ईद-उल-अजहा : अल्लाह के प्रति समर्पण का पर्व
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: June 17, 2024 11:14 AM2024-06-17T11:14:49+5:302024-06-17T11:17:43+5:30
अल्लाह के तईं परम समर्पण को प्रदर्शित करने वाला त्यौहार ईद-उल-अजहा है। ऐसा त्यौहार, जो सिखाता है कि एक अल्लाह के हुक्म, उसकी इच्छा के आगे सब तुच्छ है, व्यर्थ है।
(जावेद आलम का ब्लॉग)
अल्लाह के तईं परम समर्पण को प्रदर्शित करने वाला त्यौहार ईद-उल-अजहा है। ऐसा त्यौहार, जो सिखाता है कि एक अल्लाह के हुक्म, उसकी इच्छा के आगे सब तुच्छ है, व्यर्थ है। हजारों साल पहले अल्लाह के पैगंबर (ईशदूत) व कई पैगंबरों के पुरखे हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को जब सपना दिखाई देना शुरू हुआ कि अल्लाह की राह में अपनी सबसे प्रिय वस्तु की बलि दो, तो वे विचार करने लगे कि किस चीज को अल्लाह की राह में कुर्बान किया जाए।
छोटे पशुओं की बलि से शुरू हुआ सिलसिला ऊंटों की बलि तक पहुंच गया, मगर ख्वाब बराबर आता रहा. तब इब्राहीम (अ.स.) ने अपने आज्ञाकारी बेटे हजरत इस्माईल (अ.स.) से इस सपने का जिक्र करते हुए कहा, मुझे लगता है कि रब्बे-करीम को तुम्हारी क़ुर्बानी चाहिए।
एक नबी के घराने में पैदा हुए इस्माईल ने, बाद में जिन्हें खुद भी नुबूवत से प्रतिष्ठित किया गया, फौरन अल्लाह और अपने पिता की मंशा को खुशी-खुशी स्वीकार किया। खासे बुढ़ापे में प्राप्त हुए पुत्र रत्न को अल्लाह की राह में कुर्बान करने का इरादा लेकर पिता-पुत्र दोनों घर से दूर वीराने में पहुंचे। पुत्र मोह में पिता के इरादे डगमगा न जाएं, सो इस्माईल (अ.स.) ने पिता को सलाह दी कि आंखों पर पट्टी बांध लें। पुत्र की बात मान इब्राहीम (अ.स.) ने आंखों पर पट्टी बांध कर छुरी फेर दी। जब पट्टी खोली तो देखा कि इस्माईल (अ.स.) दूर खड़े हैं। उनकी जगह एक दुंबा (भेड़ जैसा चौपाया) कुर्बान हुआ है। ईद-उल-अजहा इसी बेमिसाल, अनुपम व अद्वितीय कुर्बानी की यादगार है। कुर्बानी एक आध्यात्मिक अमल है। इस बाबत हजरत मुहम्मद का एक कथन है, जिसका अर्थ कुछ यूं है कि कुर्बानी का मांस व रक्त अल्लाह तआला के पास नहीं पहुंचता, बल्कि बंदे की श्रद्धा-भक्ति देख कर रब्बे-करीम कुर्बानी को कुबूल कर लेता है।