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तलाक-ए-हसन मामले में महिलाओं के पतियों को सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस, 11 अक्टूबर को अगली सुनवाई

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 29, 2022 3:17 PM

'तलाक-ए-हसन' मामले में चुनौती करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के पतियों को भी पक्षकार बनाने की बात कही है। इसे लेकर पतियों को नोटिस भी जारी किया गया है। 11 अक्टूबर को मामले की अगली सुनवाई होगी।

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 'तलाक-ए-हसन' और तलाक के अन्य स्वरूपों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के मामले में सोमवार को सुनवाई करते हुए इसे दायर करने वाली दो अलग-अलग महिलाओं के पतियों को नोटिस जारी किया। 'तलाक-ए-हसन' भी इस्लाम में तलाक देने का एक तरीका है। हालांकि इसमें तीन महीने में तीन बार एक निश्चित अंतराल के बाद तलाक बोलकर रिश्ता खत्म किया जाता है। 

इस्लाम में पुरुष ‘तलाक’ ले सकता है जबकि कोई महिला ‘खुला’ के जरिए अपने पति से अलग हो सकती है। याचिका में दावा किया गया है कि तलाक के ये तरीके 'मनमाने, असंगत और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।' मामले में अगली सुनवाई अब 11 अक्टूबर को होगी।

इससे पहले 16 अगस्त को हुई पिछली सुनवाई में कहा था कि मुस्लिमों में ‘तलाक-ए-हसन’ के जरिए तलाक देने की प्रथा तीन तलाक की तरह नहीं है और महिलाओं के पास भी ‘खुला’ का विकल्प है। 

जस्टिस एस के कौल और जस्टिस एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि अगर पति और पत्नी एक साथ नहीं रह सकते तो रिश्ता तोड़ने के इरादे में बदलाव न होने के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत तलाक दिया जा सकता है।

पीठ ने कहा था, ‘यह उस तरीके से तीन तलाक नहीं है। विवाह एक तरह का करार होने के कारण आपके पास खुला का विकल्प भी है। अगर दो लोग एक साथ नहीं रह सकते, तो हम भी शादी तोड़ने का इरादा न बदलने के आधार पर तलाक की अनुमति देते हैं। अगर ‘मेहर’ (दूल्हे द्वारा दुल्हन को नकद या अन्य रूप में दिया जाने वाला उपहार) दिया जाता है तो क्या आप आपसी सहमति से तलाक के लिए तैयार हैं?’ 

इसने कहा, ‘प्रथम दृष्टया, हम याचिकाकर्ताओं से सहमत नहीं है। हम इसे किसी भी वजह से कोई एजेंडा नहीं बनाना चाहते।’ 

याचिकाकर्ता बेनजीर हीना की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पिंकी आनंद ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया था लेकिन उसने तलाक-ए-हसन के मुद्दे पर फैसला नहीं दिया था। शीर्ष न्यायालय ने आनंद से यह भी निर्देश लेने को कहा कि यदि याचिकाकर्ता को ‘मेहर’ से अधिक राशि का भुगतान किया जाता है तो क्या वह तलाक की प्रक्रिया पर समझौता करने के लिए तैयार होगी। 

उसने याचिकाकर्ता से यह भी कहा कि ‘मुबारत’ के जरिए इस अदालत के हस्तक्षेप के बिना भी शादी तोड़ना संभव है। गाजियाबाद की रहने वाली हीना ने सभी नागरिकों के लिए तलाक के समान आधार और प्रक्रिया बनाने के वास्ते केंद्र को निर्देश दिए जाने का भी अनुरोध किया है। हीना ने दावा किया कि वह ‘तलाक-ए-हसन’ की पीड़िता है। 

(भाषा इनपुट)

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