पटनाः बिहार की सियासत में जारी उतार-चढ़ाव के बीच राम कृपाल यादव ने राजनीतिक धरातल पर कई रूपों में खुद को साबित किया है। राम कृपाल यादव वह नेता हैं, जिसने वफादारी, बगावत और सत्ता, तीनों के रंग करीब से देखे हैं। एक समय लालू प्रसाद यादव के सबसे भरोसेमंद सिपाही माने जाने वाले राम कृपाल तीन दशकों तक राजद की राजनीति के केंद्र में रहे। संगठन से लेकर रणनीति तक, वे लालू की हर राजनीतिक योजना का हिस्सा थे। 2014 में उनकी राजनीतिक यात्रा ने ऐसा मोड़ लिया जिसने बिहार की सियासत ही नहीं, उनकी पहचान भी बदल दी।
राजद की भीतरी खींचतान छोड़कर उन्होंने भाजपा का दामन थामा और आज बिहार में पहली बार मंत्री बन गए। 12 अक्टूबर 1957 को जन्मे राम कृपाल यादव ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत स्थानीय निकायों से की और पटना के मेयर भी बने। इसके बाद उनकी पहचान एक जमीनी नेता के रूप में मजबूत होती गई।
राजद के टिकट पर वे तीन बार लोकसभा सांसद चुने गए और लगातार अपनी पकड़ साबित करते रहे। लेकिन 2014 में पार्टी के अंदरूनी विवादों, टिकट बंटवारे पर असहमति और नेतृत्व से मतभेद के चलते राम कृपाल यादव ने राजद से नाता तोड़ लिया। यही फैसला उनके जीवन का सबसे बड़ा राजनीतिक मोड़ साबित हुआ।
उन्होंने भाजपा का दामन थामा और पाटलिपुत्र सीट से चुनाव मैदान में उतरे जहां मुकाबला लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती से था। राम कृपाल यादव ने मीसा भारती को हराकर भाजपा के लिए पाटलिपुत्र जैसी प्रतिष्ठित सीट जीती। यहीं से उनकी नई राजनीतिक यात्रा की शुरुआत हुई।
2014-2019 के बीच वे केंद्र सरकार में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री रहे और ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर, सड़क, आवास और मनरेगा से जुड़े कई कार्यक्रमों पर काम किया। 2019 में भी वे सांसद चुने गए, लेकिन 2024 के चुनाव में उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद उनकी भूमिका संगठन और राज्य के राजनीतिक समीकरणों में अधिक दिखाई देने लगी।
इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें दानापुर विधानसभा सीट पर उतारा और उन्होंने राजद के बाहुबली उम्मीदवार रीतलाल यादव को परास्त कर अपनी मजबूत पकड़ दिखा दी। अब राजनीतिक यात्रा का एक और बड़ा पड़ाव आज दर्ज हो गया। एनडीए सरकार के गठन के साथ ही राम कृपाल यादव ने नीतीश सरकार में मंत्री पद की शपथ ली।
जानकारों की मानें तो यह सिर्फ मंत्री पद नहीं, बल्कि उनकी लंबी, संघर्षपूर्ण और बहुआयामी राजनीतिक यात्रा की एक नई शुरुआत है। भाजपा ने उन्हें मंत्रालय देकर यह संदेश भी दिया है कि बिहार की नई सत्ता संरचना में अनुभवी और जमीनी नेताओं की भूमिका निर्णायक होगी।
भाजपा में आने के बाद से वे लगातार राज्य की राजनीति में सक्रिय रहे। विभिन्न यादव बहुल इलाकों में उनकी पकड़ पार्टी के लिए उपयोगी मानी जाती है। एनडीए सरकार में यादव समाज से प्रतिनिधित्व बढ़ाने का यह एक रणनीतिक कदम भी माना जा रहा है।