अवधेश कुमार का ब्लॉग: चुनावी परिदृश्य पहले से स्पष्ट था
By अवधेश कुमार | Published: May 25, 2019 01:18 PM2019-05-25T13:18:54+5:302019-05-25T13:18:54+5:30
कहा जा सकता है कि विपक्ष ने इस चुनाव को नरेंद्र मोदी के लिए मत सर्वेक्षण का अवसर बना दिया था और यह बड़ी चूक थी. परिणाम बता रहा है कि लोगों ने उनको हाथों-हाथ लिया है. इस जनादेश के कई अर्थ लगाए जा सकते हैं.
लोकसभा के चुनाव परिणाम बिल्कुल अपेक्षित हैं. प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग राष्ट्रीय स्तर पर विचारधारा एवं रणनीति के मामले में संगठित इकाई के रूप में उतरा था तथा पांच-छह राज्यों को छोड़ दें तो उसका अंकगणित विपक्ष पर भारी था. इसे कम करने के लिए विपक्ष को मुद्दों और रणनीति के स्तर पर इतना सशक्त प्रहार करना चाहिए था जिससे मतदाता नए सिरे से सोचने को बाध्य हों. पूरे चुनाव अभियान में राष्ट्रीय या राज्यों के स्तर पर इस तरह का सशक्त चरित्न विपक्ष का दिखा ही नहीं.
विपक्ष मोदी हटाओ का राग अलापता तो रहा लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर तो छोड़िए, सभी राज्यों में संगठित भी नहीं हो सका. विपक्ष की कृपा से ही चुनाव का मुख्य मुद्दा प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी बन गए. पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी हटाओ बनाम नरेंद्र मोदी को बनाए रखो में परिणत हो गया था. अन्य सारे मुद्दे उसके अंग-उपांग बन गए. भाजपा यही चाहती थी. मतदाताओं को प्रधानमंत्नी के लिए मोदी बनाम अन्य में से चुनाव करना हो तो उसकी उंगली किस बटन को दबाती?
इस चुनाव अभियान के दौरान साफ दिख रहा था कि विपक्ष के प्रचार के विपरीत मोदी सरकार के विरुद्ध प्रकट सत्ता विरोधी लहर नहीं है. किसी सांसद या मंत्नी के खिलाफ असंतोष अवश्य कई जगह थे, पर सरकार विरोधी तीव्र रुझान की झलक कहीं नहीं दिखी. सांसदों के सत्ता विरोधी रुझान को कम करने के लिए भाजपा ने बड़ी संख्या में सांसदों के टिकट काट दिए. पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान की सीमा में घुसकर हवाई बमबारी ने संपूर्ण देश में रोमांच का भाव पैदा किया. उससे पूरा चुनावी परिदृश्य ही बदल गया. तीसरे चरण के मतदान के पूर्व श्रीलंका में हुए भीषण आतंकवादी हमलों ने भी लोगों को यह महसूस कराया कि आतंकवाद का खतरा आसन्न है जिसे कम करके आंकना नादानी होगी.
कहा जा सकता है कि विपक्ष ने इस चुनाव को नरेंद्र मोदी के लिए मत सर्वेक्षण का अवसर बना दिया था और यह बड़ी चूक थी. परिणाम बता रहा है कि लोगों ने उनको हाथों-हाथ लिया है. इस जनादेश के कई अर्थ लगाए जा सकते हैं. मसलन, यह एक ओर यदि राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद, कश्मीर तथा पाकिस्तान के बारे में नीतियों में निरंतरता बनाए रखने के पक्ष में है तो दूसरी ओर विकास नीतियों को ज्यादा मानवीय एवं तीव्र बनाने की अपेक्षाएं भी लिए हुए है. विपक्ष को समझना होगा कि किसी एक व्यक्ति के खिलाफ निंदा और विरोध की अतिवादिता से उसका सत्ता तक पहुंचने का सपना पूरा नहीं हो सकता.