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ब्लॉग: शिक्षा क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने की जरूरत

By गिरीश्वर मिश्र | Published: February 06, 2024 10:14 AM

देश की आर्थिक सेहत सुधरने के कई संकेत मिल रहे हैं। दूसरी ओर सामाजिक समता, न्याय, सौहार्द्र और जनहित के प्रयासों और उपलब्धियों को संजीदगी देखने पर आम आदमी के मन में दुविधाएं बनी हुई हैं। महंगाई, नौकरशाही और न्याय व्यवस्था की मुश्किलों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।

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देश को वर्ष 2047 में विकसित करने का शुभ-संकल्प सभी भारतीयों के लिए बड़ा लुभावना लगता है। यह अलग बात है कि जब उस मुकाम तक पहुंचेंगे, तथाकथित विकसित देशों के लिए विकसित का अर्थ शायद बदल चुका होगा। बहरहाल, इतना तो तय है कि हम आज जहां हैं वह स्थिति संतोषजनक नहीं है। उससे बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, न्याय तथा उद्योग-धंधों की स्थिति की ओर आगे बढ़ने की कल्पना को साकार करने के लिए सभी उद्यत हैं।

आज विश्व की पांचवीं अर्थशक्ति बने भारत के आर्थिक विकास की हालत को देखते हुए जो आकलन हो रहे हैं, उसके आधार पर ‘विकसित भारत @1947’ के स्वप्न को देखने की हमारी इच्छा बेवजह की खामखयाली भी नहीं कही जा सकती।

देश की आर्थिक सेहत सुधरने के कई संकेत मिल रहे हैं। दूसरी ओर सामाजिक समता, न्याय, सौहार्द्र और जनहित के प्रयासों और उपलब्धियों को संजीदगी देखने पर आम आदमी के मन में दुविधाएं बनी हुई हैं। महंगाई, नौकरशाही और न्याय व्यवस्था की मुश्किलों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।

 विकसित भारत की दौड़ में इन सब पर भी गौर करना जरूरी है। यहां इस बात को भी ध्यान में लाना होगा कि विकसित भारत की कल्पना को साकार करने के लिए सिर्फ भौतिक संसाधन ही पर्याप्त नहीं होंगे।उसके लिए प्रशिक्षित और निपुण मानव संसाधन की जरूरत सबसे ज्यादा होगी। जनसंख्या वृद्धि को देखते हए शिक्षा चाहने वाले जन-समुदाय की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। इस दृष्टि से देश के बजट में शिक्षा के लिए प्रावधान को बढ़ाने की जरूरत होगी। यह याद किया जाना चाहिए कि अनेक वर्षों से शिक्षा पर बजट में छह प्रतिशत खर्च करने की बात पर जोर दिया जाता रहा है।

 दुर्भाग्य से इस लक्ष्य तक हम आज तक नहीं पहुंच सके हैं. इस दृष्टि से इस बार के अंतरिम बजट के प्रावधान भी बहुत आशाजनक नहीं दिख रहे हैं। बुनियादी शिक्षा, स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा के लिए आवंटन में कुछ बढ़ोत्तरी हुई है जो महंगाई को ध्यान में रखकर आवश्यकता के अनुपात में पर्याप्त नहीं है। 

साथ ही नई शिक्षा नीति-2020 के प्रावधानों के अनुसार प्रस्तावित विविध प्रकार के सुधारों के लिए जो संसाधन अपेक्षित है, उनको भी जुटाना असंभव दिख रहा है। शिक्षा नीति के प्रति सरकार में बड़ा उत्साह है। परंतु उसे कार्य रूप में बदलने के लिए जरूरी निवेश की दृष्टि से हमारे मनोरथ चरितार्थ होते नहीं दिखते।

सरकार ने गरीब, महिला, किसान और युवा के विकास के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है। इनके लिए गुणवत्ता वाली शिक्षा विशेष महत्व की है। सभी चाहते हैं कि शिक्षा तक सबकी पहुंच हो सके और वह विद्यार्थी के समग्र विकास की दिशा में सक्रिय हो। इस बार के बजट में अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुकूल आगे बढ़ाने के लिए तकनीकी क्षेत्र में अधिक आवंटन हुआ है किंतु आईआईटी, आईआईएम जैसे उच्च शिक्षा संस्थानों के बजट में कटौती की गई है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के बजट में बड़ी कटौती हुई है।

ई-लर्निंग और शोध और उन्नयन के मद में जरूर इजाफा हुआ है। अनुसंधान और नवाचार के लिए विशेष फंड और ब्याजमुक्त ऋण की व्यवस्था की गई है। आशा है कि शिक्षा जगत की जरूरतों पर अवश्य ध्यान दिया जाएगा. जुलाई में जब पूरा बजट आए तो उसमें देश की शैक्षिक संरचना की दृष्टि से उचित निवेश की व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए।

टॅग्स :एजुकेशनशिक्षा मंत्रालय
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