लोकसभा चुनाव 2019: राजस्थान की सभी सीटों पर जीत में संघ की बड़ी भूमिका, आगे की राह मुश्किल!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: May 27, 2019 07:52 AM2019-05-27T07:52:26+5:302019-05-27T07:52:26+5:30
विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस, बीजेपी को हरा कर सत्ता से बाहर करने में कामयाब रही थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से सभी 25 सीटें जीत ली हैं.
राजस्थान में लोकसभा चुनाव के बाद सियासी समीकरण गड़बड़ा गया है. विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस, बीजेपी को हरा कर सत्ता से बाहर करने में कामयाब रही थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से सभी 25 सीटें जीत ली हैं. इसका सबसे बड़ा कारण संघ की समर्पित सक्रियता है.
जनहित के मुद्दों पर बीजेपी के पास न तो प्रदेश स्तर पर और न ही राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी बड़ी उपलब्धियां थी कि वे जनता का साथ ले पाते, उल्टे फिल्म पद्मावती पर केन्द्र सरकार का मौन, एससी-एसटी एक्ट में संशोधन, गैस-पेट्रोल के दाम, नोटबंदी, जीएसटी, बेरोजगारी जैसे मुद्दों ने बीजेपी के वोट बैंक मध्यम वर्ग को ही हिला कर रख दिया था.
स्वयं नरेन्द्र मोदी ने इस वर्ग की नाराजगी को देखते हुए विधानसभा चुनाव में नाकामयाबी के बाद इस वर्ग के लिए कई निर्णय लिए थे और पांच साल में पहली बार चुनाव प्रचार के दौरान मध्यम वर्ग का जिक्र भी किया था. संघ की सक्रियता के कारण राष्ट्रवाद का मुद्दा, सबसे बड़ा मुद्दा बन गया और बीजेपी की नाकामयाबी, कामयाबी में बदल गई.
बीजेपी की राह कांग्रेस ने भी आसान की. विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस की इमेज साफ्ट हिन्दूत्व की बन गई थी, किन्तु कांग्रेस नेताओं ने अचानक आरएसएस और राष्ट्रवाद पर तीखे हमले शुरू कर दिए. इसका नुकसान यह हुआ कि सारा सियासी समीकरण ही बदल गया.
याद रहे, संघ के ज्यादातर वरिष्ठ समर्थकों को दलगत राजनीति में खास दिलचस्पी नहीं है, वे संगठन के सामाजिक कार्यों में ज्यादा सक्रिय रहते हैं, किन्तु कांग्रेस ने संघ पर लगातार हमले करके उन्हें भी सक्रिय कर दिया.
संघ की सक्रियता की बदौलत भले ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी कामयाब हो गई हो, लेकिन अब आगे की राह बीजेपी के लिए आसान नहीं है. क्योंकि, हर बार संघ ऐसी सक्रियता नहीं दिखाएगा. आगे पंचायतों, स्थानीय निकायों आदि के चुनाव हैं और ये सारे चुनाव बीजेपी को अपने दम पर लड़ने होंगे.
राजस्थान में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी समस्या प्रादेशिक नेतृत्व को लेकर है. अब तक तो बतौर प्रादेशिक नेता पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ही हैं, हालांकि लंबे समय से केन्द्रीय नेतृत्व उन्हें राजस्थान की राजनीति से दूर करने की कोशिशें करता रहा है, किन्तु कामयाबी नहीं मिली है. हो सकता है, लोकसभा चुनाव की शानदार कामयाबी के बाद अब वसुंधरा राजे को एक बार फिर से प्रदेश की राजनीति से दूर करने के प्रयास किए जाएं, लेकिन इसका एक नुकसान यह है कि यदि प्रदेश में यह सियासी जंग शुरू हो गई तो आनेवाले चुनावों में इसका नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ सकता है.
कांग्रेस के लिए फायदे की बात यह है कि प्रदेश में उसकी सरकार है, लिहाजा प्रादेशिक सत्ता के दम पर वह स्थानीय सियासी समीकरण सुधार सकती है. राजस्थान में कांग्रेस की हार का बड़ा कारण उसका पुराना असाध्य राजनीतिक रोग गुटबाजी रहा है. दिलचस्प बात तो यह है कि इतनी नाकामयाबियों के बावजूद दिखावे की एकता जरूर नजर आती है, परन्तु इसमें सुधार के संकेत दिखाई नहीं देते हैं. देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले विभिन्न चुनावों में बीजेपी अपनी ऐसी ही सफलता जारी रख पाती है या फिर कांग्रेस पुनः कामयाब हो जाती है!