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ब्लॉग: आखिर मिला जमीन से जुड़े रहने का परिणाम

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 4, 2023 10:30 IST

यह एक सेमीफाइनल था, जो उसने पहले भी कई बार खेले हैं। अब फाइनल में उसे खुद को साबित करना बड़ी चुनौती होगी।

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पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत को लेकर खासी हलचल दिखाई दे रही है, क्योंकि सियासत के जानकारों ने दोनों ही राज्यों में भाजपा को मैदान से बाहर ही समझ लिया था।

कहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम पर मुश्किलें देखी जा रही थीं, तो कुछ को चेहरा न होने की चिंता परेशान कर रही थी। मगर सभी राज्यों के नतीजे आने के बाद यह तय हो चला है कि चुनावी बिसात से लेकर जमीन पर काम करने का तरीका भाजपा को अच्छी तरह से समझ में आ चुका है, जो उसे विजय की दहलीज तक पहुंचा देता है।

अब तो भाजपा ने चुनाव के पहले और घोषणा के बाद की तैयारी में भी अंतर करना आरंभ कर दिया है। यह पहला चुनाव था, जब उसने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के पूर्व अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। पार्टी की ओर से जिन स्थानों पर नाम घोषित किए गए, वे ज्यादातर पिछले चुनाव में हारे हुए थे।

जिससे कमजोर सीटों पर पहले काम शुरू हुआ, बाद में मजबूत सीटों के लिए प्रत्याशी मैदान में आए। इसके अलावा हर क्षेत्र से सांसदों को चुनावी समर में उतारा, जो उनके प्रभाव का अनेक सीटों पर लाभ उठाने की कोशिश थी। इस रणनीति के अलावा पिछले छह माह में सत्ताविरोधी लहर के कारकों का अध्ययन कर उनका निदान किया गया, जिसके बाद नतीजे सबके सामने हैं।

यदि चुनाव परिणामों पर राज्यवार नजर दौड़ाई जाए तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा सत्ता से बाहर थी और मध्य प्रदेश में भी पूरा कार्यकाल उसे नहीं मिला, फिर भी उसने जमीनी स्तर पर अपनी पकड़ कमजोर नहीं होने दी। गुटबाजी और अपनी आंतरिक समस्याओं को जनता तक नहीं पहुंचने दिया। किसी को भी प्रदेश का चेहरा नहीं घोषित किया और पुराने चेहरों को हाशिए पर न रख उनकी ताकत का उपयोग कर जीत का बिगुल बजा दिया।

वहीं दूसरी ओर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता होने तथा पार्टी आलाकमान का खुला समर्थन होने के बावजूद कांग्रेस का संगठनात्मक रूप से कमजोर होना ही हार का पहला कारण है। पार्टी में नेता अधिक और कार्यकर्ता कम की परिपाटी टूटने नहीं पाई। सत्ता में रहते और विपक्ष की जिम्मेदारी संभालते हुए भी संगठन को मजबूत न बनाने और कार्यकर्ता को अधिक महत्व देने की नीति ही नहीं बन पाई।

पार्टी का केवल अपने नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बलबूते पर चुनाव जीतने का लक्ष्य रखना धोखादायक साबित हुआ। कुछ हद तक तेलंगाना में भी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) का अतिआत्मविश्वास और राष्ट्रीय स्तर पर परचम लहराने का सपना बदलाव की आंधी में बुरी तरह से बिखर गया, जो कहीं न कहीं उसे अपनी जड़ों से दूर होने का संदेश दे गया।

आम तौर पर राज्यों के चुनाव में स्थानीय मुद्दों का बोलबाला रहता है। मगर भाजपा को उन्हें अपने पक्ष में बनाना आसानी से आता है। वह सत्ता से दूर रहने के बावजूद स्वयं व अपने से जुड़े संगठनों के माध्यम से जनता में पैठ बनाए रखती है। इन चुनावों में उसे एक लाभ कोरोना महामारी के दौरान जनता के संपर्क में रहने का भी मिला है।

कुल मिलाकर भाजपा की यह नई जीत उसके निचले स्तर पर किए परिश्रम का परिणाम और संगठन की मजबूती का संकेत है। भविष्य में उसे अपनी ताकत को जनता के हित के कार्यों के माध्यम से दिखाना होगा, क्योंकि आने वाला साल आम चुनाव का है। यह एक सेमीफाइनल था, जो उसने पहले भी कई बार खेले हैं। अब फाइनल में उसे खुद को साबित करना बड़ी चुनौती होगी।

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