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बुलढाणा किसानः गड़े मुर्दे उखाड़ने के बजाय वर्तमान समस्याओं को सुलझाएं?, सरकार पर ऋण का बोझ लगातार बढ़ रहा

By विश्वनाथ सचदेव | Updated: March 25, 2025 05:32 IST

Buldhana farmers: पिछले पांच महीनों में देश के इस उन्नत समझे जाने वाले राज्य में एक हजार से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं. विकास के दावों के बावजूद महाराष्ट्र सरकार पर ऋण का बोझ लगातार बढ़ रहा है.

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ठळक मुद्देकिसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला महाराष्ट्र में थमने का नाम नहीं ले रहा. सन्‌ 2014 में यह राशि 2.94 लाख करोड़ रु. थी– 2024 में यह बढ़कर 7.82 लाख करोड़ रुपए हो गई. गलियारों में आज चर्चा एक ऐसे बादशाह की कब्र को लेकर हो रही है, जिसे मरे सात सौ साल से अधिक हो चुके हैं.

Buldhana farmers:महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के युवा किसान कैलाश नागरे को पांच साल पहले युवा किसान पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उन्हें यह सम्मान कृषि-कार्य में उल्लेखनीय सफलता पाने और किसानों में जागरूकता लाने के लिए किए गए प्रयासों के कारण मिला था. हाल ही में कैलाश नागरे ने आत्महत्या कर ली. प्राप्त जानकारी के अनुसार आत्महत्या का कारण यह था कि कैलाश भरसक प्रयास के बावजूद सरकार से उनके इलाके के खेतों में किसानों तक पानी पहुंचाने की मांग नहीं मनवा सके थे, और इसलिए हताशा में कैलाश ने यह आत्मघाती कदम उठाया...

वैसे भी किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला महाराष्ट्र में थमने का नाम नहीं ले रहा. पिछले पांच महीनों में देश के इस उन्नत समझे जाने वाले राज्य में एक हजार से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं. विकास के दावों के बावजूद महाराष्ट्र सरकार पर ऋण का बोझ लगातार बढ़ रहा है. सन्‌ 2014 में यह राशि 2.94 लाख करोड़ रु. थी– 2024 में यह बढ़कर 7.82 लाख करोड़ रुपए हो गई.

यह कुछ आंकड़े हैं जो चौंकाते भी हैं और परेशान भी करते हैं. परेशान इसलिए भी कि इन विषयों पर राज्य में चर्चा भी नहीं हो रही. इस बारे में न सरकार कुछ बोल रही है और न ही विपक्ष कुछ करता दिखाई दे रहा है. यह सब भुलाकर राजनीति के गलियारों में आज चर्चा एक ऐसे बादशाह की कब्र को लेकर हो रही है, जिसे मरे सात सौ साल से अधिक हो चुके हैं.

मैं भी गया था तीस-चालीस साल पहले औरंगजेब की कब्र देखने. जिज्ञासा थी कि स्वयं को आलमगीर कहने वाले उस क्रूर शासक ने अपनी कब्र कैसे बनवाई थी. उसे देखकर मेरे मन में कहीं भी उस शासक के महिमा-मंडन जैसी बात नहीं आई थी. जो बात मन में आई थी वह यह थी कि भाइयों को मरवा कर, पिता को कैद करके, प्रजा पर अत्याचार करके उस शासक को अंतत: क्या हासिल हुआ.

वह कच्ची कब्र! हमारे इतिहास से यदि हमें कुछ सीखना है तो वह यह है कि कोई और औरंगजेब क्रूरता और अत्याचार से महान नहीं बन सकता. इतिहास के ऐसे अध्याय को याद रखना जरूरी है,  ताकि अब किसी को दुहराने न दिया जाए. जर्मनी में हिटलर के अत्याचार के सारे निशान सुरक्षित रखे गए हैं,  ताकि आने वाली पीढ़ियों में अत्याचार के खिलाफ भावना बन सके, बनी रहे.

आज जो विवाद इस कब्र के संदर्भ में उठ रहा है, दुर्भाग्य से, इतिहास से कुछ सीखने का उससे कोई रिश्ता नहीं. जो हो रहा है उससे स्पष्ट है कि कुछ मुद्दों को भटकाने के लिए कुछ मुद्दे उठाए जा रहे हैं. कुछ भुलाने के लिए कुछ याद दिलाया जा रहा है. इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ कर देश में हिंदू मुसलमान के भेद को हवा दी जा रही है. इतिहास का अर्थ है जो हुआ था. जो हुआ था वह सब दुहराने की नहीं, उससे कुछ सीख कर आगे बढ़ने की आवश्यकता है.

टॅग्स :किसान आत्महत्यामहाराष्ट्रराष्ट्रीय किसान दिवसFarmersदेवेंद्र फड़नवीस
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