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हारने के बावजूद डोनाल्ड ट्रम्प को इतने वोट क्यों मिले? वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: November 9, 2020 12:57 IST

ट्रम्प को वोट दिया है, वे लोग कौन हैं? जाहिर है कि वे रिपब्लिकन पार्टी के लोग तो हैं ही, उनके अलावा वे लोग भी हैं, जो रंगभेद में विश्वास करते हैं, जो गौरांग लोग अपने आप को असली अमेरिकी समझते हैं, जो अमेरिका को संसार के सबसे बड़े दादा के रूप में देखना चाहते हैं.

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ठळक मुद्देविश्व स्वास्थ्य संगठन, नाटो और यूएन जैसी संस्थाओं को अमेरिका का शोषण करने वाली संस्थाएं समझते हैं और जो बेलगाम और अक्खड़ आदमी को ही नेता मानते हैं.सबसे पहला अर्थ यही है कि आज की अमेरिकी जनता में उचित-अनुचित का विवेक करने की बौद्धिक क्षमता बहुत कम है. बाइडन के जीतने के बाद भी ट्रम्प उन्हें तंग करने में कोई कसर उठा न रखेंगे.

अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव परिणाम को लेकर यह सवाल सबके मन में है कि हारने के बावजूद आखिर डोनाल्ड ट्रम्प को इतने ज्यादा वोट क्यों मिले हैं? अमेरिका और उसके बाहर भी यह माना जा रहा था कि बड़बोले ट्रम्प इस बार जबर्दस्त पटखनी खाएंगे.

लेकिन अभी तक जो भी आंकड़े सामने आए हैं, उनसे पता चल रहा है कि 2016 के मुकाबले उनके वोटों की संख्या बढ़ी है और सीनेट (राज्यसभा) के चुनाव में भी उनके उम्मीदवार जीत गए हैं. कांग्रेस (लोकसभा) में हालांकि डेमोक्रेट की संख्या बढ़ी है. यहां सवाल सिर्फ रिपब्लिकन पार्टी का नहीं है बल्कि उन करोड़ों अमेरिकी नागरिकों का है, जिन्होंने ट्रम्प जैसे आदमी को अपना अमूल्य वोट दिया है.

जिन्होंने ट्रम्प को वोट दिया है, वे लोग कौन हैं? जाहिर है कि वे रिपब्लिकन पार्टी के लोग तो हैं ही, उनके अलावा वे लोग भी हैं, जो रंगभेद में विश्वास करते हैं, जो गौरांग लोग अपने आप को असली अमेरिकी समझते हैं, जो अमेरिका को संसार के सबसे बड़े दादा के रूप में देखना चाहते हैं.

यानी जो उग्र राष्ट्रवादी हैं, जो लोग तू-तड़ाक शैली में बोलने वाले नेता को पसंद करते हैं, जो अमेरिका के नवागंतुकों को अपनी बेरोजगारी का कारण समझते हैं, जो चीन जैसे देशों पर मुक्का तानने को राष्ट्रीय गौरव का विषय मानते हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन, नाटो और यूएन जैसी संस्थाओं को अमेरिका का शोषण करने वाली संस्थाएं समझते हैं और जो बेलगाम और अक्खड़ आदमी को ही नेता मानते हैं.

इसका सबसे पहला अर्थ यही है कि आज की अमेरिकी जनता में उचित-अनुचित का विवेक करने की बौद्धिक क्षमता बहुत कम है. दूसरा, जो बाइडन के जीतने के बाद भी ट्रम्प उन्हें तंग करने में कोई कसर उठा न रखेंगे. तीसरा, चुनाव के बाद जिस तरह की तोड़-फोड़ और हिंसा की खबरें आ रही हैं, वे बताती हैं कि इस वक्त अमेरिका दो खेमों में बंट गया है.

चौथा, ट्रम्प की धमकियों और आरोपों ने अमेरिकी लोकतंत्न पर धब्बे मढ़ दिए हैं. पांचवां, यदि हारने के बावजूद ट्रम्प कुर्सी नहीं छोड़ते हैं और अदालतों के दरवाजे खटखटाते हैं तो अमेरिकी लोकतंत्न के इतिहास में वे एक काला पन्ना जोड़ देंगे.

टॅग्स :अमेरिकाडोनाल्ड ट्रम्पजो बाइडनकमला हैरिस
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