पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव में भी परिवारवाद का बोलबाला कायम रहा। आरोप केवल विपक्ष पर नहीं, बल्कि खुद एनडीए की पार्टियों के भीतर भी नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट और फिर जीत मिलने के मामलों ने एक बार फिर इस बहस को तेज कर दिया है। एनडीए में जदयू और भाजपा दोनों के 11-11 विधायक राजनीतिक परिवार से जुड़े हुए हैं। यह दर्शाता है कि सत्ता में पहुंचने के लिए पारिवारिक संबंधों का महत्व अब भी मजबूत है। केंद्रीय मंत्री और हम पार्टी के संरक्षक जीतन राम मांझी इस मामले में सबसे आगे दिख रहे हैं।
पार्टी को मिली 6 सीटों में से 5 पर रिश्तेदारों या राजनीतिक परिवार से जुड़े लोगों को टिकट दिया गया। मांझी की बहू दीपा मांझी, समधन ज्योति देवी और दामाद प्रफुल्ल मांझी तीनों चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए हैं। वहीं, अतरी सीट से जीते रोमित कुमार पूर्व सांसद अरुण कुमार के भतीजे हैं। भाजपा ने 101 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 89 पर विजय हासिल की।
इनमें 12 विधायक (12.35 फीसदी) ऐसे हैं, जो किसी न किसी राजनीतिक परिवार से आते हैं। जिसमें सम्राट चौधरी (तारापुर)- पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी के बेटे हैं। नीतीश मिश्रा (झंझारपुर)- पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के बेटे हैं। श्रेयसी सिंह (जमुई)- पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की बेटी है। संजीव चौरसिया (दीघा)- पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद के बेटे हैं।
नितिन नवीन (बांकीपुर)- पूर्व विधायक नवीन सिन्हा के बेटे हैं। सुजीत कुमार (गौड़ा बौराम)- पूर्व विधान पार्षद सुनील कुमार के बेटे हैं। रमा निषाद (औराई)- पूर्व सांसद अजय निषाद की पत्नी। केदार नाथ सिंह (बानियापुर)- पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के भाई। विशाल प्रशांत (तरारी)- पूर्व बाहुबली विधायक सुनील पांडेय के बेटे।
राकेश रंजन (शाहपुर)- भाजपा के बड़े नेता रहे विशेश्वर ओझा के बेटे। त्रिविक्रम नारायण सिंह (औरंगाबाद)- पूर्व राज्यसभा सांसद गोपाल नारायण सिंह के बेटे। विनय सिंह (सोनपुर)- प्रभुनाथ सिंह के समधी और मांझी विधायक रणधीर सिंह के ससुर हैं। वहीं, जदयू में भी स्थिति भाजपा जैसी ही है। पार्टी के 11 सफल प्रत्याशी (12.9 फीसदी) राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं।
जिसमें अनंत सिंह (मोकामा)- बड़े भाई दिलीप सिंह मंत्री थे। ऋतुराज कुमार (घोषी)- पूर्व सांसद अरुण कुमार के बेटे। चेतन आनंद (नबी नगर)- बाहुबली आनंद मोहन के बेटे। कोमल सिंह (गाय घाट)- जदयू विधान पार्षद दिनेश सिंह और लोजपा(रा) सांसद वीणा देवी की बेटी, शालिनी मिश्रा (केसरिया)- पूर्व सांसद कमला मिश्र मधुकर की बेटी हैं।
मंजीत कुमार सिंह (बरौली)- पूर्व विधायक ब्रिज किशोर सिंह के बेटे हैं। रणधीर कुमार सिंह (मांझी)- पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के बेटे। महेश्वर हजारी (कल्याणपुर)- पूर्व विधायक रामसेवक हजारी के बेटे हैं। शुभेन्दु मुकेश (कहलगांव)- कांग्रेस के बड़े नेता रह चुके सदानंद सिंह बेटे हैं।
विभा देवी (नवादा)- पूर्व बाहुबली विधायक राजबल्लभ यादव की पत्नी और मनोरमा देवी (बेलागंज)- बाहुबली नेता बिंदी यादव की पत्नी हैं। इसके साथ ही उपेंद्र कुशवाहा ने सासाराम सीट से अपनी पत्नी स्नेहलता को अपनी पार्टी रालोमो से टिकट दिया और वे जीतकर विधायक बनीं। उनकी पार्टी से जीतने वाले 4 में से 2 विधायक नेताओं के रिश्तेदार हैं।
वहीं चिराग पासवान की पार्टी ने 19 सीट जीतीं। इनमें से गोविंदगंज से राजन तिवारी के भाई राजू तिवारी चुनाव जीतकर आए हैं। वहीं विपक्षी दलों की ओर देखें तो राजद के 25 उम्मीदवारों में से 5 (20 फीसदी) नेताओं के रिश्तेदार थे। इसमें तेजस्वी यादव के बेटे, पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा राय की पोती करिश्मा राय, पूर्व मंत्री जगदीश शर्मा के बेटे राहुल कुमार और पूर्व सांसद राजेश कुमार के बेटे कुमार सर्वजीत शामिल हैं।
इन्हीं कारणों से ऐसा माना जाता है कि राजनीति अब पेशे का रूप ले चुकी है। इसलिए पुराने नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट देना आम हो गया है। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता ज्ञान रंजन ने कहा कि एनडीए खुद परिवारवाद करती है और विपक्ष पर आरोप लगाती है, जबकि इस बार के चुनाव में कई एनडीए विधायक परिवारवाद की वजह से बने हैं।
जबकि भाजपा प्रवक्ता कुंतल कृष्ण ने अपनी पार्टी का पक्ष रखते हुए कहा कि भाजपा में कोई परिवार पूरी पार्टी को नियंत्रित नहीं करता। अगर कोई दूसरी पीढ़ी राजनीति में आती है तो वह सेवा भाव से आती है। वहीं, कांग्रेस और राजद में परिवारवाद अधिक देखने को मिलता है।