चेन्नई: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और डीएमके सरकार के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने बीते मंगलवार को महिला आरक्षण विधेयक के कानून बनने के बाद इसके लागू होने पर गहरा संदेह जताया है और कहा है कि इसमें केंद्र सरकार की ओर से कोई स्पष्टता नहीं दिखाई जा रही है।
समाचार वेबसाइट हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार उदयनिधि ने कहा, ''ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार की मंशा फिलहाल महिला आरक्षण विधेयक को लागू नहीं करने की नहीं है। हम तो पिछले 10 वर्षों से महिलाओं को लेकर ऐसे कानून की मांग कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि अभी केवल जनगणना और परिसीमन करेंगे। इस पर कोई स्पष्टता नहीं है कि वे इसे कब लागू करेंगे।''
मालूम हो कि केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने महिला आरक्षण विधेयक या नारी शक्ति वंदन अधिनियम मंगलवार को लोकसभा में पेश किया। यह संसद के निचले सदन और राज्य विधानसभाओं में महिला प्रतिनिधियों के लिए एक तिहाई या 33 फीसदी सीटों की गारंटी देता है। आरक्षण अधिनियम के प्रारंभ से 15 वर्षों तक लागू रहेगा और संसद इसे आगे बढ़ा सकती है।
विपक्ष ने इस प्रावधान को लेकर केंद्र की बेहद कड़ी आलोचना की और महिला आरक्षण विधेयक को केंद्र की भाजपा सरकार का एक और 'जुमला' बताया और कहा कि यह भारतीय महिलाओं के साथ 'बहुत बड़ा विश्वासघात' है।
राज्यसभा में समाजवादी पार्टी समर्थित राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने भी प्रस्तावित कानून के कार्यान्वयन पर सवाल उठाया और कहा कि यह भाजपा द्वारा राजनीतिकऔर चुनावी लाभ निकालने का एक तरीका है।
सांसद सिब्बल ने कहा, "वे लोगों को विशेषकर महिलाओं को बताना चाहते हैं कि उन्होंने इस ऐतिहासिक कानून को लागू किया। उन्हें यह 2014 में करना चाहिए था। इसमें इतना ऐतिहासिक क्या है? महिला आरक्षण विधेयक लागू होने से पहले जनगणना और परिसीमन होना चाहिए। अगर जनगणना और परिसीमन नहीं हुआ तो क्या होगा?”
वहीं कपिल सिब्बल के इन आरोपो पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि कांग्रेस न तो 2010 में सत्ता में थी और न ही महिला नेताओं को आरक्षण देना चाहती थी और न ही उसकी मंशा अब ऐसा करने की है।
केंद्रीय मंत्री ठाकुर ने कपिल सिब्बल को लेकर कहा, "वह तब मंत्री थे, जब साल 2008 में यूपीए के तहत इसी तरह का कानून पेश किया गया था। वह जानते थे कि कांग्रेस केवल कानून लाने का नाटक कर रही थी। विधेयक 2008 में पेश किया गया था और एक साल बाद देश में आम चुनाव हुए। हालांकि, इसे पारित करने के बजाय मसौदा कानून को स्थायी समिति को भेज दिया गया था। उस वक्त कांग्रेस का लक्ष्य ही नहीं था कि महिलाओं को आरक्षण देना है और न ही वे अब ऐसा चाहते हैं।"