मुंबई: महाराष्ट्र राज्य में 15 वर्षों से अनुसूचित जाति-जनजति आयोग अस्तित्व में है, लेकिन सिर्फ एक सरकारी निर्णय (जीआर) के आधार पर इस आयोग का कामकाज चल रहा है. अब चौंकानेवाली बात यह है कि इस आयोग के अधिकार, कर्तव्य और कार्यों के संदर्भ में अब तक कोई भी कानून नहीं बनाया गया है.
छह जून 2006 को अस्तित्व में आया यह एससी-एसटी आयोग सिर्फ जीआरपर चल रहा है. इस आयोग की जिम्मेदारी एससी-एसटी कल्याण योजनाओं के निर्णय को अमल में लाने की है. योजनाओं के वंचितों की पहचान करना और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश आयोग राज्य सरकार और राज्यपाल से करता है.
एट्रॉसिटी मामलों की समीक्षा और उसके निपटान करने के साथ ही जिलाधिकारियों की अध्यक्षता में सुरक्षा समितियों की नियमित बैठक कराने और न्यायालयीन मामलों में पीडि़तों को आवश्यक मदद मुहैया कराने का काम आयोग करता है.
आयोग को लापरवाह अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी अधिकार होता है. एससी-एसटी कर्मचारियों की नियुक्ति और पदोन्नति को लेकर अन्याय होने पर आयोग से जवाब मांगा जा सकता है. लेकिन, इसे लेकर कोई भी कानून नहीं है और यह सिर्फ एक जीआर के सहारे चल रहा है.
न अध्यक्ष, न सदस्य एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष विजय कांबले का कार्यकाल जनवरी 2020 में खत्म हुआ जबकि मई 2020 में आयोग के सदस्य एम.बी. गायकवाड़ का कार्यकाल समाप्त हो चुका है. इस बीच, आदिवासी विकास विभाग की मांग है कि एससी-एसटी के लिए संयुक्त आयोग के बजाय एसटी के लिए अलग आयोग बनाया जाना चाहिए.