जम्मू-कश्मीर में मौजूदा हालात तनावपूर्ण हैं। सैनिकों की संख्या बढ़ा दी गई है। इंटरनेट और मोबाइल सेवाएं बंद हैं। मुख्यधारा के कई बड़े नेताओं को नजरबंद कर दिया गया है। तमाम घटनाएं इस बात की तरफ इशारा कर रही हैं कि कश्मीर में कुछ बड़ा होने वाला है। क्या 72 साल पुरानी समस्या का कोई पुख्ता समाधान निकलेगा? जानिए 1947 का वो पूरा घटनाक्रम जब कश्मीर का भारत में विलय हुआ था।
15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी से पहले 500 से ज्यादा रियासतें थी। तीन देशी रियासतों को छोड़कर अधिकांश ने भारत में विलय कर लिया। ये तीन रियासतें थीं- जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के अनुसार रियासतों के शासकों पर निर्भर था कि वे भारत या पाकिस्तान में से किसे चुनते हैं। जूनागढ़ और हैदराबाद बाद में भारत में शामिल हो गए लेकिन असली फैसला कश्मीर में लिया जाना था।
कश्मीर रियासत की लगभग तीन चौथाई आबादी मुसलमानों की थी लेकिन इसके राजा हरि सिंह हिंदू थे। तत्कालीन लोकप्रिय नेता शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर के भारत में विलय का समर्थन किया था लेकिन राजा हरि सिंह बेहद धीमी गति से विचार कर रहे थे। 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली लेकिन कश्मीर ने विलय पर निर्णय नहीं लिया।
24 अक्टूबर 1947 का दिन था। पाकिस्तान समर्थित हजारों कबायली पठानों ने कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी। मार-काट को अंजाम देते हुए ये कबायली राजधानी श्रीनगर की ओर बढ़ने लगे। पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने की योजना बनाई थी।
गैर-मुस्लिमों की हत्या और लूटपाट की खबरें पाकर हरिसिंह 25 अक्टूबर 1947 को श्रीनगर छोड़कर भाग गए। उन्हें जम्मू स्थित महल पहुंचा दिया गया। कबायली आक्रमण से घबराए हरि सिंह ने भारत से मदद की गुहार लगाई।
इस घड़ी में बिना विलय हुए भारत ने मदद से इनकार कर दिया। 25 अक्टूबर 1947 को ही सरदार पटेल के करीबी और गृह मंत्रालय के सचिव वीपी मेनन कश्मीर पहुंचे और विलय के दस्तावेज पर महाराजा से दस्तखत करवा लिए। इस तरह कश्मीर का भारत में विलय हुआ और भारत ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए तुरंत सैन्य सहायता भेज दी।