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हरीश गुप्ता का ब्लॉग: प. बंगाल के बाद महाराष्ट्र में ‘ऑपरेशन लोटस’!

By हरीश गुप्ता | Updated: March 25, 2021 11:33 IST

देवेंद्र फड़नवीस इस धारणा के साथ दिल्ली से वापस मुंबई लौटे कि इस समय भाजपा की पूरी मशीनरी बंगाल की लड़ाई में व्यस्त है. तब तक उन्हें शांत रहना चाहिए. एनआईए धीमी गति से चल रही है, ईडी अपनी बारी का इंतजार कर रही है और सीबीआई चुपचाप संदेहास्पद वाझे कांड में अपनी भूमिका तलाश रही है.

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महाराष्ट्र में ‘ऑपरेशन लोटस’ के लिए जमीन और मंच दूसरी बार तैयार है. राकांपा की मदद से महाराष्ट्र में सरकार बनाने का पहला प्रयास नवंबर 2019 में विफल हो गया था. भाजपा उसके बाद से ही शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन सरकार के गिरने का इंतजार कर रही है.

भारतीय जनता पार्टी इसे ‘विरोधाभासों का गठबंधन’ कहती है, जिसके लंबे समय तक चलने की संभावना नहीं है. जब वाझे कांड सामने आया तो भाजपा को इसमें फिर से संभावना दिखी. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस दिल्ली गए और प्रधानमंत्री मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह को राज्य में उत्पन्न स्थिति की जानकारी दी, ऐसे राज्य में जिसे भाजपा ने शिवसेना गठबंधन के साथ जीतने के बाद भी खो दिया था.

फड़नवीस इस धारणा के साथ मुंबई लौटे कि इस समय भाजपा की पूरी मशीनरी बंगाल की लड़ाई में व्यस्त है. तब तक उन्हें शांत रहना चाहिए. एनआईए धीमी गति से चल रही है, ईडी अपनी बारी का इंतजार कर रही है और सीबीआई चुपचाप संदेहास्पद वाझे कांड में अपनी भूमिका तलाश रही है. लेकिन अप्रत्याशित मौके को छोड़ने का कोई सवाल ही नहीं है और भाजपा 2 मई के बाद किला फतह करने की दिशा में बढ़ेगी.

मोदी वापस लेंगे दो हजार का नोट?

इस बारे में अत्यधिक कयास लगाए जा रहे हैं कि काला धन पर अंकुश लगाने के लिए प्रधानमंत्री दो हजार रु. के नोट को वापस लेने वाले हैं. हालांकि रिजर्व बैंक ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि ऐसी कोई योजना नहीं है. लेकिन हकीकत यह है कि संवेदनशील मुद्दों पर रिजर्व बैंक को ऐसे राजनीतिक निर्णयों की सबसे अंत में जानकारी मिलती है.

सरकार ने दो हजार के नोट को अब आगे और नहीं छापने का निर्णय लिया है क्योंकि प्रधानमंत्री को संदेह है कि इसका उपयोग मनी लॉन्ड्रिंग और जमाखोरी के लिए किया जा रहा है. सरकार ने निकट भविष्य में नोटबंदी का रास्ता अपनाने के बजाय दो हजार के नोट को धीरे-धीरे प्रचलन से हटाने का फैसला किया है.

पता चला है कि 30 मार्च 2018 को दो हजार के 3362 मिलियन नोट चलन में थे जो कि 26 फरवरी 2021 को घटकर 2499 मिलियन रह गए हैं. सरल शब्दों में इसका मतलब है कि रिजर्व बैंक ने दो हजार के 863 मिलियन नोटों को वापस ले लिया है.

प्रतिशत के लिहाज से इस मूल्य के नोट में 20 प्रतिशत की गिरावट आई है और 2018 के 37.28 प्रतिशत की तुलना में 2021 में इसका प्रवाह 17.78 प्रतिशत है. क्या सरकार पांच राज्यों के चुनाव के बाद कोई सरप्राइज देगी?

क्या मोदी उम्मीद से कहीं जल्दी झटका देंगे? आधिकारिक तौर पर, सरकार ने रिजर्व बैंक को दो हजार के नोट छापने के लिए आदेश देना बंद कर दिया है. दस्तावेज बताते हैं कि रिजर्व बैंक ने 2019-20 और 2020-21 में दो हजार के नोट नहीं छापे हैं. आपका क्या अनुमान है!

हिमंत बिस्व सरमा होने के मायने क्या है?

यह एक ऐसा दुर्लभ नजारा था जैसा ‘संघ परिवार’ में पहले कभी नहीं देखा गया. 2015 में कांग्रेस से भाजपा में आए एक बाहरी व्यक्ति ने भाजपा के एक सर्वशक्तिमान महासचिव को हटाया जाना सुनिश्चित किया. मानो यह पर्याप्त नहीं था.

माधव को अंतत: आरएसएस में वापस ले लिया गया. राम माधव, एक हाईप्रोफाइल आरएसएस प्रचारक, जो बाद में भाजपा महासचिव के रूप में पदोन्नत हुए, भौंचक्के रह गए. पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर पर वे पूरा अधिकार रखते थे और उनके शब्द ही कानून थे. लेकिन असम के मंत्री हिमंत बिस्व सरमा के रास्ते में आते ही वे मुसीबत में पड़ गए.

माधव शायद सरमा के महत्व को समझ नहीं पाए जो केंद्रीय मंत्री अमित शाह के दाहिने हाथ भी हैं, और उन्होंने इसकी भारी कीमत चुकाई है. राम माधव से पहले तो पूर्वोत्तर का प्रभार ले लिया गया और फिर महासचिव पद से हटा दिया गया.

अब उन्हें आरएसएस में वापस भेज दिया गया है. पहले भी आरएसएस के कई प्रचारक भाजपा में अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हुए हैं. लेकिन किसी को भी राम माधव की तरह नहीं लौटना पड़ा. यहां तक कि आरएसएस भी ऐसे बड़े प्रचारक के लायक कोई भूमिका अभी तक खोज नहीं पाया है.

भाजपा के अंदरूनी सूत्र तो कानाफूसी भरे स्वर में कहते हैं कि उन्हें हटाए जाने का मामला माधव-सरमा की लड़ाई से कहीं ज्यादा है. अब यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि अगर भाजपा असम में अपनी सत्ता बरकरार रखती है तो सरमा मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं.

सरमा ने 2015 में राहुल गांधी के साथ अपनी अप्रीतिकर मुलाकात के बाद कांग्रेस से भाजपा में प्रवेश किया था. राहुल गांधी ने सरमा से साफ तौर पर कहा था कि ‘‘आप केवल कांग्रेस से ही असम के मुख्यमंत्री बन सकते हैं. भाजपा दलबदलू को कभी मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी.’’ सरमा ने फिर भी दल बदलने का फैसला किया था. अब वे मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार समझे जा रहे हैं.

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