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जब आंखों पर पट्टी बंधी हो और कान में रूई पड़ी हो...!

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 16, 2025 07:32 IST

प्रवर्तन निदेशालय ने यह भी खुलासा किया है कि पवार ने अवैध निर्माण के लिए प्रति वर्गफुट की दर तय कर रखी थी.

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प्रवर्तन निदेशालय ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के जेल में बंद अधिकारी अनिल पवार के बारे में नया खुलासा किया है कि उन्होंने रिश्तव के जरिये 169 करोड़ रु. का साम्राज्य खड़ा किया. पत्नी और बेटी के नाम से तो धन जुटाया ही, रिश्तेदारों के नाम का भी उपयोग किया. अनिल पवार वसई विरार सिटी नगर निगम के आयुक्त हुआ करते थे और इसी साल जुलाई में उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. प्रवर्तन निदेशालय ने यह भी खुलासा किया है कि पवार ने अवैध निर्माण के लिए प्रति वर्गफुट की दर तय कर रखी थी.

वसूली के लिए वे एक गैंग चला रहे थे. यह पहला मौका नहीं है जब प्रशासनिक सेवा के किसी अधिकारी को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. देश का शायद ही कोई ऐसा राज्य हो जहां इस तरह के मामले सामने न आए हों. मध्यप्रदेश में तो अधिकारी दंपति के पास से इतनी नगदी मिली थी कि उसे गिनने में मशीन को भी कई दिन लग गए थे. भ्रष्टाचार को लेकर सबसे ताजा 2023 के आंकड़े उलब्ध हैं.

केंद्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में करीब 74 हजार शिकायतें मिली थीं जबकि 2022 में यह संख्या 1 लाख 15 हजार के आसपास थी. राज्य सरकारों के पास कितनी शिकायतें आई होंगी, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. और ऐसा भी नहीं है कि भ्रष्टाचार केवल अधिकारियों तक सीमित है. नीचे के कर्मचारी भी भ्रष्टाचार का कमाल दिखाते रहते हैं.

सवाल यह है कि अनिल पवार जैसे लोग इस कदर भ्रष्टाचार करते रहते हैं और उन पर शुरुआती दौर में ही किसी की नजर क्यों नहीं जाती? सरकारी खुफिया तंत्र को क्या ऐसे अधिकारियों के बारे में जानकारियां नहीं मिलती हैं? क्या अधिकारी के मातहत काम करने वालों या उनके ऊपर काम करने वालों को भी भनक नहीं लगती है? ऐसा संभव ही नहीं है.

भनक तो लगती ही होगी लेकिन जानबूझकर आंखों पर पट्टी बांध ली जाती है और कान में रुई डाल ली जाती है. जब हालात ऐसे हों तो फिर कार्रवाई करे कौन? जब पानी सिर से ऊपर बहने लगता है या भ्रष्टाचार को छिपाना मुश्किल हो जाता है तो फिर पवार जैसे अधिकारियों की पोल खुलती है. ऐसे में यह पूछा जाना लाजिमी है कि हमारे जनप्रतिनिधि क्या कर रहे होते हैं?

इतने सारे जनप्रतिनिधियों में से क्या किसी को भी भनक नहीं लगती है. या फिर अधिकारियों की करतूतों को इसलिए नजरअंदाज किया जाता है कि कभी उनसे जनप्रतिनिधियों को भी काम पड़ता है? हालांकि पहले की तुलना में प्रत्यक्ष भ्रष्टाचार के मामले निश्चय ही कम हुए हैं लेकिन अभी भी यह एक रोग की तरह हमारे सिस्टम में मौजूद है.

जब तक हम भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति का पालन नहीं करते तब तक विकास की रफ्तार में बाधाएं जिंदा रहेंगी. इन भ्रष्टाचारियोंं को पकड़ने के साथ उन लोगों को भी पकड़ना पड़ेगा जिन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी और कानों में रुई डाल रखी है.

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