विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस, बीजेपी को हरा कर सत्ता से बाहर करने में कामयाब रही थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से सभी 25 सीटें जीत ली हैं.
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औपनिवेशिक शासन के दिनों में विभिन्न कारणों से हमारी अनेक तरह की बेहतर परंपरागत व्यवस्थाओं का ढांचा चरमराने लगा. जल-प्रबंधन पर भी नए शासकों और उनकी नीतियों की मार पड़ी. किसानों और गांववासियों की आत्म निर्भरता तो अंग्रेज सरकार चाहती ही नहीं थी.
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न्यूजीलैंड में मस्जिद के भीतर गोलीबारी करते समय हमलावर ने उसकी फेसबुक पर लाइव स्ट्रीमिंग की थी. इसी तरह श्रीलंका में विगत दिनों हुए आतंकवादी हमलों में भी अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया गया था. इसलिए ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए उपाय किए जाने जरूरी है
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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 17 अक्तूबर 1920 को हुई थी. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) की सातवीं कांग्रेस कलकत्ता में 31 अक्तूबर से सात नवंबर 1964 में हुई थी और उसी भाकपा से निकलकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के गठन की घोषणा की गई
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निश्चित रूप से देश की आजादी के बाद से 16वीं लोकसभा के चुनावों तक कहीं न कहीं आर्थिक मुद्दे आगे बढ़ते रहे थे. लेकिन वर्तमान 17वीं लोकसभा के चुनावों में आर्थिक मुद्दे और सबका विकास जैसे नारे पिछले लोकसभा चुनावों की तुलना में अधिक प्रभावी रहे हैं.
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नई सरकार को इस कमी को पूरा करने के लिए तुरंत कदम उठाने पड़ेंगे. दूसरी प्रमुख बात है कि वित्त वर्ष की समाप्ति से पहले खर्च न किए गए धन को वापस सरकार की तिजोरी में डालने की प्रथा वर्षो से चली आ रही है.
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बंगाल में सीपीएम को एक भी सीट नहीं मिली है और उसका वोट शेयर भी पिछले चुनाव से 23 प्रतिशत लुढ़क गया. 2014 के लोकसभा चुनाव में सीपीएम को 30 प्रतिशत वोट मिले थे लेकिन इस बार वोट शेयर 6 प्रतिशत रहा और एक भी सांसद जीत नहीं पाए.
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सेना की बैसाखियों के सहारे चुन कर आए इमरान खान की सरकार एक तरफ तो सीमापार से लगातार भारत के खिलाफ आतंक जारी रखे हुए है, वहीं दूसरी तरफ रह-रह कर बातचीत की भी पेशकश करती रही है.
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कहा जा सकता है कि विपक्ष ने इस चुनाव को नरेंद्र मोदी के लिए मत सर्वेक्षण का अवसर बना दिया था और यह बड़ी चूक थी. परिणाम बता रहा है कि लोगों ने उनको हाथों-हाथ लिया है. इस जनादेश के कई अर्थ लगाए जा सकते हैं.
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जम्मू-कश्मीर से छत्तीसगढ़-झारखंड तक के आतंकवादी-नक्सली संगठनों के सारे हमलों के बावजूद जनता ने लोकतांत्रिक चुनाव में हिस्सा लिया एवं राष्ट्रवादी हितों के लिए सही उम्मीदवार चुने.
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