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By गुणातीत ओझा | Published: January 11, 2021 10:54 PM2021-01-11T22:54:59+5:302021-01-11T22:55:47+5:30
मुख्तार अंसारी सुर्खियों में बने हुए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार (UP Govt) और पंजाब सरकार (Punjab Govt) के बीच इस बाहुबली नेता को लेकर कोल्ड वार चल रही है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पंजाब के रोपड़ जेल में बंद मुख्तार को वापस लाना चाहती है।
माफिया डॉन मुख्तार!
दादा- कांग्रेस अध्यक्ष.. चाचा- उपराष्ट्रपति
उत्तर प्रदेश की राजनीति (Uttar Pradesh Politics) में बाहुबली नेताओं की गिनती हो और मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) का नाम ना लिया जाए ऐसा हो ही नहीं सकता। इन दिनों मुख्तार अंसारी सुर्खियों में बने हुए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार (UP Govt) और पंजाब सरकार (Punjab Govt) के बीच इस बाहुबली नेता को लेकर कोल्ड वार चल रही है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पंजाब के रोपड़ जेल में बंद मुख्तार को वापस लाना चाहती है। दूसरी तरफ पंजाब जेल प्रशासन इस बात की अनुमति देने में आनाकानी कर रहा है। बीते दिनों यूपी में मुख्तार के गुर्गों पर सरकार का पूरा फोकस रहा है। मुख्तार के सहयोगियों के अवैध कब्जों को निशाना बनाकर कई जगहों पर ध्वस्त कर दिया गया। ऐसे में चर्चाओं का बाजार गरम है कि अगर मुख्तार अंसारी यूपी की किसी जेल में बंद होता है तो बाहुबली को पुलिस की ज्यादा सख्ती झेलनी पड़ सकती है। इसी डर से वह पंजाब की जेल में रहना चाहता है। मुख्तार के कारनामें कई बार चर्चाओं में आते रहे हैं। मुख्तार पर 40 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं और वह पिछले 14 सालों से जेल में बंद है। मुख्तार यूपी की मऊ विधानसभा सीट से लगातार पांचवीं बार विधायक है। मुख्तार अंसारी की पहचान माफिया डॉन के रूप में भी है। आइये आपको बताते हैं इस बाहुबली के बारे में कुछ खास बातें…
मुख्तार अंसारी के परिवार का गौरवशाली इतिहास
मुख्तार अंसारी के दादा डॉ मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान 1926-27 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे। खबरें तो यह भी आती रही हैं कि वे महात्मा गांधी के करीबियों में से एक थे। डॉ मुख्तार अहमद अंसारी के नाम से दिल्ली में एक रोड भी है। अब बात करते मुख्तार अंसारी के नाना की। ब्रिगेडियर उस्मान मुख्तार अंसारी बाहुबली मुख्तार अंसारी के नाना थे और उन्होंने साल 1947 की लड़ाई में भारतीय सेना की ओर से नवशेरा की लड़ाई में हिस्सा लिया और देश को जीत दिलाने के लिए शहीद भी हुए। उन्हें भारत सरकार द्वारा महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को कौन नहीं जानता। हामिद अंसारी से भी मुख्तार अंसारी का कनेक्शन है। हामिद अंसारी रिश्ते में मुख्तार के चाचा लगते हैं। वहीं मुख्तार के बेटे का नाम अब्बास अंसारी है। अब्बास शॉट गन शूटिंग के इंटरनेशनल खिलाड़ी हैं। वह शॉट गन शूटिंग में नेशनल चैंपियन भी रह चुके हैं।
मुख्तार की क्राइम हिस्ट्री
मुख्तार अंसारी पर चल रहे आपराधिक मुकदमों की कहानी बहुत लंबी है। इन आपराधिक घटनाओं से कई सारे किस्से जुड़े हुए है। मुख्तार का मुख्य रूप से मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर में दबदबा माना जाता है। इन जिलों में ठेकेदारी, खनन, स्क्रैप, शराब और रेलवे ठेकेदारी में अंसारी का कब्जा माना जाता है। साल 1988 में पहली बार एक हत्या के मामले में मुख्तार अंसारी का नाम आया था। लेकिन पुलिस बाहुबली के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं जुटा पाई थी। साल 2005 के अक्टूबर महीने में मऊ में दंगा हुआ था। मुख्तार पर इस दंगे को भड़काने का आरोप लगा। इसी मामले में मुख्तार ने गाजीपुर पुलिस के सामने सरेंडर किया था। मुख्तार को गाजीपुर जेल में रखा गया। इसके बाद मथुरा जेल भेज दिया गया। मथुरा से आगरा जेल और फिर आगरा से बांदा जेल भेजा गया।
मुख्तार और बृजेश सिंह की दुश्मनी
पूर्वांचल के जिन हिस्सों में मुख्तार अंसारी का दबदबा था वहां बृजेश सिंह की भी दबंगई चला करती थी। मुख्तार और बृजेश गैंग के बीच कई छोटी-बड़ी गैंगवार हुई। एक ऐसी ही गैंगवार में बृजेश सिंह के मारे जाने की भी खबर आई। लेकिन कुछ सालों बाद बृजेश सिंह को जिंदा पाया गया और साल 2008 में उड़ीसा से गिरफ्तार किया गया।
मुख्तार ने राजनीति में ऐसे रखा कदम
मुख्तार ने साल 1995 में राजनीति की दुनिया में कदम रखा और साल 1996 में मऊ विधानसभा सीट से विधायकी अपने नाम की। मुख्तार अंसारी ने साल 2007 में बहुजन समाज पार्टी(बसपा) का दामन थाम लिया। सपा प्रमुख मायावती ने मुख्तार को रॉबिनहुड के रूप में पेश किया था। मुख्तार ने बसपा के टिकट पर वाराणसी से 2009 में लोकसभा चुनाव में भाजपा के मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ ताल ठोकी जहां बाहुबली को हार का सामना करना पड़ा। साल 2010 में अंसारी बंधुओं यानी मुख्तार और अफजल अंसारी को बसपा से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद तीनों अंसारी भाइयों मुख्तार, अफजल और सिब्गतुल्लाह ने साल 2010 में ‘कौमी एकता दल’ नाम से राजनीतिक पार्टी का गठन किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार ने घोसी के साथ-साथ वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़ा होने की घोषणा की थी। लेकिन चुनाव के पहले मुख्तार ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी।