World Athletics Championships 2023: 23 सितंबर से कामयाबी जारी है। 6 दिन में तीन बड़े कारनामे भारत में देखें गए। भारतीय खेलों के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया। पूरा देश कामयाबी की चकाचौंध में डूब गया है और फैंस-भारतीय खुशी मना रहे हैं।
चंद्रयान 3 की कामयाबी, फिडे शतरंज विश्व कप में उपविजेता रहे आर प्रज्ञानंंद की सफलता के बाद नीरज चोपड़ा के विश्व चैम्पियन बनने के साथ भारत के लिये बीता सप्ताह ऐतिहासिक रहा। एक ही समय में ओलंपिक और विश्व खिताब जीतने वाले चोपड़ा अब बिंद्रा के बाद दूसरे भारतीय खिलाड़ी बन गए।
चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग के बाद भारत ऐसा करने वाला विश्व का पहला देश बन गया है। 600 करोड़ रुपये की लागत वाला चंद्रयान-3 अभियान लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (एलवीएम-3) रॉकेट के जरिए 14 जुलाई को शुरू हुआ था और आज तक इसने 41 दिन का सफर तय कर लिया है।
ग्रैंडमास्टर आर प्रज्ञानंदा ने फिडे विश्व कप फाइनल खेलने वाले विश्वनाथन आनंद के बाद दूसरे और सबसे युवा भारतीय खिलाड़ी बनकर भारतीय शतरंज के इतिहास का सुनहरा अध्याय लिख डाला। भारत के 18 वर्ष के इस खिलाड़ी को फाइनल में दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी नॉर्वे के मैग्नस कार्लसन ने हराया।
एक ही समय पर ओलंपिक और विश्व खिताब जीतने वाले वह तीसरे भालाफेंक खिलाड़ी बन गए। उनसे पहले चेक गणराज्य के जान जेलेज्नी और नॉर्वे के आंद्रियास टी यह कारनामा कर चुके हैं। जेलेज्नी ने 1992, 1996 और 2000 में ओलंपिक खिताब जीते जबकि 1993, 1995 और 2001 में विश्व चैम्पियनशिप जीती थी।
आंद्रियास ने 2008 ओलंपिक और 2009 विश्व चैम्पियनशिप जीते थे। अब चोपड़ा के नाम खेल के सारे खिताब हो गए हैं। उन्होंने एशियाई खेल (2018), राष्ट्रमंडल खेल (2018) स्वर्ण के अलावा चार डायमंड लीग खिताब और पिछले साल डायमंड लीग चैम्पियन ट्रॉफी जीती। वह 2016 में जूनियर विश्व चैम्पियन रहे और 2017 में एशियाई चैम्पियनशिप खिताब जीता।
अपना वजन कम करने के लिये खेलना शुरू करने वाले नीरज चोपड़ा का हरियाणा के एक गांव से भारतीय खेलों के सबसे बड़े सितारों में नाम दर्ज कराने तक का सफर इतना गौरवमयी रहा है कि हर कदम पर एक नयी विजयगाथा वह लिखते चले जा रहे हैं। दो साल पहले टोक्यो में उन्होंने ओलंपिक ट्रैक और फील्ड स्पर्धा में भारत की झोली में पहला पीला तमगा डाला।
उस समय उनकी उम्र सिर्फ 23 साल थी और महान निशानेबाज अभिनव बिंद्रा के बाद ओलंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण जीतने वाले वह दूसरे भारतीय बने। खेलों के महासमर में एथलेटिक्स में लंबे समय से पदक का सपना संजोये बैठे भारत को रातोंरात मानों एक चमकता हुआ सितारा मिल गया।
बिंद्रा ने बीजिंग ओलंपिक 2008 में दस मीटर एयर राइफल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था। इससे पहले भारतीय हॉकी टीम ने भारत की झोली में आठ स्वर्ण डाले थे। अब रविवार को बुडापेस्ट में विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण जीतकर चोपड़ा ने भारतीयों को गौरवान्वित होने का एक और मौका दिया है। बिंद्रा ने 23 वर्ष की उम्र में विश्व चैम्पियनशिप और 25 की उम्र में ओलंपिक स्वर्ण जीता था।
फिटनेस का स्तर बनाये रखने पर चोपड़ा अभी कई नये आयाम छू सकते हैं। वह कम से कम दो ओलंपिक और दो विश्व चैम्पियनशिप और खेल सकते हैं। विश्व जूनियर चैम्पियनशिप 2016 जीतकर पहली बार विश्व स्तर पर चमके चोपड़ा ने टोक्यो में स्वर्ण जीतकर भारतीय खेलों के इतिहास में नाम दर्ज करा लिया था। पूरे देश ने जिस तरह उन पर स्नेह बरसाया, वह अभूतपूर्व था।
ऐसा तो अब तक क्रिकेटरों के लिये ही देखने को मिला था। टोक्यो के बाद उन्हें अनगिनत सम्मान समारोहों में भाग लेना पड़ा जिससे उनका वजन बढ़ गया और वह इतने आयोजनों के कारण अभ्यास नहीं कर सके । लेकिन फिर उन्होंने इसे नहीं दोहराने का प्रण लिया। टोक्यो ओलंपिक के बाद चोपड़ा आनलाइन सबसे ज्यादा सर्च किये जाने वाली भारतीय हस्ती बने।
विराट कोहली और रोहित शर्मा से भी ऊपर। प्रायोजकों की मानों उनके दरवाजे पर कतार लग गई। ट्विटर और इंस्टाग्राम पर उनके फालोअर बढ़ते चले गए। पिछले साल दिसंबर में वह फर्राटा धावक उसेन बोल्ट को पछाड़कर दुनिया के ऐसे एथलीट बन गए जिनके बारे में सबसे ज्यादा लिखा गया है। उनके नाम से 812 लेख छपे हैं।
तोक्यो ओलंपिक के बाद से प्रदर्शन में निरंतरता उनकी सफलता की कुंजी रही है। पिछले दो साल में हर टूर्नामेंट में उन्होंने 86 मीटर से ऊपर का थ्रो फेंका है। पिछले साल जून में स्टॉकहोम डायमंड लीग में उन्होंने 89 . 94 मीटर का थ्रो फेंककर दूसरा स्थान हासिल किया था। चोपड़ा भले ही बिंद्रा की तरह वाकपटु नहीं हो लेकिन अपनी विनम्रता से हर किसी का मन मोह लेते हैं।
भारत में और विदेश में भी सेल्फी या आटोग्राफ मांगने वालों को निराश नहीं करते । वह दिल से बोलते हैं और अपने हिन्दी भाषी होने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती । बचपन में बेहद शरारती चोपड़ा संयुक्त परिवार में पले और लाड़ प्यार में वजन बढ़ गया।
परिवार के जोर देने पर वजन कम करने के लिये उन्होंने खेलना शुरू किया। उनके चाचा उन्हें पानीपत के शिवाजी स्टेडियम ले जाते। उन्हें दौड़ने में मजा नहीं आता लेकिन भाला फेंक से उन्हें प्यार हो गया। उन्होंने इसमें हाथ आजमाने की सोची और बाकी इतिहास है जिसे शायद स्कूल की किताबों में बच्चे भविष्य में पढ़ेंगे।
(इनपुट एजेंसी)