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उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच फंसा असल शिवसैनिक होने का पेंच

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: June 24, 2022 11:09 AM2022-06-24T11:09:54+5:302022-06-24T11:11:43+5:30

शिवसेना के उद्धव कैंप ने बागी एकनाथ शिंदे समेत 12 विधायकों को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य करार दिया है। इनमें अब्दुल सत्तार, संदीपान भुमरे, प्रकाश सुर्वे, तानाजी सावंत, महेश शिंदे, अनिल बाबर, यामिनी जाधव, संजय शिरसाट, भरत गोगावले, बालाजी किणीकर और लता सोनावणे के नाम शामिल हैं।

पलटवार करते हुए बागी एकनाथ शिंदे ने खुद को बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना का असली वारिस बताते हुए विधायक दल का नेता बता दिया है और गुवाहाटी में बागी विधायकों की ओर से 37 विधायकों ने महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी को लिखे चिट्ठी में एकनाथ शिदे को अपना नेता मान लिया है।

इतना ही नहीं बागी विधायकों के समर्थन पत्र में इस बात ता भी दावा किया गया है कि एकनाथ शिंदे गुट ही असली शिवसेना है और इसके पास दो तिहाई विधायकों का समर्थन है।

वहीं शिवसेना ने शिंदे गुट जारी की गई चिट्ठी के बाद हरकत में आते हुए सदन के डिप्टी स्पीकर नरहरि झिरवाल को चिट्ठी लिखकर 37 बागियों को अयोग्य ठहराने की गुजारिश कर दी है। ध्यान रहे कि डिप्टी स्पीकर नरहरि झिरवाल शरद पवार की पार्टी एनसीपी से आते हैं।

शिंदे गुट कथिततौर पर 46 विधायकों के समर्थन का दावा कर रहा है, जिनमें नौ निर्दलीय हैं। इस लिहाज से 37 विधायक शिवसेना के हुए और शिवसेना के कुल विधायकों की संख्या 56 है तो उस गणित से उद्धव कैंप में ठाकरे कैंप में महज 19 विधायक बच रहे हैं।

उद्धव कैंप के शिवसेना की बेचैनी किस कदर बढ़ी हुई है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि कल तक बागियों को आंख दिखाने वाले संजय राउत अब यह कह रहे हैं कि यदि बागी विधायक चाहते हैं, तो पार्टी महाविकास आघाड़ी भी छोड़ सकती है।

राउत के इस बयान से सूबे की सियासत और भी खमखमा गई है। पर इसके साथ ही राउत ने यह भी शर्त लगा दी है कि बागी विधायकों की मांग पर तभी विचार किया जाएगा जब वो मुंबई आकर उद्धव ठाकरे के सामने अपनी बात रखेंगे। 

इसके साथ ही संजय राउत ने बागी विधायकों से कहा कि गुलामी स्वीकार करने के बदले आत्मसम्मान के साथ फैसला लें, पार्टी के दरवाजे बागी विधायकों के लिए हमेशा खुले हैं।

संजय राउत के रूख से यह बात साफ हो चली है कि उद्धव कैंप नंबर गेम में पूरी तरह से फेल हो चुका है और उद्धव ठाकरे ने बागी विधायकों के सामने घुटने टेक दिये हैं।

शिंदे गुट चाहता है कि राज्यपाल मामले में दखल दें और उन्हें असली शिवसेना मानते हुए भाजपा के साथ सत्ता के खुली गठजोड़ के लिए आजादी हैं लेकिन क्या ये इतना सरल है।

जी, नहीं ये इतना सरल नहीं है, क्योंकि सरकार बनाने और गिराने का खेल चाहे जितना ही किसी होटल में बैठकर क्यों न खेला जाए, इस बात का असल फैसला सदन के पटल पर होता है और इसके लिए सभी विधायकों को विधानसभा के फ्लोर पर आना होगा।

शिंदे गुट इस कवायद से बचने की कोशिश कर रहा है क्योंकि उन्हें इस बात का इल्म बखूबी है कि जब सदन में 37 विधायकों की नजरें उद्धव ठाकरे से मिलेंगी तो बागियों में दो-चार सरेंडर भी कर सकते हैं और इस कारण उनका बना-बनाया खेल बिगड़ सकता है।

और कहीं शिंदे गुट के हाथों से 37 का आंकड़ा छिटका तो दल-बदल विरोधी कानून की जद में आने से उनका सपना धरा का धरा रह जाएगा। दरअसल शिंदे गुट जिस महाशक्ति के साथ होने का दावा कर रहा है और उसके इशारे पर इस व्यूह की रचना कर रहा है वो भी 37 के आंकड़े को लेकर भारी पशोपेश में हैं। होटल का 37 अगर सदन में 37 न रहा तो भारी किरकिरी होनी तय है। इसलिए शिंदे गुट फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। 

वहीं उद्धव कैंप ने भी ऑपरेशन 37 लॉन्च कर दिया है और उसे हर हाल में शिंदे गुट के विधायकों की संख्या 37 से नीचे गिरानी है। ऐसे में फिलहाल तो यह कहना बड़ा ही मुश्किल है कि महाराष्ट्र सदन में शिवसेना विधायक किस पाले में बैठेंगे और दोनों गुटों की बीच चल रही रसाकशी क्या गुल खिलाती है ये तो आने वाले वक्त में क्लीयर हो पाएगा।

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