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CJI रंजन गोगोई के नाम रहे अनेक महत्वपूर्ण फैसले, आखिरी कार्य दिवस कोर्टरूम में ऐसे बिताए चार मिनट

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 16, 2019 9:18 AM

भारत के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट के कक्ष संख्या एक में पीठ में अंतिम बार शामिल हुए. न्यायमूर्ति गोगोई महज चार मिनट के लिए इस पीठ में बैठे. पीठ में उनके अतिरिक्त न्यायमूर्ति एस.ए. बोबड़े भी थे, जो देश के अगले प्रधान न्यायाधीश बनने वाले हैं.

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ठळक मुद्देन्यायमूर्ति गोगोई रविवार 17 नवंबर को अपने पद से सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं उनका कार्यकाल 13 महीने से कुछ अधिक समय का रहाऐतिहासिक अयोध्या फैसला वह अपनी निर्भीकता और साहस के लिए जाने जाते हैं.

उच्चतम न्यायालय की पीठ की शुक्रवार को अंतिम बार अध्यक्षता करने वाले प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दों पर कुछ महत्वपूर्ण फैसले दिए और अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करा लिया. इनमें अयोध्या का 'राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद विवाद' मामला प्रमुख है. न्यायमूर्ति गोगोई रविवार 17 नवंबर को अपने पद से सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं, लेकिन शुक्रवार उनका अंतिम कार्य दिवस था. उनका कार्यकाल 13 महीने से कुछ अधिक समय का रहा. ऐतिहासिक अयोध्या फैसला वह अपनी निर्भीकता और साहस के लिए जाने जाते हैं.

भारत के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट के कक्ष संख्या एक में पीठ में अंतिम बार शामिल हुए. शीर्ष अदालत का कक्ष संख्या एक प्रधान न्यायाधीश का कक्ष होता है. न्यायमूर्ति गोगोई महज चार मिनट के लिए इस पीठ में बैठे. पीठ में उनके अतिरिक्त न्यायमूर्ति एस.ए. बोबड़े भी थे, जो देश के अगले प्रधान न्यायाधीश बनने वाले हैं. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश खन्ना ने बार की ओर से प्रधान न्यायाधीश के प्रति आभार व्यक्त किया.

न्यायमूर्ति गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने नौ नवंबर को अयोध्या भूमि विवाद का पटाक्षेप कर दिया. यह मामला दशकों पुराना था. प्रधान न्यायाधीश गोगोई की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ ने अपने फैसले में हिंदुओं को राम मंदिर के निर्माण के लिए 2.77 एकड़ विवादित भूमि सौंप दी और यह आदेश भी दिया कि मुसलमानों को इस पवित्र नगरी में एक मस्जिद बनाने के लिए किसी प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन दी जाए. अयोध्या मामले में उन्होंने तय किया कि दलीलों को लंबे समय तक खींचे जाने की इजाजत नहीं दी जाएगी और 18 अक्टूबर की निर्धारित समय सीमा से दो दिन पहले ही यह कहते हुए सुनवाई पूरी कर दी कि 'बस बहुत हो गया.'

उठाए थे सवाल

न्यायमूर्ति गोगोई उन चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों में शामिल थे जिन्होंने पिछले साल जनवरी में संवाददाता सम्मेलन कर तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा) के कामकाज के तरीके पर सवाल उठाए थे. न्यायमूर्ति गोगोई और शीर्ष न्यायालय के तीन अन्य न्यायाधीशों, न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, ने 12 जनवरी 2018 को अभूतपूर्व कदम उठाते हुए संवाददाता सम्मेलन कर आरोप लगाया था कि उच्चतम न्यायालय में प्रशासन और मुकदमों का आवंटन सही तरीके से नहीं हो रहा.

सबरीमाला मामला

सीजेआई गोगोई ने उस पीठ की भी अध्यक्षता की जिसने सबरीमाला मामले में 3-2 के बहुमत से फैसला दिया. उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने केरल के सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के 2018 के फैसले पर पुनर्विचार की याचिका के साथ ही मुस्लिम और पारसी महिलाओं के साथ कथित रूप से भेदभाव करने वाले अन्य विवादास्पद मुद्दों को फैसले के लिये बृहस्पतिवार को सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा लिखे गए बहुमत के निर्णय में पुनर्विचार याचिकायें सात न्यायाधीशों की पीठ के लिए लंबित रखी गई, लेकिन उसने 28 सितंबर, 2018 के बहुमत के फैसले पर रोक नहीं लगाई जो सभी आयु वर्ग की महिलाओं को इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति देता है.

नेताओं की तस्वीर पर पाबंदी

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति पी.सी.घोष की पीठ ने सरकारी विज्ञापनों में नेताओं की तस्वीर लगाने पर पाबंदी लगा दी थी. फैसले के बाद से सरकारी विज्ञापन में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश, संबंधित विभाग के केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, संबंधित विभाग के मंत्री के अलावा किसी भी नेता की सरकारी विज्ञापन पर तस्वीर के प्रकाशन पर पाबंदी है.

सात भाषाओं में फैसला

उच्चतम न्यायालय के फैसलों को अंग्रेजी और हिंदी समेत 7 भाषाओं में प्रकाशित करने का फैसला प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने ही लिया. इससे पहले तक उच्चतम न्यायालय के फैसले केवल अंग्रेजी में ही प्रकाशित होते थे.

राफेल मामला

न्यायमूर्ति गोगोई का नाम उस पीठ की अध्यक्षता करने के लिए भी याद रखा जाएगा, जिसने राफेल लड़ाकू विमान सौदे के मामले में दो बार मोदी सरकार को 'क्लीन चिट' दी. पहली बार रिट याचिका पर और फिर दूसरी बार बृहस्पतिवार को पुनर्विचार याचिकाओं पर. इन याचिकाओं के जरिए राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे पर शीर्ष न्यायालय के 14 दिसंबर 2018 के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया था. साथ ही, पीठ ने शीर्ष न्यायालय की कुछ टिप्पणियों को गलत तरीके से कहने को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी को भविष्य में अधिक सावधानी बरतने की नसीहत दी.

सुप्रीम कोर्ट भी आरटीआई के अधीन

देश के 46 वें एवं पूर्वोत्तर के किसी राज्य से भारत के प्रथम सीजेआई न्यायमूर्ति गोगोई ने उस पीठ की भी अध्यक्षता की जिसने 13 नवंबर को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि प्रधान न्यायाधीश का कार्यालय सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकार है. हालांकि, पीठ ने यह भी कहा कि सार्वजनिक हित में सूचना का खुलासा करते हुए न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ध्यान में रखा जाए.

आरोपों को किया सामना

सीजेआई के पद पर न्यायमूर्ति गोगोई का कार्यकाल विवादों से अछूता नहीं रहा. उन्हें यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना करना पड़ा. हालांकि, वह इसमें पाक-साफ करार दिए गए. न्यायमूर्ति एस.ए. बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय एक आंतरिक जांच समिति ने उन्हें इस मामले में 'क्लीन चिट' दे दी.

कुछ अन्य मामले

सीजेआई गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ ने सरकार को झटका देते हुए विभिन्न न्यायाधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति और सेवा शर्तों के संबंध में केंद्र द्वारा बनाए गए नियमों को खारिज कर दिया.

-न्यायालय ने धन विधेयक के रूप में वित्त अधिनियम 2017 को पारित कराने की वैधता की जांच के लिए इसे बड़ी पीठ के पास भेज दिया. -उस पीठ की अध्यक्षता की, जिसने उनके गृह राज्य असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी को तैयार करने की प्रक्रिया की निगरानी की. विवाद के बीच वह अपने रुख पर अडिग रहे.

-सीजेआई पद पर रहने के दौरान उन्होंने गलती करने वाले न्यायाधीशों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की.

-एक उच्च न्यायालय की एक महिला मुख्य न्यायाधीश का तबादला किया, जिन्होंने इसके बाद पद से इस्तीफा दे दिया था.

अंतिम कार्यदिवस

उच्चतम न्यायालय के कक्ष संख्या एक में पीठ में अंतिम बार शुक्रवार को शामिल हुए. न्यायमूर्ति गोगोई महज चार मिनट के लिए इस पीठ में बैठे. पीठ में उनके अतिरिक्त न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे़ भी थे, जो देश के अगले प्रधान न्यायाधीश बनने वाले हैं. इसके बाद उन्होंने राजघाट जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की. वह तीन अक्तूबर 2018 को सीजेआई पद की शपथ लेने के बाद भी राष्ट्रपिता के समाधि स्थल पर गए थे.

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