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शिवसेना, राकांपा ने कृषि कानून निरस्त किए जाने के फैसले की प्रशंसा की

By भाषा | Updated: November 19, 2021 14:49 IST

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मुंबई, 19 नवंबर शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने के केंद्र के फैसले का स्वागत करते हुए शुक्रवार को कहा कि सरकार को प्रदर्शनकारी किसानों के आगे अंतत: झुकना ही पड़ा।

राज्य में महा विकास आघाड़ी (एमवीए) गठबंधन में शिवसेना और राकांपा के साथ शामिल तीसरे साझेदार दल कांग्रेस ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार किसानों के हित के लिए नहीं, बल्कि व्यापारियों के लाभ के लिए तीन कृषि कानूनों को लाई थी। उसने केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से कानून लाकर मुश्किल हालात पैदा करने के लिए देश और किसानों से माफी मांगने को कहा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु नानक जयंती के अवसर पर शुक्रवार को सुबह, राष्ट्र को संबोधित करते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की और प्रदर्शनकारी किसानों से घर लौट जाने की अपील की। इन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर किसान पिछले एक साल से प्रदर्शन कर रहे थे।

इस घोषणा के बाद शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री मोदी के मुख से पहली बार लोगों के ‘मन की बात’ निकली है। भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) के नेता इन किसानों को खुलेआम खालिस्तानी और पाकिस्तानी कह रहे थे, लेकिन केंद्र सरकार को किसानों के दबाव के आगे झुकना पड़ा।’’

राउत ने कहा, ‘‘दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शनों के दौरान 400 से अधिक किसानों ने अपनी जान गंवा दी। यदि मोदी ने हमारी मांगों को सुना होता, तो कुछ लोगों की जान बचाई जा सकती थी, लेकिन सरकार हठ कर रही थी और उसने किसानों की समस्याओं को सुनने से इनकार कर दिया।’’

राकांपा के प्रमुख प्रवक्ता नवाब मलिक ने ट्वीट किया, ‘‘झुकती है दुनिया, झुकाने वाला चाहिए। तीनों कृषि कानून वापस लिए गए। हमारे देश के किसानों को मेरा सलाम जिनमे से कई ने जान गंवा दी। ’’

मलिक ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘पिछले सात साल में प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष के किसी नेता या किसी किसान नेता से इन तीन कृषि कानूनों को लेकर कभी कोई बात नहीं की। अब, उन्हें एहसास हो गया है कि देश में एक बड़ा राजनीतिक बदलाव हो रहा है और अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनावों में इसके संकेत देखे जा सकते हैं।’’

राकांपा नेता ने कहा, ‘‘हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले सात साल में इस तरीके से कोई फैसला वापस नहीं लिया गया। यह उनकी (मोदी की) ओर से एक बड़ा कदम है।’’

कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के मंत्री बालासाहेब थोराट ने कहा, ‘‘तीन कृषि कानून किसानों के लिए नहीं, बल्कि बड़े व्यापारियों की रक्षा के लिए लाए गए थे। कृषि कानून के प्रावधान व्यापारियों को और ताकतवर बनाने में मदद कर रहे थे। किसानों को धोखा देने वाले व्यापारियों के खिलाफ मामला दर्ज करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है।’’

उन्होंने कहा कि इन कानूनों ने किसानों को कोई संरक्षण प्रदान नहीं किया। उन्होंने कहा कि व्यापारियों को बड़ी मात्रा में कृषि उपज खरीदने और लंबे समय तक इसका भंडारण करने की अनुमति दी गई।

राजस्व मंत्री ने कहा, ‘‘व्यापारी भारी मुनाफा कमाने के लिए इस तरह के प्रावधानों का दुरुपयोग करते। इसका मतलब यह भी है कि किसानों के साथ-साथ शहरी उपभोक्ताओं को भी इसकी आंच महसूस होती। व्यापारी किसानों से कम दरों पर कृषि उपज खरीदते और इसे जमा करने के बाद, वे इसे शहरी उपभोक्ताओं को अधिक दरों पर बेच सकते थे। बड़े व्यापारी और बड़े एवं अधिक शक्तिशाली बन जाते।’’

उन्होंने कहा, ‘‘किसानों का प्रदर्शन उचित था। इस देश में पंजाब के किसानों का बड़ा योगदान है। केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की दर से 1.5 गुना अधिक देने के अपने शुरुआती वादे पर बात भी करने को तैयार नहीं है।’’ थोराट ने कहा कि भाजपा को किसानों और देश को इस प्रकार की स्थिति में डालने के लिए उनसे माफी मांगने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि उसे अपने कदमों की जिम्मेदारी लेनी होगी।

महाराष्ट्र के जल संसाधन राज्य मंत्री एवं निर्दलीय विधायक बच्चू कडू ने कहा, ‘‘हमें इन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा को लेकर अनावश्यक रूप से खुश नहीं होना चाहिए।’’ उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की नीति मुख्य रूप से किसान विरोधी है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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