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नंगे पैर खेलते हुए भारतीय फुटबॉलरों ने अंग्रेजों को चटा दी थी धूल, कलकत्ता छोड़ दिल्ली भाग थे अंग्रेज!

By अभिषेक पाण्डेय | Updated: December 14, 2017 15:16 IST

फिल्म लगान में एक भारतीय किसानों की एक क्रिकेट टीम के अंग्रेजों की कहानी भले ही काल्पनिक हों लेकिन आजादी से पहले ही एक भारतीय फुटबॉल टीम ने नंगे पैर खेलते हुए ऐसा ही दिल को छू लेने वाला कारनाम कर दिखाया था, पढ़ें...

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ठळक मुद्देमोहन बागान ने 1911 में आईएफए में अंग्रेजी क्लब को दी थी मातइस मैच में मोहन बागान की टीम नंगे पैर खेली थीआजादी से पहले भारतीय खेल इतिहास की ये सबसे यादगार जीत रही है

29 जुलाई 1911 का दिन भले ही बहुत से भारतीयों को न पता हो लेकिन ये एक ऐसा दिन है जिस दिन अंग्रेजों को लाखों भारतीयों के सामने करारी शिकस्त मिली थी। ऐसी शिकस्त जिसके बाद अंग्रेजों ने उस शहर की जगह दूसरे शहर को अपनी राजधानी बना ली थी। ये शिकस्त अंग्रेजों को मिली थी आईएफए शील्ड के फाइनल में कोलकाता (तब के कलकत्ता) के फुटबॉल क्लब मोहन बागान की टीम से। खास बात ये कि इस मैच में खेले मोहन बागान के 11 खिलाड़ी नंगे पैर खेल रहे थे और इसके बावजूद उन्होंने अपने से कहीं ज्यादा प्रशिक्षित ब्रिटिश आर्मी की ईस्ट यॉर्कशायर रेजिमेंट को 2-1 से हराते हुए न सिर्फ खिताब जीता बल्कि अंग्रेजों की हार के उस सिलसिले को शुरू किया जो 1947 में उनके भारत के आजाद होने तक फिर कभी नहीं थमा। 

नंगे पैर खेलते हुए भारतीयों ने दी थी अंग्रेजी टीम को मात मोहन बागान की टीम के फाइनल में पहुंचते ही इस मैच की चर्चा बंगाल की सीमाओं से परे जा पहुंची थीं। इस मैच को लेकर लोगों के बीच उत्सुकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे देखने के लिए न सिर्फ बंगाल के जिलों बल्कि बिहार, असम और ढाका तक से लोग कोलकाता पहुंचे थे। इन लोगों को लाने के लिए ईस्टर्न रेलवे ने विशेष इंतजाम किए थे। इतना ही कोलकाता के आसपास के जिलों से भी लोग स्टीमर, ट्राम और बसों से कलकत्ता फुटबॉल क्लब के स्टेडियम तक पहुंचे थे।

इस मैच को देखने के लिए करीब 80 हजार से एक लाख लोग स्टेडियम पहुंचे थे, ज्यादा भीड़ की वजह से जो लोग स्टेडियम के अंदर नहीं वह बाहर ही हजारों की तादाद में मोहन बागान का समर्थन करने के लिए वहां डटे रहे। स्टेडियम के बाहर मौजूद लोगों को मैच का स्कोर बताने के लिए पतंगों का सहारा लिया गया। जैसे अंग्रेजी टीम का गोल होने पर काले रंग की पतंग आसमान में उड़ाई गई जबकि मोहन बागान के गोल पर हरे और मरून रंग की पतंग आसमान में उड़ाई गई। हरा रंग आज भी मोहन बागान की जर्सी का प्रमुख रंग है। इस मैच का लोगों के बीच इस कदर उत्साह था कि भारतीय खेलों के इतिहास में शायद पहली बार इस मैच के टिकट ब्लैक किए गए। 2 रुपये कीमत वाला टिकट 15 रुपये में बिका। लेकिन लोग फिर भी नहीं रुके और हजारों-हजार की संख्या में स्टेडियम पहुंचे। 

अंग्रेजी टीम ने बनाई बढ़त, मोहन बागान ने 2-1 से जीता मैचमैच शुरू होते ही पूरा स्टेडियम मोहन बागान के नारों से गूंज उठा था। लेकिन अचानक ही जैक्सन ने ईस्ट यॉर्कशायर के लिए पहला गोल दागते हुए मोहन बागान के फैंस के बीच खामोशी फैला दी। अंग्रेजी टीम के इस गोल के बाद वहां मौजूद अंग्रेजी महिलाएं खुशी से नाचने लगीं और अंग्रेजी फैंस मोहन बागान के पुतले जलाने लगे। अब स्कोर था ईस्ट यॉर्कशायर-1 और मोहन बागान-0

इसके बाद बागान की टीम ने वापसी की कोशिश करते हुए ताबड़तोड़ हमले बोले लेकिन उन्हें गोल करने में कामयाबी नहीं मिली। धीरे-धीरे मैच समाप्ति की ओर बढ़ चला और जब सिर्फ 5 मिनट बाकी रह गए तो मोहन बागान के फैंस निराश हो गए और वहां मौजूद बागान के हजारों फैंस को लगा अब सबकुछ खत्म होने वाला है। लेकिन नहीं, उस दिन नियति एक नया इतिहास लिखने वाली थी। मैच के 87वें मिनट में बागान के कप्तान शिबदास भादुड़ी ने बराबरी का गोल दागते हुए उम्मीद खो चुके दर्शकों में एक नई जान फूंक दी। पूरा स्टेडियम एक बार फिर मोहन बागान जय के नारों से गुंजायमान हो उठा और आसमान में इस बार हरे और मरून रंग की पतंगें उड़ाई गईं। अभिलाष घोष ने आखिरी मिनटों में मोहन बागान के लिए दूसरा गोल दागते हुए मोहन बागान को अंग्रेजी टीम के खिलाफ आईएफए शील्ड के फाइनल में ऐतिहासिक जीत दिला दी।  

इस मैच में मोहन बागान की तरफ से खेले 11 खिलाड़ी हमेशा के लिए इतिहास में अमर हो गए। उस मैच में खेले खिलाड़ियों में हीरालाल मुखर्जी, भूटी सुकुल, सुधीर चटर्जी, मनमोहन मुखर्जी, राजेन सेनगुप्ता, नीलमाधव भट्टाचार्य, कानू रॉय, हाबुल सरकार, अभिलाष घोष, बिजॉयदास भादुड़ी, शिबगास भादुड़ी (कप्तान)।

 

उस समय के अखबारों और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मोहन बागान की इस ऐतिहासिक जीत के बाद बंगाल में अद्भुत माहौल था। रॉयटर्स के मुताबिक, 'वह नजारा वर्णन से परे है। बंगाली लोग अपनी शर्ट को फाड़कर हवा में लहरा रहे थे।' एक और अखबार मुसल्लमान ने लिखा था, 'मुस्लिम स्पोर्टिंग क्लब के सदस्य एकदम पागल से हो गए थे और अपने हिंदू भाइयों की जीत पर खुशी के मारे जमीन पर लोट रहे थे।' प्रसिद्ध खेल इतिहासकार बोरिया मजूमदार ने लिखा है, 'उस जीत के बाद मोहन बागान आजादी की लड़ाई का प्रतीक बन गया।'

इस संयोग कहे या कुछ और लेकिन मोहन बागान से 29 जुलाई 1911 को मिली उस हार के महज 6 महीने बाद ही 29 दिसंबर 1911 को अंग्रेजों ने अपनी राजधानी को कोलकाता के बजाय दिल्ली स्थानांतरित करने का फैसला किया था। इसलिए कुछ लोग ये भी कहते हैं कि मोहन बागान से मिली हार का गम इतना बड़ा था कि अंग्रेज कलकत्ता छोड़कर दिल्ली चले गए!

तब से 29 जुलाई का दिन हर साल मोहन बागान दिवस के रूप में मनाया जाता है। गुलामी के दिनों में अंग्रेजी टीम के खिलाफ ये किसी भारतीय टीम की जीत की सबसे बहादुरी भरी दास्तां है!  

टॅग्स :मोहन बागानमोहन बागान vs ब्रिटिश फुटबॉल टीमईस्ट यॉर्कशायर रेजिमेंट
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