पटनाः बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने 243 सदस्यीय राज्य विधानसभा के चुनाव के लिए सीट-बंटवारे को रविवार को अंतिम रूप दे दिया, जिसके तहत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नीत जनता दल (यूनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 101-101 सीट पर चुनाव लड़ेंगी, जबकि बाकी सीट छोटे सहयोगियों के लिए छोड़ी गई हैं। इस आशय की घोषणा जद (यू) के कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा, उपमुख्यमंत्री एवं भाजपा नेता सम्राट चौधरी और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के ‘एक्स’ हैंडल पर की। पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) 29 सीट पर चुनाव लड़ेगी। जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ‘‘कम से कम 15 सीट’’ की मांग कर रही थी, लेकिन उसे केवल छह सीट दी गई हैं, जबकि शेष छह सीट राज्यसभा सदस्य उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को दी गई हैं।
झा, चौधरी और पासवान पिछले कुछ दिनों से राष्ट्रीय राजधानी में डेरा डाले हुए हैं। वे इस बात पर एकमत थे कि सीट के लिए सहमति ‘‘सौहार्दपूर्ण वातावरण’’ में बनी। मांझी के बारे में अफवाह थी कि वे इस फॉर्मूले से नाखुश हैं। उन्होंने अपने ‘एक्स’ हैंडल पर पोस्ट किया कि वह पटना लौट रहे हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा, ‘‘मैं अपनी अंतिम सांस तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ रहूंगा।’’
कुशवाहा की पार्टी को छोड़कर, जो कुछ साल पहले ही अस्तित्व में आयी है, राजग के अन्य सभी घटक दल 2020 के चुनावों में क्रमशः लड़े गए निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या से कम सीट पर चुनाव लड़ने पर सहमत हुए हैं। पिछले चुनाव में जद (यू) को सबसे अधिक 115 सीट दी गई थीं, उसके बाद भाजपा को 110 और मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को सात सीट आवंटित की गई थी।
उस समय लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रहे पासवान की पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा था और 135 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। वर्ष 2020 के चुनाव में एक अन्य राजग सहयोगी एवं राज्य के पूर्व मंत्री मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी ने चार सीट पर चुनाव लड़ा था। विकासशील इंसान पार्टी अब ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ है।
ऐसा समझा जाता है कि जद (यू) ने 2020 में पार्टी के खराब प्रदर्शन को देखते हुए इस बार सीट के मामले में बड़ी हिस्सेदारी पर जोर नहीं दिया। साल 2020 के चुनाव में उसने केवल 43 सीट पर जीत दर्ज की थी। यह भाजपा की 74 सीट से काफी कम था। साल 2020 के चुनाव में जद (यू) के खराब प्रदर्शन के लिये पासवान के विद्रोह को प्रमुख वजहों में से एक माना गया था।
तब यह संदेह जताया गया था कि पासवान का विद्रोह भाजपा के इशारे पर हुआ था और इसके परिणामस्वरूप जद(यू) प्रमुख नीतीश कुमार ने राजग का साथ छोड़ दिया था। हालांकि, नीतीश कुमार की पार्टी जद(यू) राजग से केवल 17 महीने के लिए अलग रही थी।