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शोभना जैन का ब्लॉग: चुनौती भरे दौर में भारत को अहम जिम्मेदारी

By शोभना जैन | Updated: May 23, 2020 08:08 IST

डब्ल्यूएचओ को अंतत: भारत सहित दुनिया के करीब 130 देशों द्वारा कोरोना वायरस की उत्पत्ति और इसके प्रसार पर वैश्विक प्रतिक्रिया का आकलन करने के लिए ‘निष्पक्ष, स्वतंत्र एवं विस्तृत’ जांच करवाने के लिए पारित महत्वपूर्ण प्रस्ताव को स्वीकार करना पड़ा, जिससे यह पता लगाया जा सकेगा कि चीन के वुहान नगर से कोरोना वायरस आखिर आया कैसे. साथ ही दुनिया को समय रहते आगाह करने की डब्ल्यूएचओ की भूमिका की जांच/समीक्षा की जा सकेगी.

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चीन के भारी प्रभाव में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा भयावह कोरोना महामारी से ‘अप्रभावी’ ढंग से निपटने को लेकर उठे सवालों से बचने के लिए की गई तमाम पैंतरेबाजी और ना-नुकुर के बावजूद आखिरकार डब्ल्यूएचओ असेंबली को सदस्य देशों के दबाव के आगे झुकना पड़ा और कोरोना महामारी पर समय रहते अंकुश नहीं लगा पाने में डब्ल्यूएचओ को अपनी भूमिका को लेकर स्वतंत्र, निष्पक्ष जांच के लिए राजी होना पड़ा है. निश्चय ही चीन और डब्ल्यूएचओ को जिस तरह से 130 देशों के दबाव के चलते जांच के इस सर्वसम्मत प्रस्ताव को मानना पड़ा, वह कोरोना की शुरुआती सूचनाएं दुनिया भर से छिपाने के आरोपों को लेकर अलग-थलग पड़ते जा रहे चीन के लिए अच्छी खबर नहीं है और न ही डब्ल्यूएचओ की साख के लिए. दुनिया भर के देशों के एकजुट होने के चलते चीन तक को भी आखिर में प्रस्ताव का सहप्रस्तावक बनना पड़ा.  

डब्ल्यूएचओ को अंतत: भारत सहित दुनिया के करीब 130 देशों द्वारा कोरोना वायरस की उत्पत्ति और इसके प्रसार पर वैश्विक प्रतिक्रिया का आकलन करने के लिए ‘निष्पक्ष, स्वतंत्र एवं विस्तृत’ जांच करवाने के लिए पारित महत्वपूर्ण प्रस्ताव को स्वीकार करना पड़ा, जिससे यह पता लगाया जा सकेगा कि चीन के वुहान नगर से कोरोना वायरस आखिर आया कैसे. साथ ही दुनिया को समय रहते आगाह करने की डब्ल्यूएचओ की भूमिका की जांच/समीक्षा की जा सकेगी.

प्रस्ताव में प्रावधान है कि महामारी से निपटने वाली  प्रणाली का आकलन किया जाएगा. जांच के दायरे में वायरस की ‘जानवरों से इसकी उत्पत्ति’ का पता लगाया जाएगा और यह पता लगाने के लिए वैज्ञानिक व सहयोगी क्षेत्रीय जांच की मांग की गई है ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति से प्रभावी तरह से निपटा जा सके.

महामारी की भयावहता के मद्देनजर ऑस्ट्रेलिया और 27 देशों के संगठन यूरोपीय यूनियन द्वारा रखे गए इस आशय के प्रस्ताव के भारत सहित लगभग 60 देश  सहप्रस्तावक बने. भारत के लिए इस बीमारी से निपटने की त्रासदी के अलावा एक बेहद अहम बात यह है कि अगले एक साल तक के लिए भारत की विश्व स्वास्थ्य संगठन में खास तौर पर भूमिका अहम होने जा रही है. कोरोना संकट के नाजुक दौर में भारत ने कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाला है, जबकि सब की निगाहें विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका को लेकर चिंताओं से भरी हैं, जो सवालों के घेरे में है.

अमेरिका और चीन के बीच तो डब्ल्यूएचओ तीखे आक्रोश का मंच बन गया है. इस अहम बोर्ड का काम डब्ल्यूएचओ की असेंबली के फैसलों और नीतियों को प्रभावी रूप देना और कामकाज को प्रभावी बनाने के लिए सलाह देना होता है. भारत के स्वास्थ्य मंत्री के नाते डॉ. हर्षवर्धन अगले एक वर्ष के लिए बोर्ड के अध्यक्ष नामित किए गए हैं और यही वक्त है जबकि डब्ल्यूएचओ कोरोना से निपटने में अपनी भूमिका की जांच करेगा.

निश्चय ही भारत के लिए इस दौर में यह जिम्मेदारी बहुत अहम होगी. सरकारी सूत्रों के अनुसार अपनी इस नई जिम्मेदारी में भारत इस तरह की चुनौतियों से निपटने में बहुमंचीय फ्रेमवर्क को मजबूत बनाए जाने के साथ ही आपदाओं से निपटने में नए नियम तथा नीतियां बनाए जाने पर जोर देगा. वह ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली तथा संसाधनों पर ध्यान दिए जाने पर बल देगा जो कि अधिक जनकेंद्रित हों, जिनका लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके, जो  सस्ती हों तथा दुनिया भर में हर देश इसे अपने यहां लागू कर सकें. बहरहाल, यह यात्रा अभी शुरू ही हुई है, दौर चुनौती भरा है और भारत की राय अहम होगी.

दरअसल चीन द्वारा ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ व्यापारिक प्रतिबंध लागू किए जाने की खुली धमकी के बावजूद आॅस्ट्रेलिया ने  27 देशों की यूरोपीय यूनियन के साथ मिल कर कोरोना से निपटने में विश्व स्वास्थ्य इकाई की भूमिका तथा अन्य संबद्ध पहलुओं की जांच/समीक्षा करने का  यह चर्चित प्रस्ताव रखा था. बाद में भारत भी इसका सहप्रस्तावक बना और कुल मिला कर 130 देशों ने इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया.

समर्थन करने वालों में भारत के साथ बांग्लादेश, भूटान, रूस, सऊदी अरब, तुर्की, ब्रिटेन, जापान शामिल हैं. आश्चर्यजनक ढंग से इसमें अमेरिका का नाम शामिल नहीं है, जो कोरोना वायरस के प्रसार पर चीन और डब्ल्यूएचओ को जिम्मेदार ठहराता रहा है. सदस्य देशों के लिए इस रिपोर्ट को मानना अनिवार्य नहीं है. इंतजार  रहेगा कि क्या रिपोर्ट साफगोई से कारणों और स्थिति की समीक्षा करेगी या फिर चीन जैसे शक्तिशाली राष्ट्र के होने की वजह से संतुलन बिठाने का रास्ता निकाला जाएगा. क्या भविष्य में ऐसी आपदाओं से प्रभावी ढंग से निपटने की नीति बन पाएगी?

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