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किसान आत्महत्या एक बड़ा मामला, कर्ज तले दबकर देते हैं सबसे ज्यादा जान

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: June 24, 2022 2:20 PM

अब भी आधे से ज्यादा किसान साहूकारों और आढ़तियों से कर्ज लेने को मजबूर हैं। महज कर्ज माफी या छोटे-मोटे प्रोत्साहन किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार की किसान कल्याणकारी योजनाओं का धरातल पर पहुंचना जरूरी है। किसानों के पास जानकारियों का अभाव है।

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ठळक मुद्देकिसान कहता है कि कृषि अब बेहद ही घाटे का सौदा बन गया है।बाजार किसानों को उपज का सही दाम नहीं देता है।राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के एक सर्वे के मुताबिक देश के आधे से ज्यादा किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैं।

खेती की लागत बढ़ने, जलवायु में बदलाव के चलते होने वाले खतरों से और बाजार की दोषपूर्ण नीतियों से घिरे हुए किसान खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में किसानों का साथ देने के उद्देश्य से महाराष्ट्र सरकार ने महात्मा ज्योतिबा फुले किसान कर्ज मुक्ति योजना 2019 के तहत पूरा कर्ज चुकाने वाले किसानों को प्रोत्साहन देने का निर्णय लिया है। हालांकि इसकी घोषणा बजट भाषण में की गई थी, लेकिन मंत्रिमंडल ने इसे अब मंजूरी दे दी है। यह सराहनीय कदम है। राज्य में किसान आत्महत्या एक बड़ा मामला है। यहां किसान कर्ज के बोझ तले दबकर सबसे ज्यादा जान देते हैं। 

जाहिर है सरकार पर कर्ज माफी का दबाव भी रहता है। इसे लेकर समय-समय पर सियासत भी गरमाती रहती है। यदि सरकार किसान को उसकी उपज का सही मूल्य दिलवाने में कामयाब हो जाए, तो कर्जमुक्ति की नौबत ही न आए। बीते साल हमने देखा है कि राज्य के कई जिलों में किसानों को टमाटरों को सड़क पर फेंकना पड़ा था, शिमला मिर्च फ्री में बांटनी पड़ी थी, क्योंकि उन्हें इसका सही दाम नहीं मिल रहा था। किसानों की आमदनी का ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है। कृषि मामलों के जानकारों की मानें तो किसानों को बेहतर मार्गदर्शन की जरूरत है। उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की योजनाओं का वक्त पर लाभ पहुंचा कर ही गलत कदम उठाने से रोका जा सकता है। 

अब भी आधे से ज्यादा किसान साहूकारों और आढ़तियों से कर्ज लेने को मजबूर हैं। महज कर्ज माफी या छोटे-मोटे प्रोत्साहन किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार की किसान कल्याणकारी योजनाओं का धरातल पर पहुंचना जरूरी है। किसानों के पास जानकारियों का अभाव है। सही मार्गदर्शन और सही समय पर आर्थिक मदद से उनके जीवन स्तर और माली हालत को मजबूत किया जा सकता है। उस पर मानसून की अनियमितता के चलते फसल की बर्बादी, सिंचाई के लिए पानी की सुनिश्चित आपूर्ति न होना और फसल पर कीड़ों और अन्य बीमारियों के हमले का संकट हमेशा छाया रहता है। 

किसान कहता है कि कृषि अब बेहद ही घाटे का सौदा बन गया है। बाजार किसानों को उपज का सही दाम नहीं देता है। इसके साथ ही बीज से लेकर पानी और मजदूरी तक की लागत बढ़ रही है, जलवायु परिवर्तन के चलते बेहद खराब मौसम देखने को मिल रहा है। जब फसल महंगी हो जाती है तो सरकार विदेश से सस्ता अनाज आयात कर लेती है।

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के एक सर्वे के मुताबिक देश के आधे से ज्यादा किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैं। और एक अन्य अध्ययन के अनुसार हर तरफ से निराश हो चुके देश के 76 फीसदी किसान खेती छोड़कर कुछ और करना चाहते हैं। यह समय है कि हम जो भोजन कर रहे हैं, उसे उगाने वालों के फायदे के बारे में सोचें। किसान को अगर खुशहाल करना है तो सरकारों को अपनी नियत और नीतियां-दोनों को सुधारना होगा। किसान की आय कैसे बढ़ाई जाए, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

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