Ravidas Jayanti 2020: संत रविदास जी की आज जयंती है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार संत रविदास की जयंती हर साल माघ पूर्णिमा को मनाई जाती है। 15वीं सदी के समाज सुधारक और महान संतों में शामिल रविदास जी का जन्म वाराणसी के पास एक गांव में हुआ था। रविदास जी को ही संत रैदास भी कहा जाा है। संत रविदास के बारे में कहा जाता है कि वे मीराबाई के गुरु भी थे। हालांकि, इस बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
रविदास जी अपने दोहों और कविताओं के जरिए उस समय समाज में चल रही बुराइयों जैसे छूआ-छूत और दूसरे आडंबरों पर तंज भी कसते थे। उन्होंने कई ऐसे दोहों, कविताओं, कहावतों की रचना की जो आज भी काफी प्रचलित हैं। आईए रविदास जंयती के मौके पर पढ़ते हैं उनके कुछ दोहे...
1. जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात
अगर केले के तने को छिला जाये पत्ते के नीचे पत्ता ही निकलता है और अंत में पूरा खाली निकलता है। पेड़ मगर खत्म हो जाता है। वैसे ही इंसान को जातियों में बांट दिया गया है। इंसान खत्म हो जाता है मगर जाति खत्म नहीं होती है। इसलिए रविदास जी का कहना है कि जब तक जाति खत्म नहीं होगीं, तब तक इंसान एक दूसरे से जुड़ नही सकता है, कभी भी एक नहीं हो सकता है।
2. रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन रामसो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम
जिसके दिल में दिन-रात राम रहते है। उस भक्त को राम समान ही मानना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि न तो उनपर क्रोध का असर होता है और न ही काम की भावना उस पर हावी होती है।
3. मन चंगा तो कठौती में गंगा
अगर आपका मन और दिल दोनो साफ हैं, तो आपको ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है अर्थात उनके मन अंदर निवास कर सकते हैं।
4. हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आसते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास
जो मनुष्य ईश्वर की भक्ति छोड़कर दूसरी चीजों को ज्यादा महत्व देता है, उसे अवश्य ही नर्क में जाना पड़ता है। इसलिए इंसान को हमेशा भगवान की भक्ति में ध्यान लगाना चाहिए और इधर-उधर भटकना नहीं चाहिए।
5. कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखावेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा
राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव ये सभी एक ही ईश्वर के अलग-अलग नाम है। वेद, कुरान, पुराण में भी एक ही परमेश्वर का गुणगान है। सभी भगवान की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते है।
6. जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बासप्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास
जिस रविदास को देखने से लोगों को घृणा आती थी। उनका निवास नर्क कुंद के समान था। ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना सच में फिर से उनकी मनुष्य के रूप में उत्पत्ति हो जाने जैसी है।
7. 'रविदास' जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच,नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच
इसका मतलब ये हुए कि इंसान कभी जन्म से नीच नहीं होता है। वह अपने बुरे कर्मों से ही नीच बनता है।