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69वां गणतंत्र दिवस विशेष: पीएम मोदी के डिजिटल इंडिया की जमीनी हकीकत बयां करता 'झोलंबा'

By कोमल बड़ोदेकर | Published: January 26, 2018 05:42 PM2018-01-26T17:42:54+5:302018-01-26T18:40:02+5:30

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आज देश 69वें गणतंत्र दिवस के जश्न में डूबा है। एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य के सिद्धांत के साथ 26 जनवरी 1950 को जब समूचे भारत में संविधान लागू किया गया तो आजाद भारत में एक नई उमंग छा गई। लोगों के मौलिक अधिकारों को पहचान मिली। सभी को समानता का अधिकार दिया। भारत सरकार ने योजनाबद्ध तरीके से देश के विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएं बनाई। इनमें शहरों के साथ ही ग्रामीण भारत के विकास की बात भी प्रमुखता से की गई। लेकिन 69 साल बीत जाने के बाद भी देश के कई इलाके ऐसे हैं जो विकास की मुख्य धारा से अब भी दूर है।

कुछ ऐसे ही इलाकों में से है 'झोलंबा'। हो सकता है यह नाम आपने इससे पहले कभी नहीं सुना हो। महाराष्ट्र के विदर्भ का एक छोटा सा गांव झोलंबा अब भी बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहा है। 11 सौ लोगों की आबादी वाला यह गांव अमरावती जिले की वरुड़ तालुका में आता है। शहर से करीब 76 किलोमीटर दूर इस गांव के लोग अपनी दैनिक जीवन की जरूरतों के लिए आज भी जद्दोजहद करते नजर आते हैं। एक ओर जहां मेट्रो और बुलेट ट्रेन की बात की जा रही है वहीं इस गांव में सड़क का न होना ग्रामीण भारत की गंभीर स्थिति को दर्शाता है।

डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया के इस युग में जहां बच्चे प्रोजेक्टर, मैक, लैपटॉप और मोबाइल के जरिए शिक्षा हासिल कर रहे हैं वहीं इस गांव के बच्चे 7 किलोमीटर का सफर पैदल तय कर हिवरखेड़ स्थित स्कूल जाते हैं। नाम मात्र का स्वास्थ्य या केंद्र है किसी ने भी गांव में डॉक्टर नहीं देखा। हां एक नर्स जरूर है लेकिन कब आती है कब जाती है किसी को ठीक से नहीं पता। अच्छी बात यह है, विदर्भ भले ही सूखे की मार झेल रहा हो लेकिन यहां स्थिति उतनी गंभीर नहीं है। 

शहरों में बेहतर सड़के तों हैं लेकिन मेट्रोपोलियन जाम की स्थिति से परेशान है। वहीं यहां के ग्रामीणों की मुख्य समस्या कनेक्टिविटी की है। उन्हें दूसरे गांव से जोड़ने, दैनिक जीवन की जरूरतों और बच्चों के स्कूल आने-जाने वाला मुख्य रास्ता पूरी तरह जर्जर हो चुका है। सड़कों में जगह-जगह गढ्ढे हैं जिसके चलते यहां एसटी (बेस्ट बस) ने भी आना बंद कर दिया है। वहीं अगर गांव में इमरजेंसी या किसी की तबियत खराब हो जाए तो उसका भगवान ही मालिक है।

बहरहाल, गणतंत्र दिवस के 69 साल बाद भी ग्रामीण भारत के कुछ गांवों की स्थिति अब भी वैसी ही नजर आती है जैसी साल 1950 में थी। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में विश्वास करते हुए ग्रामीण एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य के सिद्धांत के साथ हर बार वोट डाल अपना नेता चुनते हैं हर बार उपेक्षा का शिकार हो जाते हैं। 

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