नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने कानूनी ढांचे में बदलाव को लेकर शुक्रवार को संसद में विधयेक पेश किया है। गृह मंत्री अमित शाह ने आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार लाने के उद्देश्य से तीन विधेयक पेश करते हुए कहा कि राजद्रोह कानून को पूरी तरह से निरस्त कर दिया जाएगा।
केंद्रीय गृह मंत्री ने भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में सुधार को लेकर तीन विधेयक पेश किए।
गौरतलब है कि भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों के लिए राजद्रोह कानून के तहत प्रावधान जिन्हें खत्म करने का प्रस्ताव है उसे धारा 150 में बरकरार रखा जाएगा।
गृह मंत्री ने संसद में विधेयक पेश करते हुए कहा, ''हम देशद्रोह को पूरी तरह से निरस्त कर रहे हैं।'' हर किसी को बोलने का अधिकार है। नए बिल में 'देशद्रोह' शब्द को हटा दिया गया है और कुछ बदलावों के साथ धारा 150 के तहत इस प्रावधान को बरकरार रखा गया है।
अमित शाह ने कहा कि जो कोई, जानबूझकर, बोले गए या लिखे गए शब्दों से, या संकेतों द्वारा, या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा, या इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा या वित्तीय साधनों के उपयोग से, या अन्यथा, अलगाव या सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियों को उत्तेजित करता है या उत्तेजित करने का प्रयास करता है।
अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करता है या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालता है, नए प्रावधान में कहा गया है, या ऐसे किसी भी कृत्य में शामिल होने या करने पर आजीवन कारावास या सात साल तक की कैद की सजा हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
अमित शाह ने कहा कि नए कानून का उद्देश्य सजा देना नहीं बल्कि न्याय देना होगा। गृह मंत्री ने कहा कि पुराने कानून अंग्रेजों ने अपने अनुसार बनाए थे जिनका लक्ष्य सजा देना था।
हम इन्हें बदल रहे हैं। नए बिल में सबसे पहले अध्याय में महिलाओं, बच्चों के साथ होने अपराध, दूसरे अध्याय में मानवीय अंगों के साथ होने वाले अपराध का है। उन्होंने साफ कहा कि ये सारे बिल स्टैंडिंग कमेटी को भेजे जाएंगे।
जल्द होगी कार्रवाई
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि पुलिस अधिकारी भी अब जांच में देरी नहीं कर पाएंगे। उन्होंने आगे कहा कि हमने सुनिश्चित किया है कि 90 दिनों में आरोप पत्र दायर किया जाएगा और सिर्फ कोर्ट उन्हें 90 दिन और बढ़ा सकती है।
मगर 180 दिनों के भीतर पुलिस ने इन नए कानूनों के तहत जांच करने के लिए बाध्य होंगे। यहां तक कि न्यायाधीश भी किसी भी दोषी के लिए अपनी सुनवाई या आदेश में देरी नहीं कर सकते हैं।