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अवधेश कुमार का ब्लॉगः सिर्फ संघर्ष से ही दूर नहीं होगा कृषि संकट 

By अवधेश कुमार | Updated: December 11, 2018 15:45 IST

किसानों को उचित मूल्य मिले इससे तो कोई इंकार कर ही नहीं सकता. केंद्र ने लागत का डेढ़ गुना मूल्य तय किया है जो मांग के अनुसार तो नहीं है, किंतु उसके पास अवश्य है. केंद्र पैदावारों का एक अंश खरीद सकता है. उसके बाद राज्यों की भूमिका दो स्तरों पर होती है.

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राजधानी दिल्ली में किसान आंदोलन के नाम पर किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले जितनी संख्या में लोग जुटे, जिस तरह का प्रदर्शन हुआ, संसद तक कूच के लिए रामलीला मैदान से जो लंबी कतारें दिखीं वो पहली नजर में सुखद आश्चर्य पैदा करने वाली थीं. अगर किसानों के नाम पर इतनी संख्या में लोग सरकार के दरवाजे पर दस्तक दें तो इसे सामान्य तौर पर अच्छा संकेत ही माना जाएगा.

किसानों के हाशिए पर जाने के कारणों में एक यही था कि कभी इनका कोई ऐसा संगठन खड़ा नहीं हुआ जो सरकारों को उद्योग एवं कारोबार के समानांतर कृषि के लिए नीतियां बनाकर उसे क्रियान्वित करने को मजबूर कर सके. टिकैत आंदोलन को छोड़कर कभी ऐसा संघर्ष नहीं हुआ जिसने सरकार को नैतिक रूप से दबाव में लाया हो. किंतु, इसके दूसरे पक्ष पर नजर डालें तो उम्मीद और उत्साह ठंडा होने लगता है. 

किसानों को उचित मूल्य मिले इससे तो कोई इंकार कर ही नहीं सकता. केंद्र ने लागत का डेढ़ गुना मूल्य तय किया है जो मांग के अनुसार तो नहीं है, किंतु उसके पास अवश्य है. केंद्र पैदावारों का एक अंश खरीद सकता है. उसके बाद राज्यों की भूमिका दो स्तरों पर होती है. एक स्वयं खरीदने में तथा दूसरे निजी खरीद में उचित मूल्य दिलाने में. मध्य प्रदेश सरकार ने भावांतर योजना चालू की. 

इसी तरह की योजना केंद्र की भी है. उसमें कुछ किसानों को लाभ मिल जाता है, पर कई बार मंडियों में अपने नाम से पर्ची बनाकर भी चालाक लोग इसका लाभ उठा लेते हैं. वहां किसान संगठनों और नेताओं की आवश्यकता है. सरकार ने राष्ट्रीय कृषि बाजार यानी ई-नाम चलाया है जिसकी वेबसाइट पर किसान, व्यापारी जुड़ रहे हैं. उसे ताकत देने की आवश्यकता है. सरकारें पूरी  पैदावार खरीदने लगें तो एक दिन अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी. 

इसलिए व्यावहारिक रास्ता यही है कि ई-नाम को बढ़ावा दिया जाए, उसे लोकप्रिय किया जाए और किसानों को उससे जोड़ा जाए. कृषि से जुड़े छोटे और मझोले उद्योग खड़े हों. इसमें किसानों की उपज के प्रसंस्करण से अतिरिक्त आय होगी. इसके लिए कौशल विकास योजना से उनको प्रशिक्षण दिया जाए. किसानों के जीवनयापन का खर्च घटे इसके लिए स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा एवं अन्य आवश्यकताओं का गुणवत्तापूर्ण ढांचा खड़ा हो. 

सरकार इस दिशा में काम कर रही है उसे धरातल पर उतारने के लिए संघर्ष के साथ निर्माण कार्यकर्ता के रूप में काम करने की आवश्यकता है. खेती का खर्च घटे इसलिए प्रकृति के अनुसार खेती जिसे जैविक खेती से लेकर शून्य बजट खेती का नाम दिया गया है, उसको फैलाया जाए.

कहने का तात्पर्य यह कि किसानों को दुर्दशा से मुक्त करने तथा कृषि को सम्मानजनक एवं लाभकारी  बनाने के लिए संघर्ष से ज्यादा निर्माण और जागरण के लिए काम करने की जरूरत है.

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