Lok Sabha Elections 2024: 2024 के लोकसभा चुनावों में अपनी सीट और वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्पित भाजपा आलाकमान राज्यों में अपने सहयोगियों से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए कह रहा है. इस रणनीति के तहत पार्टी महाराष्ट्र में अजित पवार के नेतृत्व वाली अपनी प्रमुख सहयोगी राकांपा को बारामती, सतारा, शिरूर और रायगढ़ की सभी चार सीटें छीनने के लिए उकसा रही है; जो 2019 के लोकसभा चुनावों में राकांपा (शरद पवार गुट) के पास थीं. शरद पवार ने यह स्पष्ट संदेश देने के लिए अपनी बेटी सुप्रिया सुले को अपनी पारंपरिक बारामती लोकसभा सीट से खड़ा किया था कि वह उनकी उत्तराधिकारी होंगी. लेकिन स्थिति में तब नाटकीय मोड़ आ गया जब अजित पवार ने पार्टी के अधिकांश विधायकों को अपने साथ लेकर भाजपा से हाथ मिला लिया.
दिल्ली में भाजपा मुख्यालय से आने वाली रिपोर्टों में कहा गया है कि अजित पवार को सुप्रिया सुले के खिलाफ बारामती लोकसभा से अपनी पत्नी को मैदान में उतारने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. यह इस तथ्य के बावजूद है कि पीएम मोदी और पवार के बीच कई दशकों से निजी केमिस्ट्री चली आ रही है.
लेकिन समय बदल गया है और अंदरूनी सूत्रों की मानें तो भाजपा इस महीने होने वाले द्विवार्षिक चुनावों में सभी छह राज्यसभा सीटें जीतने की रणनीति बना रही है. एनडीए पांच सीटें जीतने में कामयाब हो सकता है, लेकिन कई रणनीतिकार दावा करते हैं कि अगर विपक्ष के कुछ विधायक भाजपा के हाथों खेल जाएं तो एनडीए छह सीटें जीत सकता है.
288 के सदन में कांग्रेस के 41 विधायक हैं और न ही राकांपा ( शरद पवार) और न शिवसेना (उद्धव) अपने दम पर एक सीट जीत सकते हैं. ऐसी खबरें हैं कि वरिष्ठ पवार बारामती में सहानुभूति फैक्टर का आह्वान करते हुए कह सकते हैं कि यह उनके जीवन का आखिरी चुनाव होगा. यह काम करेगा या नहीं, इसका परीक्षण तो मई में ही हो सकेगा.
एक भरोसा, जिसका कोई भरोसा नहीं
भारतीय राजनीति के महान ‘पलटू राम’ ने लगभग 45 साल पहले हरियाणा में देखे गए ‘आया राम, गया राम’ के सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. जब मध्यस्थ एक बार फिर गठबंधन के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा नेतृत्व के बीच शांति समझौता करा रहे थे, तो एक अड़चन आ गई. मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के तुरंत बाद नीतीश कुमार राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर से नया नियुक्ति पत्र चाहते थे. वह चाहते थे कि उनका इस्तीफा तुरंत स्वीकार कर लिया जाए और साथ ही भाजपा उन्हें अपना समर्थन पत्र राज्यपाल को सौंप दे.
वह यह भी चाहते थे कि राज्यपाल उन्हें उसी समय नया नियुक्ति पत्र सौंप दें. नीतीश ने इस बात पर भी जोर दिया कि शपथ ग्रहण समारोह उसी दिन आयोजित किया जाए. भाजपा के लिए यह विकट स्थिति थी क्योंकि उसके विधायकों ने नीतीश कुमार को अपना समर्थन देने के लिए कोई बैठक नहीं की थी ताकि पार्टी राज्यपाल को नीतीश कुमार को समर्थन देने का पत्र सौंप सके.
नीतीश कुमार बेहद शक्की स्वभाव के हैं और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शर्तें पूरी होने पर ही समझौता किया जा सकता है. भाजपा इस शर्त के साथ सभी शर्तों पर सहमत हुई कि लोकसभा सीट साझाकरण समझौता मेरिट के आधार पर होगा, न कि 2019 के नतीजे के आधार पर. पर्दे के पीछे के इन पेचीदा समझौतों के बाद ही भाजपा नीतीश कुमार के साथ सत्ता साझेदारी समझौते पर वापस लौट सकी. दिलचस्प बात यह है कि नीतीश कुमार को बिहार में एनडीए का प्रमुख भी नियुक्त किया गया है.
लालकृष्ण आडवाणी को भारतरत्न क्यों?
जब से मोदी सरकार ने 2023 में समाजवादी नेता दिवंगत मुलायम सिंह यादव को पद्मविभूषण दिया है, तब से आरएसएस और कट्टर भाजपा कार्यकर्ता परेशान थे. आखिरकार, वह यूपी में मुलायम सिंह यादव की सरकार ही थी जिसने 30 अक्तूबर 1990 को कारसेवकों और पुलिस के बीच झड़प के बाद अयोध्या में रामभक्तों पर गोलियां चलवाई थीं.
आयोजक-विहिप, आरएसएस और भाजपा-बाबरी मस्जिद स्थल पर राम मंदिर चाहते थे लेकिन यह अभी तक स्पष्ट नहीं था कि कारसेवक मस्जिद के साथ क्या करेंगे. इसलिए संघ परिवार यादव को पुरस्कार दिए जाने को लेकर बिना कुछ कहे नाराज चल रहा था. याद करें कि 2003 में आरएसएस विचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी ने जब तक के.बी. हेडगेवार (आरएसएस संस्थापक) और एम.एस. गोलवलकर (आरएसएस विचारक) को भारत रत्न नहीं दिया जाता, तब तक पद्मभूषण पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया था. ठेंगड़ी को यह पुरस्कार वाजपेयी सरकार ने देने की घोषणा की थी.
आरएसएस दशकों से इन पुरस्कारों पर चुप्पी साधे हुए है. इसलिए जब मोदी सरकार ने आडवाणी को भारत रत्न दिया तो कोई टिप्पणी नहीं की. लेकिन आम भाजपा कार्यकर्ता बेहद उत्साहित हैं क्योंकि आडवाणी को एक महान व्यक्ति माना जाता है जिन्होंने भाजपा को दो लोकसभा सीटों से 182 तक पहुंचाया और राम मंदिर आंदोलन के माध्यम से पार्टी को सत्ता में लाए. हाल ही में मोदी सरकार पार्टी कार्यकर्ताओं को पुरस्कृत कर रही है और राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में तीन मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति इस नई सोच का संकेत है.
मोदी के 370 सीटों के लक्ष्य से सहयोगी दल परेशान!
पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में ऐलान किया कि भाजपा 370 सीटें जीतेगी और एनडीए 400 सीटों का आंकड़ा पार कर जाएगा. लक्ष्य हासिल करने के लिए भाजपा अब महाराष्ट्र, बिहार और अन्य जगहों पर चुनाव लड़ने के लिए अपने सहयोगियों से अधिक सीटें हासिल करने की तैयारी कर रही है.
उदाहरण के लिए, वह चाहती है कि नीतीश कुमार 17 के बजाय 10-12 सीटों पर ही चुनाव लड़ें. भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों में नीतीश कुमार को अपनी पांच सीटें दे दी थीं. अब वह इन्हें 2024 के चुनावों में वापस चाहती है. इसी तरह महाराष्ट्र में भाजपा 30 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है.
जबकि 2019 में भाजपा ने संयुक्त शिवसेना के साथ गठबंधन कर राज्य में 25 सीटों पर चुनाव लड़ा था. वह चाहती है कि शिवसेना (शिंदे गुट) और अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा केवल उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ेे, जहां वह जीत सकती है. इन पेचीदा मुद्दों पर अंतिम फैसला होना अभी बाकी है.