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अतीक-अशरफ की हत्या मामले में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई, इस दिन की तारीख हुई तय

By अंजली चौहान | Published: April 24, 2023 12:40 PM

गौरतलब है कि गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक और उसके भाई अशरफ की 15 अप्रैल को पुलिस टीम की मौजूदगी में ही तीन हमलावरों द्वारा हत्या कर दी गई।

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ठळक मुद्देअतीक अहमद और अशरफ की हत्या मामले में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा कोर्ट ने 28 अप्रैल को सुनवाई का फैसला किया है याचिका में पुलिस के सामने अतीक-अशरफ की हत्या होने पर जांच की मांग की गई है

नई दिल्ली: माफिया से राजनेता बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस की मौजदूगी में हत्या मामले को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने का फैसला किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अतीक-अशरफ हत्या की जांच की मांग को लेकर दायर याचिका पर 28 अप्रैल को सुनवाई करने का फैसला किया है।

गौरतलब है कि गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक और उसके भाई अशरफ की 15 अप्रैल को पुलिस टीम की मौजूदगी में ही तीन हमलावरों द्वारा हत्या कर दी गई।

ये घटना तब हुई जब आरोपी अतीक और उसके भाई को पुलिस अस्पताल में मेडिकल जांच के लिए लेकर जा रही थी। इसी दौरान मीडियाकर्मी बनकर आए तीनों हमलावरों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर सारी गोलियां अतीक और अशरफ के शरीर में दाग दी। 

प्रयागराज में पुलिस के सामने हुई हत्या को लेकर ही विपक्ष समेत अधिवक्ता विशाल तिवारी मामले में जांच की मांग कर रहे हैं। विशाल तिवारी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष अपनी याचिका की तत्काल सुनवाई की मांग की और अदालत को अवगत कराया कि मामले को आज सूचीबद्ध किया जाना था।

अदालत में सुनवाई करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि कई मामले सूचीबद्ध नहीं हो सके क्योंकि पांच न्यायाधीश उपलब्ध नहीं थे क्योंकि वे अस्वस्थ थे।

इस पर अधिवक्ता तिवारी ने कहा कि उनकी याचिका में उत्तर प्रदेश में न्यायेतर हत्याओं की जांच की मांग की गई है। याचिकाकर्ता ने कहा कि उनकी जनहित याचिका कानून के शासन के उल्लंघन और उत्तर प्रदेश द्वारा दमनकारी पुलिस क्रूरता के खिलाफ है।

याचिकाकर्ता ने कहा कि इस तरह की घटनाएं लोकतंत्र और कानून के शासन के लिए एक गंभीर खतरा हैं, और इस तरह की हरकतें अराजकता की स्थापना और पुलिस राज्य के प्रथम दृष्टया विकास हैं।

दरअसल, वकील विशाल तिवारी ने अतीक-अशरफ की हत्या की जांच की मांग को लेकर दायर याचिका में उत्तर प्रदेश के विशेष पुलिस महानिदेशक द्वारा बताए गए 183 मुठभेड़ों की जांच के लिए एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति गठित करने की भी मांग की गई है।

तिवारी ने अपनी जनहित याचिका में कानपुर बिकरू एनकाउंटर केस 2020 जिसमें विकास दुबे और उसके सहयोगियों की जांच, संग्रह और सबूतों को रिकॉर्ड करने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो को निर्देश देकर फर्जी मुठभेड़ों का पता लगाने के लिए निर्देश जारी करने की भी मांग की है।

मुठभेड़ में पुलिस द्वारा मारे गए थे क्योंकि जांच आयोग पुलिस के बयान के खंडन में सबूत दर्ज नहीं कर सका और उसके अभाव में जांच रिपोर्ट दायर की है। याचिकाकर्ता ने कहा, "उत्तर प्रदेश पुलिस ने डेयर डेविल्स बनने की कोशिश की है।" 

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि कानून के तहत अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं या फर्जी पुलिस मुठभेड़ों की बहुत बुरी तरह से निंदा की गई है और इस तरह की चीजें एक लोकतांत्रिक समाज में मौजूद नहीं हो सकती हैं।

पुलिस को अंतिम न्याय देने या दंड देने वाली संस्था बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। दंड की शक्ति केवल न्यायपालिका में निहित है। पुलिस जब डेविल डेविल्स बन जाती है तो कानून का पूरा शासन ध्वस्त हो जाता है और लोगों के मन में भय पैदा करता है।

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