आलोक मेहता का ब्लॉग: इस चुनाव में राष्ट्रवाद ने तोड़ी जातिवादी राजनीति
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 25, 2019 06:42 AM2019-05-25T06:42:17+5:302019-05-25T06:42:17+5:30
जम्मू-कश्मीर से छत्तीसगढ़-झारखंड तक के आतंकवादी-नक्सली संगठनों के सारे हमलों के बावजूद जनता ने लोकतांत्रिक चुनाव में हिस्सा लिया एवं राष्ट्रवादी हितों के लिए सही उम्मीदवार चुने.
भारतीय लोकतंत्न का नया शंखनाद. सुदूर गांवों तक के करोड़ों मतदाताओं ने दशकों से चली आ रही घिसी-पिटी जातिवादी राजनीति के कीचड़ को साफ कर दिया. विशेष रूप से उत्तरप्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों के नेताओं एवं जातिगत समीकरणों के विशेषज्ञ अधिकांश प्रगतिशील पत्नकारों-लेखकों के आकलन इस लोकसभा चुनाव में ध्वस्त हो गए. प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने 2014 से ‘गुजरात मॉडल’ पर विकास के सपने दिखाए और 2019 में सपनों के कुछ हिस्से साकार करने के साथ नई उम्मीदें विश्वास के साथ जगाईं. राष्ट्रवाद को व्यापक रूप में ही देखा-समझा जाना चाहिए.
राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद से लेकर महात्मा गांधी तक के सामाजिक राष्ट्रीय आंदोलन जातिवाद की संकीर्णता और गुलामी की मानसिकता को समाप्त कर सर्वागीण विकास से राष्ट्र की प्रगति के लिए रहे हैं. नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद इसी क्रांतिकारी बदलाव के लिए करोड़ों गरीबों और गांवों की मूलभूत समस्याओं के निदान एवं आर्थिक विकास के नए रास्तों की ओर कदम बढ़ाए. आतंकवाद की समस्या सीमा पार से जुड़ी है और दुनिया उसके लिए पाकिस्तान में फलती-फूलती रही आतंकवादी ताकतों को जिम्मेदार मान रही है.
इसलिए मोदी राज में थल और वायुसेना की दो बड़ी सर्जिकल कार्रवाइयों को भारत की सुरक्षा के महत्वपूर्ण काम के रूप में जनता ने स्वीकारा. इस ऑपरेशन पर संदेह तथा अत्याधुनिक लड़ाकू विमान ‘राफेल’ की खरीदी पर राहुल गांधी के नेतृत्व में प्रतिपक्ष द्वारा प्रधानमंत्नी के विरुद्ध असभ्य भाषा वाले अभियान को सुप्रीम कोर्ट सहित जनता ने अनुचित माना. रक्षा सौदे पर अधिकारियों की मतभिन्नता को सीधे प्रधानमंत्नी से जोड़ कर भ्रष्टाचार की संज्ञा देने को जनता ने पसंद नहीं किया.
सामाजिक आर्थिक विकास के लिए हर घर में शौचालय की व्यवस्था, हर गरीब को कच्चे-पक्के घर के लिए डेढ़ से ढाई लाख रुपए तक की सहायता, करीब आठ करोड़ गरीब परिवारों को रसोई गैस की उपलब्धता, पांच लाख रुपए तक बीमा वाली आयुष्मान भारत योजना, असंगठित क्षेत्न के श्रमिकों के लिए पेंशन योजना, सस्ती से सस्ती बिजली हर गांव तक पहुंचाने का काम क्रांतिकारी ही माना जाएगा. शहरी लोग या बंद कमरों में रहने वाले आर्थिक विशेषज्ञ सुदूर क्षेत्नों के बहुत छोटे किसानों को बीज-खाद खरीदी के लिए छह हजार रुपए की सरकारी सहायता का महत्व नहीं समझ सकते. जबकि किसानों के लिए यह प्राणवायु की तरह है.
प्रकृति से पानी मिलता है, खाद-बीज होने पर किसान अपना पसीना बहाकर परिवार पालने लायक फसल पैदा कर सकता है. हरियाणा जैसी राज्य सरकारें केंद्र की इस राशि में अपना भी योगदान देकर अधिक सहायता की घोषणा कर चुकी हैं. तभी तो पश्चिम उत्तरप्रदेश और हरियाणा में किसानों के नाम पर दशकों से राजनीति चला रहे अजित सिंह, ओमप्रकाश चौटाला, भूपेंद्र सिंह हुड्डा के चुनावी किलों को ग्रामीण खेतिहर किसानों ने ही तोड़ दिया. उत्तरप्रदेश में बहुजन समाज पार्टी-समाजवादी पार्टी ने दलित-यादव जाति के मतदाताओं को मिलकर फिर से हड़पने की ऐतिहासिक तैयारी की. लेकिन अब समझदार मतदाताओं ने इस भ्रमजाल से निकलकर उज्ज्वल भविष्य के लिए पसंदीदा उम्मीदवारों और पार्टियों को चुना. दस-पंद्रह स्थानों पर हुई जीत भी स्थानीय प्राथमिकता के कारण हुई.
जम्मू-कश्मीर से छत्तीसगढ़-झारखंड तक के आतंकवादी-नक्सली संगठनों के सारे हमलों के बावजूद जनता ने लोकतांत्रिक चुनाव में हिस्सा लिया एवं राष्ट्रवादी हितों के लिए सही उम्मीदवार चुने. इस चुनाव की यह भी विशेषता रही कि विधानसभा और लोकसभा के लिए जागरूक मतदाताओं ने भिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को चुनने में संकोच नहीं किया. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान ही नहीं ओडिशा, प. बंगाल, असम के चुनाव परिणाम इस बात के प्रमाण हैं. रही बात गठबंधनों की, तो भाजपा ने भी कई क्षेत्नीय दलों के साथ उदारतापूर्वक समझौता कर रखा है, लेकिन ऐसा नहीं कि वह अपने प्रभाव क्षेत्नों में शक्तिशाली नहीं है अथवा अपने संगठन और काम पर भरोसा नहीं है. इसलिए अपने लिए तीन सौ से अधिक सीटें हासिल करने के साथ ही भाजपा ने सहयोगी दलों के बल पर एनडीए का आंकड़ा साढ़े तीन सौ के पार कर लिया.