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देश में बाल गृह की स्थिति खौफनाक, हजारों शेल्टर होम में से 54 ही पास, सुप्रीम कोट ने कहा-'हम असहाय'

By पल्लवी कुमारी | Published: August 29, 2018 8:52 AM

भारत में आसरा घरों में बच्चों की स्थिति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इस मामले में अधिकारियों को कोई निर्देश दिए जाने पर उसे ‘‘न्यायिक सक्रियतावाद’’ करार दे दिया जाएगा।

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नई दिल्ली, 29 अगस्त: देश भर में पिछले कुछ महीनों से शेल्टर होम कांड ने सबको चौंका कर रख दिया है। शेल्टर होम केस पर सुप्रीम कोर्ट ने खुद स्वत संज्ञान लिया था। इस मामले में अब एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा समिति (एनसीपीसीआर) की एक सोशल ऑडिट की रिपोर्ट में देश के बाल गृहों के बारे में भयावह सच सामने आया है।   2,874 में से 54 ही पास 

मंगलवार 28 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में पेश की गई रिपोर्ट में सामने आया है कि ज्यादातर बाल पोषण गृह अनिवार्य मानकों और नियमों को नजरअंदाज कर रहे हैं और बहुत कम बाल गृह ही नियमों के मुताबिक चल रहे हैं। आसरा घरों पर एनसीपीसीआर की सामाजिक अंकेक्षण रिपोर्ट का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 2,874 बाल आसरा घरों में से सिर्फ 54 के लिए आयोग ने सकारात्मक टिप्पणी की है। 

बच्चों के  रेकॉर्ड्स में भी हेरा-फेरी

एनसीपीसीआर ने बताया, 'उदाहरण के लिए अब तक जांच दलों द्वारा देखे गए कुल 2,874 बाल आश्रय गृहों में से केवल 54 को ही सभी छह जांच समितियों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। बाकी सभी मानकों पर खरे नहीं है।  इसी तरह रिपोर्ट के मुताबिक, जिन 185 आसरा घरों का अंकेक्षण किया गया उनमें से सिर्फ 19 के पास वहां रह रहे बच्चों का लेखा-जोखा था। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम असहाय

भारत में आसरा घरों में बच्चों की स्थिति पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की रिपोर्ट को ‘‘खौफनाक’’ करार देते हुए उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि वह ‘‘असहाय’’ है, क्योंकि इस मामले में अधिकारियों को कोई निर्देश दिए जाने पर उसे ‘‘न्यायिक सक्रियतावाद’’ करार दे दिया जाएगा।

न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर और दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि यदि अदालत ने इस मामले में कुछ कहा तो उस पर ‘‘न्यायिक सक्रियतावाद’’ के आरोप लगेंगे, भले ही अधिकारी अपना काम करने में दिलचस्पी नहीं लें और सिर्फ‘जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ें और इन आसरा घरों की स्थिति के लिए एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ते रहें। 

सही से काम होता तो मुजफ्फरपुर कांड नहीं होता

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि यदि अधिकारियों ने ठीक से अपना काम किया होता तो बिहार के मुजफ्फरपुर में हुए कांड जैसी घटनाएं नहीं होतीं। मुजफ्फरपुर में एक आसरा घर में कई लड़कियों से बलात्कार और उनके यौन उत्पीड़न की घटना सामने आई है। इस मामले में अदालत की मदद कर रही वकील अपर्णा भट ने कहा कि शीर्ष न्यायालय का आदेश ‘‘न्यायिक सक्रियता’’ नहीं हैं, क्योंकि आसरा घरों में रह रहे बच्चों की बेहतरी अहम है। इस मामले में अगली सुनवाई 20 सितंबर को होगी।

वहीं, एनसीपीसीआर ने वकील अनिंदिता पुजारी को सौंपी रिपोर्ट में कहा, 'शुरुआती जांच में और हल्के विश्लेषण में ही यह बात सामने आई है कि बहुत कम बाल गृह हैं जो नियमों का पालन कर रहे हैं। वहीं, कई तो ऐसे हैं जो कागजी तौर पर कोई डेटा ही तैयार नहीं कर रहे हैं और किशोर न्याय (बाल पोषण व सुरक्षा) अधिनियम, 2015 के मानकों पर खरे उतरे हैं।' 

क्या था दो गंभीर मामला

बिहार के मुजफ्फरपुर बालिक गृह मामला 

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआईएसएस), मुम्बई द्वारा अप्रैल में राज्य के समाज कल्याण विभाग को सौंपी गई एक ऑडिट रिपोर्ट में यह मामला सबसे पहले सामने आया था।

बालिका गृह में रहने वाली 42 में से 34 लड़कियों के चिकित्सकीय परीक्षण में उनके साथ यौन उत्पीड़न की पुष्टि हुई है। एनजीओ ‘सेवा संकल्प एवं विकास समिति’ द्वारा चलाए जा रहे बालिका गृह का मालिक बृजेश ठाकुर इस मामले में मुख्य आरोपी है। इस मामले में 31 मई को 11 लोगों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। ठाकुर समेत 10 लोगों को तीन जून को गिरफ्तार किया गया था। एक व्यक्ति फरार है। 

बिहार पुलिस ने 26 जुलाई को इन आरोपियों के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) की अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया था। राज्य सरकार ने 26 जुलाई को इसकी जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश की थी और बाद में सीबीआई ने इसकी जांच राज्य पुलिस से अपने हाथ में ले ली थी।

यूपी के देवरिया शेल्टर होम केस 

6 अगस्त को यूपी पुलिस देवरिया संरक्षण गृह पर छापा मारकर  24 लड़कियों को वहां से मुक्त करवाया था। छापा मारा गया तो  42 में से 18 लड़कियां गायब मिलीं थी। मिली जानकारी के अनुसार बताया जा रहा है कि इस शेल्टर होम में देह व्यापार का धंधा पिछले एक सालों से चल रहा था।

पुलिस अधीक्षक रोहन पी. कनय ने बताया कि मां विंध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं समाज सेवा संस्थान द्वारा शहर कोतवाली क्षेत्र में संचालित बाल एवं महिला संरक्षण गृह में रहने वाली एक लड़की महिला थाने पहुंची और संरक्षण गृह में रह रही लड़कियों को कार से अक्सर बाहर ले जाये जाने और सुबह लौटने पर उनके रोने की बात बतायी थी। शिकायत करने वाली लड़की बिहार के बेतिया की रहने वाली है।

(भाषा इनपुट)

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