UP madrasa law: एक्शन में सुप्रीम कोर्ट, उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट को रद्द करने वाले फैसले पर रोक, केन्द्र और यूपी सरकार को नोटिस, 30 जून को जवाब दो...
By सतीश कुमार सिंह | Published: April 5, 2024 01:33 PM2024-04-05T13:33:10+5:302024-04-05T14:20:41+5:30
UP madrasa law: इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को "असंवैधानिक" घोषित करने के कुछ सप्ताह बाद सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फैसले पर रोक लगा दी।
UP madrasa law: सुप्रीम कोर्ट ने 'यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004' को असंवैधानिक करार देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के 22 मार्च के फैसले पर रोक लगा दी है। उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह अधिनियम "धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत" के साथ-साथ संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को ‘‘असंवैधानिक’’ करार दिया गया था।
Supreme Court stays the Allahabad High Court';s March 22 judgment striking down 'UP Board of Madarsa Education Act 2004' as unconstitutional.
— ANI (@ANI) April 5, 2024
Supreme Court says the finding of Allahabad High Court that the establishment of a Madarsa board breaches the principles of secularism… pic.twitter.com/bKDrPNvMKj
उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को "उत्तर प्रदेश राज्य के प्राथमिक शिक्षा बोर्ड के तहत मान्यता प्राप्त नियमित स्कूलों और हाई स्कूल और इंटरमीडिएट शिक्षा बोर्ड के तहत मान्यता प्राप्त स्कूलों में मदरसा छात्रों को समायोजित करने के लिए तुरंत कदम उठाने" का भी निर्देश दिया था। 30 जून को जवाब देने को कहा है। इस फैसले से 16000 मदरसों को राहत मिलेगी।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले से 17 लाख छात्रों पर असर पड़ेगा और उसका मानना है कि छात्रों को दूसरे स्कूल में स्थानांतरित करने का निर्देश देना उचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह निष्कर्ष कि मदरसा बोर्ड की स्थापना धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है, सही नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के 22 मार्च के आदेश को चुनौती देने वाली अपीलों पर नोटिस जारी किया।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ याचिकाओं पर केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया। पीठ में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। पीठ ने कहा,‘‘ मदरसा बोर्ड का उद्देश्य नियामक सरीखा है और प्रथम दृष्टया इलाहाबाद उच्च न्यायालय की यह बात सही नहीं प्रतीत होती कि बोर्ड का गठन धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन होगा।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय ने 2004 के अधिनियम के प्रावधानों के गलत अर्थ निकाले।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 22 मार्च को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को ‘‘असंवैधानिक’’ और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला करार दिया था। उच्च न्यायालय ने साथ ही राज्य सरकार को वर्तमान छात्रों को औपचारिक स्कूल शिक्षा प्रणाली में समायोजित करने को कहा था। अदालत ने यह आदेश अंशुमान सिंह राठौर नाम के व्यक्ति की याचिका पर दिया। याचिका में उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी।
Supreme Court says High Court judgement would affect the 17 lacks students, and it is of the view that direction of relocation of students to other school was not warranted.
— ANI (@ANI) April 5, 2024
उत्तर प्रदेश में करीब 25 हजार मदरसे हैं। इनमें 16500 मदरसे उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है, उनमें से 560 मदरसों को सरकार से अनुदान मिलता है। इसके अलावा राज्य में साढ़े आठ हजार गैर मान्यता प्राप्त मदरसे हैं। वर्ष 2004 में सरकार ने ही मदरसा शिक्षा अधिनियम बनाया था। इसी तरह राज्य में संस्कृत शिक्षा परिषद भी बनायी गयी है। दोनों ही बोर्ड का मकसद सम्बन्धित अरबी, फारसी और संस्कृत जैसी प्राच्य भाषाओं को बढ़ावा देना था। अब 20 साल बाद मदरसा शिक्षा अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया गया है।