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शोभना जैन का ब्लॉग: अफगानिस्तान पर टिकी हैं दुनिया की निगाहें

By शोभना जैन | Updated: December 28, 2019 06:09 IST

विवादों-शिकायतों से भरे इन चुनावों के अंतिम नतीजे हालांकि अभी आने बाकी हैं लेकिन देश के इंडिपेंडेंट इलेक्टोरल कंप्लेंट कमीशन के आंकड़ों के अनुसार संकेत यही हैं कि गनी दूसरी बार देश के राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने वाले हैं.

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ठळक मुद्देभारत प्रारंभ से ही इस शांति वार्ता में अफगान सरकार को शामिल किए जाने का पक्षधर रहा है. उस वक्त भी भारत ने कहा था कि वार्ता में अफगान सरकार को शामिल किया जाए.

अफगानिस्तान में गत सितंबर में हुए राष्ट्रपति चुनावों के मतदान के तीन माह बाद प्राथमिक परिणाम में कांटे की टक्कर में राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी के 50.64 प्रतिशत मतों के साथ शेष उम्मीदवारों से आगे रहने की आधिकारिक घोषणा कर दी गई है.

विवादों-शिकायतों से भरे इन चुनावों के अंतिम नतीजे हालांकि अभी आने बाकी हैं लेकिन देश के इंडिपेंडेंट इलेक्टोरल कंप्लेंट कमीशन के आंकड़ों के अनुसार संकेत यही हैं कि गनी दूसरी बार देश के राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने वाले हैं.

अब दुनिया भर की नजरें एक बार फिर बरसों से उथल-पुथल के दौर से गुजर रहे अफगानिस्तान पर हैं कि गनी के दुबारा राष्ट्रपति बन जाने पर वहां की राजनैतिक व्यवस्था का क्या रूप होगा. 

जहां एक तरफ कुछ वर्गो का अंदेशा है कि देश में सभी पक्षों द्वारा स्वीकृत एक मजबूत नेता के अभाव में अफगानिस्तान फिर कबायली और जातीय स्तरों पर बंट सकता है, वहीं दूसरी तरफ एक अहम सवाल यह भी है कि इस क्षेत्न में बनते राजनैतिक समीकरणों का क्षेत्न की शांति, स्थिरता पर क्या प्रभाव पड़ेगा, अफगान शांति वार्ता का क्या स्वरूप होगा, अमेरिका अंतत: क्या अब इस शांति वार्ता को निर्णायक प्रगति की ओर ले जाएगा, क्या इस वार्ता में अफगान सरकार की अहम भूमिका होगी आदि आदि. 

वैसे जिस तरह से चीन की अफगानिस्तान में राजनैतिक और आर्थिक दिलचस्पी बढ़ रही है ऐसे में इस अहम वार्ता में चीन की क्या भूमिका होगी? इन तमाम सवालों के जवाब फिलहाल तो भविष्य के गर्भ में हैं.

भारत ने प्रारंभिक परिणामों के बाद अपने पड़ोसी देश के  राजनैतिक घटनाक्रम पर सतर्क प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ‘अफगानिस्तान के राष्ट्रपति चुनाव के प्रारंभिक परिणामों की घोषणा का भारत स्वागत करता है. भारत आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में और सामाजिक-आर्थिक विकास में अफगानिस्तान की जनता और सरकार के साथ मिलजुलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध है.’ 

भारत प्रारंभ से ही इस शांति वार्ता में अफगान सरकार को शामिल किए जाने का पक्षधर रहा है. इससे पूर्व शांति वार्ता में अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि जलमय खलीलजाद के साथ हुई वार्ता में अफगान सरकार की कोई खास भूमिका नहीं थी, अफगान सरकार को अंतिम ड्राफ्ट ही दिखाया गया. 

उस वक्त भी भारत ने कहा था कि वार्ता में अफगान सरकार को शामिल किया जाए. भारत का बराबर यही पक्ष रहा है कि अफगान शांति वार्ता अफगान नेतृत्व में तथा अफगान लोगों से जुड़ी होनी चाहिए.

एक पूर्व राजनयिक के अनुसार शांति वार्ता का स्वरूप काफी कुछ अंतिम चुनाव नतीजों के बाद बनने वाली राजनैतिक स्थिति पर तय होगा. हो सकता है तालिबान सरकार में शामिल होना चाहे लेकिन अभी यह कहना जल्दबाजी होगी.

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