'स्वामी जी मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं।' विवेकानंद ने ये सुनकर महिला से पूछा कि वह ऐसा क्यों करना चाहती है जबकि उसे भी मालूम है कि वे एक संन्यासी हैं। इस पर महिला ने विनम्रता के साथ जवाब दिया कि वह दरअसल स्वामी जी जैसा ही सुशील, गौरवशाली और तेजमय पुत्र चाहती है। महिला ने कहा कि ऐसा तभी संभव होगा जब वह उनसे शादी कर सकेगी।स्वामी विवेकानंद महिला की इस बात को सुनकर पहले मुस्कुराए और कहा कि ऐसा तो शादी के बिना भी ऐसा संभव है और इसका एक उपाय है। महिला भी हैरान रह गई और उसने पूछा डाला कि भला ऐसा कैसे होगा। इस पर विवेकानंद जी ने कहा कि मैं खुद ही आपका पुत्र बन जाता हूं और आप मेरी मां बन जाएं। इतना सुनते हुए महिला की आंखे खुल गई। उसने कहा, 'स्वाजी जी आपने अपने संन्यास को बनाए रखते हुए मेरी भी समस्या का हल कर दिया। आप धन्य हैं। मैं आपको पुत्र रूप में तो स्वीकार नहीं कर सकती लेकिन आपकी आजीवन शिष्या जरूर बनी रहूंगी।'