सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और उन पर सवाल उठाने वाले चार वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस जे चेलेश्वरम, जस्टिस जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कूरियन जोसेफ बुधवार (17) को लंच पर मुलाकात कर रहे हैं। इससे पहले मंगलवार (16 जनवरी) को सीबीआई की विशेष अदालत के दिवंगत जज बीएच लोया की मौत की जाँच के लिए दायर याचिका की सुनवाई करने वाली पीठ ने इस बात का संकेत दिया की यह मामला किसी और पीठ को सौंपा जा सकता है।
मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई के बाद शाम को सुप्रीम कोर्ट ने लिखित आदेश जारी किया। आदेश में याचिकाकर्ताओं को जज लोया की मौत से जुड़े दस्तावेज देने के आदेश के साथ ही जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस मोहन एम शांतनागौदर की पीठ ने ऐसा संकेत दिया जिससे ये अटकल लगने लगी कि ये मामला नई पीठ को सौंपा जा सकता है। सु्प्रीम कोर्ट के इस आदेश में कहा गया,"सभी दस्तावेज सात दिनों के अंदर जमा करें और उचित हुआ तो उसकी प्रतियां याचिकाकर्ताओं को दी जाएं। और मामले को उचित पीठ के सामने रखा जाए।" अदालत ने जिस तरह आदेश में "उचित पीठ" का जिक्र किया उसी से अटकलों को बल मिला है। मंगलवार को जस्टिस मिश्रा और जस्टिस शांतनागौदर की पीठ ने मामले की सुनवाई स्थगित कर दी और अगली कोई तारीख नहीं दी।
सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों जस्टिस जे चेलेश्वरम, जस्टिस जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कूरियन जोसेफ ने 12 जनवरी को प्रेस वार्ता करके सुप्रीम कोर्ट में मामलों को विभिन्न पीठों को सुनवाई के लिए आवंटित करने पर सवाल उठाया था। प्रेस वार्ता में जस्टिस गोगोई ने इशारा किया था कि जज बीएच लोया की मौत की जाँच से जुड़ी पीआईएल की सुनवाई को लेकर चीफ जस्टिस से उनके मतभेद हैं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने जज लोया की मौत का मामला जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ को सौंपा था। माना जा रहा है कि चार जजों को इस पर ऐतराज था। सवाल उठाने वाले चारों जज सुप्रीम कोर्ट के पाँच वरिष्ठतम जस्टिस हैं। न्यायाधीश अरुण मिश्रा वरिष्ठता क्रम में 10वें न्यायाधीश हैं।
12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार बीआर लोने और पूर्व कांग्रेसी नेता तहसीन पूनावाला की पीआईल पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र सरकार को जज बीएच लोया की मौत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और अन्य दस्तावेज अदालत में पेश करने का आदेश दिया था। 16 जनवरी को महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने शीर्ष अदालत को सीलबंद लिफाफे में दस्तावेज सौंपे और कहा कि इनमें से कुछ दस्तावेज गोपनीय प्रकृति के हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद हरीश साल्वे ने कहा कि वो ये दस्तावेज याचिकाकर्ताओं को इस आश्वासन के बाद दे सकते हैं कि उन्हें सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।
जज लोया की मौत दिसंबर 2014 में हुई थी। मृत्यु के समय वो सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे। इस मामले में अमित शाह भी एक अभियुक्त थे जिन्हें बाद में इससे बरी कर दिया गया। सरकारी दस्तावेज के अनुसार जज बीएच लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई। नवंबर 2017 में द कारवां पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में जज लोया की मौत पर सवाल उठाए गये। रिपोर्ट में जज की बहन और कुछ अन्य रिश्तेदारों ने मृत्यु की परिस्थिति को लेकर सवाल उठाए थे। हालांकि बाद में जज लोया का परिजनों और हाल ही में उनके बेटे ने मीडिया से कहा कि उन्हें इस मामले में किसी तरह शंका नहीं है।
बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने आठ जनवरी को बॉम्बे हाई कोर्ट में भी जज लोया की मौत की जाँच से जुड़ी एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की हुई है जिस पर अदालत सुनवाई कर रही है।