Vice President CP Radhakrishnan: जब सी.पी. राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति के कार्यालय में प्रवेश करेंगे, तो वे अपने साथ चार दशकों में बनी एक प्रतिष्ठा लेकर जाएंगे-भावना से तो खिलाड़ी, लेकिन राजनीति में कभी खिलाड़ी नहीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों एनडीए संसदीय बैठक में इसे बड़ी ही खूबसूरती से व्यक्त किया : राधाकृष्णन ‘‘खेलों से प्यार करते हैं, लेकिन राजनीतिक में खेल नहीं करते.’’यह टिप्पणी सिर्फ तारीफ से कहीं बढ़कर थी. यह एक आश्वासन भी था कि अब राज्यसभा की अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति अपने पूर्ववर्ती जगदीप धनखड़ से बिल्कुल अलग हैं,
जिन्होंने सत्तारूढ़ दल के साथ तनावपूर्ण संबंधों और महाभियोग की आंच से बचने के लिए विपक्षी नेताओं से नजदीकियां बढ़ाने की खबरों के बीच इस्तीफा दे दिया था. अगर धनखड़ पर गुटबाजी करने का आरोप लगाया गया था, तो राधाकृष्णन को एक सीधे-सादे व्यक्तित्व के रूप में पेश किया जा रहा है- न कोई चालबाजी, न कोई बेईमानी.
तमिलनाडु भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और आजीवन आरएसएस कार्यकर्ता राधाकृष्णन ने अपनी सादगी भरी जीवनशैली, बेदाग छवि और संगठन के प्रति निष्ठा के दम पर अपनी पहचान बनाई है. जनसंघ के दिनों से लेकर महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में अपने कार्यकाल तक, वे गुटीय झगड़ों और साजिशों से दूर रहे हैं- जो दिल्ली के सत्ता के गलियारों में दुर्लभ है.
उपराष्ट्रपति के रूप में, उन्हें गहरे विभाजित उच्च सदन को चलाने के लिए इन गुणों की आवश्यकता होगी. सहयोगियों का कहना है कि वह खिलाड़ी से ज्यादा अंपायर हैं- दृढ़, निष्पक्ष, और नियमबद्ध. तीखे राजनीतिक दांव-पेंच के इस दौर में, राधाकृष्णन की सबसे बड़ी ताकत शायद यही है कि वे राजनीति में खेल करने से इनकार करते हैं.
चुनाव आयोग की नरमी
चुनाव आयोग ने 2025 के लिए विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया पर अपने कठोर रुख में उल्लेखनीय रूप से नरमी बरती है. पहला बदलाव आयोग के 24 जून के कड़े निर्देशों के बाद आया. 1 अगस्त तक, जब मतदाता सूची का मसौदा प्रकाशित हुआ, तो मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा इसमें शामिल पाया गया- वह भी बिना अनिवार्य दस्तावेज प्रस्तुत किए.
इससे यह सुनिश्चित हुआ कि पहले जिस मताधिकार से वंचित होने की आशंका थी, वह साकार नहीं हुई, हालांकि यह चुनाव आयोग द्वारा अपने रुख में उल्लेखनीय नरमी भी दर्शाता है. दूसरी रियायत सुप्रीम कोर्ट के 14 अगस्त के आदेश के बाद मिली. कोर्ट ने चुनाव आयोग को उन मतदाताओं का बूथवार विवरण प्रकाशित करने का निर्देश दिया,
जो एसआईआर 2025 से पहले की मतदाता सूची में शामिल थे, लेकिन 1 अगस्त के मसौदे में शामिल नहीं थे. महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें सूची से बाहर रखने के कारणों को आयोग की वेबसाइट पर डालना होगा, जहां उन्हें ईपीआईसी नंबर से खोजा जा सकेगा. पारदर्शिता, जिसका चुनाव आयोग ने तार्किक चुनौतियों का हवाला देकर विरोध किया था, इस प्रकार अनिवार्य हो गई.
तीसरा कदम आधार से जुड़ा था. आयोग लगातार यह कहता रहा था कि आधार 11 निर्धारित पहचान प्रमाणों में शामिल नहीं है. फिर भी, सर्वोच्च न्यायालय के बार-बार दबाव के बाद- खासकर विलोपन सूची में शामिल 65 लाख मतदाताओं के संबंध में- चुनाव आयोग ने मान लिया कि वह दावों को शामिल करने के लिए आधार को सहायक साक्ष्य के रूप में मानेगा.
अंततः, 1 सितंबर को एक और महत्वपूर्ण रियायत सामने आई. चुनाव आयोग 1 सितंबर की अपनी समय सीमा के बाद भी दावों, आपत्तियों और सुधारों को स्वीकार करने पर सहमत हो गया, और यह प्रक्रिया नामांकन की अंतिम तिथि तक जारी रहेगी. इससे प्रभावी रूप से असंतुष्ट मतदाताओं के लिए निवारण का अवसर बढ़ गया.
कुल मिलाकर, ये चार कदम चुनाव आयोग के पहले के रवैये से एक उल्लेखनीय वापसी का संकेत देते हैं. कभी अड़ियल रुख अपनाने वाला चुनाव आयोग अब समावेशन और पारदर्शिता के पक्ष में चुपचाप, लेकिन स्पष्ट रूप से झुकने को मजबूर हो गया है.
फिर 8 सितंबर को अंतिम फैसला आया जब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह संशोधित मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए पहचान के प्रमाण के रूप में आधार कार्ड को ‘12वें दस्तावेज’ के रूप में शामिल करे. हालांकि, चुनाव आयोग के अधिकारी मतदाताओं द्वारा प्रस्तुत आधार कार्ड की प्रामाणिकता और वास्तविकता की पुष्टि करने के हकदार होंगे.