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अगर प्रधानमंत्री ओली गलतियां मान लेते हैं तो सबकुछ भुलाने को तैयार: नेपाल ने रैली में कहा

By भाषा | Updated: December 29, 2020 20:54 IST

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काठमांडू, 29 दिसंबर सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतिद्वंद्वी धड़े के अध्यक्ष माधव कुमार नेपाल ने मंगलवार को कहा कि अगर प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली अपनी गलतियों को स्वीकार करने को तैयार हैं तो पार्टी को अब भी एकजुट रखा जा सकता है।

नेपाल में संसद को भंग किये जाने के खिलाफ हजारों प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर मार्च किया। काठमांडू में माधव नेपाल ने अपने नेतृत्व वाले धड़े द्वारा आयोजित एक बड़ी विरोध रैली को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘अगर ओली अपनी गलतियां स्वीकार कर लेते हैं तो हम सबकुछ भुलाने को तैयार हैं।’’

रैली में पूर्व प्रधानमंत्रियों पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ और झालानाथ खनल ने भी भाग लिया।

प्रचंड नीत धड़े का अध्यक्ष ओली की जगह पूर्व प्रधानमंत्री नेपाल को बनाया गया है।

नेपाल ने प्रधानमंत्री ओली पर संविधान और आम जनता के खिलाफ निर्णय लेकर लोकतंत्र-विरोधी गतिविधियां संचालित करने का आरोप लगाया।

माधव नेपाल के हवाले से माई रिपब्लिका अखबार ने लिखा, ‘‘ओली नीत सरकार के असंवैधानिक कदम के खिलाफ सभी राजनीतिक दल, बुद्धिजीवी, शिक्षक, छात्र और जनता सड़कों पर है। निचले सदन का जल्द पुनर्गठन किया जाएगा।’’

चीन के प्रति झुकाव रखने वाने प्रधानमंत्री ओली ने 20 दिसंबर को अचानक से 275 सदस्यीय सदन को भंग करने की सिफारिश कर दी थी और नेपाल में राजनीतिक संकट गहरा गया था।

प्रचंड ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि प्रतिनिधि सभा को भंग करने के प्रधानमंत्री ओली के हालिया कदम का मकसद संघवाद को खत्म करना है जिसे दशकों तक जनता के संघर्ष के बाद हासिल किया गया।

उन्होंने कहा, ‘‘संसद को भंग करने का फैसला पूरी तरह असंवैधानिक है। इसने देश को राजनीतिक अस्थिरता के एक और दौर की ओर बढ़ा दिया है।’’

प्रचंड ने कहा, ‘‘हमने कल्पना भी नहीं की थी कि हमें ओली के प्रतिगामी कदम के खिलाफ सड़कों पर उतरने को मजबूर होना पड़ेगा। हमें अब इस कदम के खिलाफ मिलकर लड़ना है।’’

ओली को पार्टी के संसदीय नेता और अध्यक्ष पद से हटाकर सत्तारूढ़ पार्टी का नियंत्रण अपने हाथ में लेने का दावा करने वाले प्रचंड ने कहा, ‘‘मैंने दो कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच विलय के लिए व्यक्तिगत रूप से पहल की थी और इसके लिए ओली से संपर्क किया था। उस समय वह संघवाद, धर्मनिरपेक्षता और प्रजातांत्रिक व्यवस्था को स्वीकार करने के लिए तैयार हो गये थे। हालांकि मुझे उनकी राजनीतिक विचारधारा का पता था और सच यह है कि वह संघवाद और प्रजातांत्रिक प्रणाली के खिलाफ थे।’’

प्रचंड ने कहा कि ओली अंततोगत्वा निरंकुश हो गये, उन्होंने पार्टी में अधिपत्य जमाया और संसद को अचानक से भंग करने से पहले अन्य नेताओं से परामर्श करना भी जरूरी नहीं समझा।

उन्होंने कहा, ‘‘ओली का अत्याचार लंबे समय तक नहीं चलेगा क्योंकि जनता उनके हालिया राजनीतिक कदम के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन करेगी।’’

प्रचंड ने कहा कि दरअसल संसद नहीं बल्कि ओली नीत सरकार को उसके गलत राजनीतिक कदम के लिए भंग किया गया है।

उन्होंने उम्मीद जताई कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के जरिये संसद को बहाल किया जाएगा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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