बिलासपुर के गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के साप्ताहिक साहित्यिक कार्यक्रम “साहित्य वार्ता” की कड़ी में शुक्रवार को विश्वविद्यालय के कुलपति और कवि प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल का कविता पाठ हुआ। प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल ने अपनी कविताओं का पाठ किया।
उन्होने प्रेम की अभिव्यक्ति से कविता की शुरुआत करते हुए जीवन की त्रासदी पर ले जाकर खत्म किया। जीवन का विस्तार समुद्र में करते हुए उन्होने कामना की कि क्यों न समुद्र बन जाऊँ। समुद्र की गहराई! समुद्र की शांति! उसी प्रकार की शांति हमें जीवन में आवश्यक होती है।
उनकी कविताओं में आत्मीय आग्रह है और प्रेम भी है, नदी भी है, झरने भी हैं और इसी निसर्ग के बीच एक धब्बे की तरह यथार्थ। मानवता को झकझोरती व शर्मसार करती भीख मांगती एक लड़की भी है जो रचना में अंतर्द्वंद्व को रेखांकित करती है। इस बिन्दु पर आकर कविता का तनाव एक गहरे शोक की मुद्रा में हमें सोचने के लिए अकेला छोड़ देती है।
कार्यक्रम का अध्यक्षीय वक्तव्य और उनकी कविताओं की समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए श्री रामकुमार तिवारी ने कहा कि आलोक कुमार चक्रवाल भले ही साहित्य के विद्यार्थी न हों, किन्तु उनके अंदर एक मुकम्मल कवि मन बसता है। आगे उन्होने कहा कि चक्रवाल जी निरंतर बृहत्तर होते रहे हैं। उन्होंने बृहत्तर रूप में अपनी कविताओं को बिडंबनाओं की आवाज बनाई है।
कार्यक्रम की शुरुआत में प्रो. देवेंद्र नाथ सिंह ने कहा कि कवितायें इत्मिनान चाहती हैं। यह प्रवृत्ति आलोक कुमार चक्रवाल की कविताओं में स्पष्ट दिख रही थी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीकांत वर्मा सृजन पीठ के अध्यक्ष श्री रामकुमार तिवारी ने किया और स्वागत वक्तव्य कला अध्ययनशाला के अधिष्ठाता और हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. देवेंद्र ने दिया। कार्यक्रम में विभाग और विश्वविद्यालय से बाहर के भी कई श्रोतागण उपस्थित रहे। इस अवसर पर विभाग के सभी शिक्षक श्री मुरली मनोहर सिंह, डॉ. राजेश मिश्र, डॉ. लोकेश कुमार, डॉ. अखिलेश गुप्ता, डॉ. अनीश कुमार, डॉ. अप्पासाहेब जगदाले भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. गौरी त्रिपाठी और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रमेश गोहे ने किया।